PM श्री पर ‘लेफ्ट’ में फूट! केरल सरकार के फैसले से गहराया लाल मोर्चे का संकट

यह विवाद ऐसे समय में सामने आया है, जब एलडीएफ हमेशा से केंद्र की नीतियों के खिलाफ एकजुट रुख का दावा करता रहा है। अब सरकार के इस यू-टर्न ने वाम समर्थकों और शिक्षक संघों के बीच असंतोष बढ़ा दिया है।

Update: 2025-10-24 13:29 GMT
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केरल सरकार द्वारा केंद्र सरकार की प्रधानमंत्री स्कूल्स फॉर राइजिंग इंडिया (PM SHRI) योजना से जुड़ने के फैसले ने लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट (LDF) के अंदर गहरा मतभेद पैदा कर दिया है। इस निर्णय ने सत्तारूढ़ CPI(M) और सहयोगी CPI के बीच वैचारिक तनाव और संवाद की कमी को उजागर कर दिया है।

पहले के रुख से पलटा फैसला

राज्य सरकार का यह कदम एलडीएफ के भीतर कई लोगों के लिए आश्चर्यजनक रहा है, क्योंकि वाम दल अब तक राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) के कट्टर विरोधी रहे हैं। PM श्री योजना इसी नीति के ढांचे के तहत लागू की गई है। CPI(M)-नेतृत्व वाली सरकार का कहना है कि यह कदम केवल प्रशासनिक मजबूरी में उठाया गया है, ताकि केंद्र से मिलने वाली सहायता राशि स्कूलों के विकास के लिए प्राप्त की जा सके। वहीं, CPI का आरोप है कि यह निर्णय एक “राजनीतिक समझौता” है, जो एलडीएफ की सामूहिक नीति के विपरीत है।

“NEP को नहीं अपनाएगा केरल”

पिछले सप्ताह राज्य सरकार ने शिक्षा विभाग को केंद्र के साथ समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर करने की अनुमति दी। शिक्षा मंत्री वी. शिवनकुट्टी ने स्पष्ट किया कि यह कदम सिर्फ़ लंबित केंद्रीय सहायता प्राप्त करने के लिए उठाया गया है और राज्य किसी भी तरह से NEP को समर्थन नहीं देगा। मंत्री ने कहा कि इस योजना से पहले दूर रहने के कारण राज्य के कई छात्र कल्याण कार्यक्रम जैसे मिड-डे मील और आधारभूत संरचना विकास प्रभावित हुए थे।

CPI का विरोध

CPI राज्य सचिव बिनॉय विश्वम ने सरकार के इस फैसले पर कड़ी नाराज़गी जताई है। उनका कहना है कि यह कदम एलडीएफ के भीतर पर्याप्त चर्चा किए बिना उठाया गया और यह “गठबंधन शिष्टाचार” का उल्लंघन है। विश्वम ने कहा कि PM श्री, NEP का ही विस्तार है, जिसे वाम दल वैचारिक आधार पर अस्वीकार कर चुके हैं। अब इसे स्वीकार करने का कोई कारण नहीं है। उन्होंने मांग की कि ऐसे फैसले फ्रंट स्तर पर चर्चा के बाद ही लिए जाएं।

पार्टी नेतृत्व शुक्रवार (24 अक्तूबर) को औपचारिक रुख तय करने की तैयारी में है। पार्टी के भीतर कुछ नेताओं ने मंत्रियों को कैबिनेट बैठकों से दूर रखने या सरकार से वापस बुलाने का सुझाव दिया है, हालांकि चुनावी माहौल में इस तरह का कदम उठाने की संभावना कम मानी जा रही है।

ज़रूरत से लिया गया निर्णय

CPI(M) ने इस विवाद पर सफाई देते हुए कहा कि यह फैसला “आवश्यकता” के कारण लिया गया है, न कि “विकल्प” के रूप में। पूर्व शिक्षा मंत्री और पार्टी के महासचिव एमए बेबी ने कहा कि राज्य गंभीर आर्थिक दबाव में है और स्कूलों के विकास कार्यों के लिए केंद्र की सहायता लेना मजबूरी बन गई है। CPI की चिंताओं का सम्मान किया जाएगा।

हमारी शर्तों पर होगा लागू

एलडीएफ संयोजक टीपी रामकृष्णन ने भी सरकार के कदम का बचाव किया। उन्होंने कहा कि राज्य की वित्तीय स्थिति को देखते हुए हर संभव सहायता स्रोत तलाशना जरूरी है। PM श्री योजना में शामिल होना स्वायत्तता छोड़ना नहीं है। इसका क्रियान्वयन हमारी शर्तों पर होगा।

वाम दलों का दोहरा रवैया

विपक्षी कांग्रेस ने इस विवाद पर एलडीएफ को घेरते हुए कहा कि CPI(M) ने चुपचाप केंद्र के साथ समझौता कर लिया है। UDF नेतृत्व का आरोप है कि वाम दल सार्वजनिक मंचों पर NEP का विरोध करते हैं, लेकिन धन प्राप्ति के लिए उसी नीति के तहत बनी योजना पर हस्ताक्षर कर रहे हैं। कांग्रेस नेताओं ने यह भी सवाल उठाया कि सरकार ने विधानसभा या जनता से परामर्श किए बिना अपना रुख क्यों बदला।

एलडीएफ की दुविधा

एलडीएफ के भीतर यह विवाद केवल शिक्षा नीति तक सीमित नहीं है; यह पुराने वैचारिक मतभेदों को भी सामने ला रहा है। जहां CPI वैचारिक सख़्ती पर अड़ी है, वहीं CPI(M) प्रशासनिक व्यवहारिकता को प्राथमिकता देती दिख रही है, खासकर तब जब राज्य की वित्तीय हालत कमजोर है और केंद्र की सहायता लगातार देरी का शिकार हो रही है। CPI(M) ने कांग्रेस के आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि कांग्रेस-शासित सभी राज्यों ने बिना विरोध के MoU पर हस्ताक्षर किए हैं, इसलिए उन्हें टिप्पणी करने का कोई अधिकार नहीं।

वैचारिक शुद्धता बनाम वित्तीय अस्तित्व

यह विवाद ऐसे समय में सामने आया है, जब एलडीएफ हमेशा से केंद्र की नीतियों के खिलाफ एकजुट रुख का दावा करता रहा है। अब सरकार के इस यू-टर्न ने वाम समर्थकों और शिक्षक संघों के बीच असंतोष बढ़ा दिया है। फिलहाल यह प्रकरण एलडीएफ की उस दुविधा को उजागर करता है, जिसमें एक ओर वैचारिक शुद्धता है तो दूसरी ओर वित्तीय अस्तित्व की अनिवार्यता और यही संतुलन आज केरल की शासन-व्यवस्था की सबसे बड़ी चुनौती बन गया है।

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