राजा, महाराजा और मामा, एमपी में ये तीन दिग्गज दे रहे हैं चुनावी एग्जाम
मध्य प्रदेश में एक साथ एक ही चरण में राजा, महाराजा और मामा चुनावी मैदान में हैं. यहां समझने की कोशिश करेंगे किसकी राह आसान और किसकी कठिन है.
Loksabha Election News 2024: मध्य प्रदेश में क्या बीजेपी 2019 जैसा प्रदर्शन दोहरा पाएगी. क्या कांग्रेस, बीजेपी के आंकड़ों में सेंध लगा सकने में कामयाब होगी. दरअसल ये दोनों सवाल अहम है, बीजेपी जहां 370 और 400 पार का नारा दे रही है वहीं कांग्रेस को यकीन है कि इस दफा सरकार तो गैर बीजेपी दलों की बनेगी. इन सबके बीच मध्य प्रदेश के चुनाव में राजा, महाराजा और मामा चुनावी मैदान में हैं. इस सूबे में राजा का मतलब दिग्विजय सिंह, महाराजा का मतलब ज्योतिरादित्य सिंधिया और मामा का मतलब शिवराज सिंह चौहान है. मध्य प्रदेश के चुनाव में मामा की अगुवाई में बीजेपी ने शानदार प्रदर्शन किया था. लेकिन सीएम की कुर्सी मोहन यादव के हाथ आई. यहां हम एक एक कर तीनों उम्मीदवारों की बात करेंगे.
शिवराज सिंह चौहान
मामा के नाम से मध्य प्रदेश में लोकप्रिय शिवराज सिंह चौहान, विदिशा सीट से किस्मत आजमां रहे हैं, मध्य प्रदेश का सीएम बनने से पहले वो बीजेपी की केंद्रीय राजनीति के हिस्सा थे. 1991, 1996, 1998, 1999, 2004 में वो चुनाव जीतने में कामयाब भी रहे. सीएम बनने के बाद इस सीट से सुषमा स्वराज चुनाव लड़ा करती थीं. इस सीट पर कांग्रेस को चालीस साल पहले जीत मिली थी. इस सीट पर कांग्रेस की तरफ से भानू प्रताप शर्मा किस्मत आजमां रहे हैं.
ज्योतिरादित्य सिंधिया
ज्योतिरादित्य सिंधिया को ग्वालियर-चंबल संभाग में महाराजा के नाम से जाना जाता है. ये गुना संसदीय सीट से 2019 तक कांग्रेस का प्रतिनिधित्व करते रहे. 2002, 2004, 2006, 2009, 2014 में कांग्रेस के टिकट पर सांसद बने. लेकिन 2019 का चुनाव बीजेपी के के पी यादव से हार गए. इस सीट पर कांग्रेस की तरफ से राव यादवेंद्र सिंह यादव कड़ी टक्कर दे रहे हैं. सिंधिया के समर्थन में अमित शाह खुद रैली कर चुके हैं. लेकिन उनकी राह आसान नहीं मानी जा रही है. इस सीट पर यादव वोट प्रभावी भी है. जानकार कहते हैं कि 2019 में हार के पीछे एक बड़ी वजह यह भी थी.
दिग्विजय सिंह
राजगढ़ संसदीय सीट से दिग्विजय सिंह किस्मत आजमा रहे हैं. इलाके के लोग उन्हें राजा जी के नाम से पुकारते हैं. 2024 के चुनाव को वो अपना आखिरी चुनाव भी बता रहे हैं. इस सीट पर 1984, 1991 में कब्जा रहा. लेकिन 1989 में वो बीजेपी के प्यारे लाल खंडेलवाल से हार गए. संसदीय राजनीति के बाद इन्होंने राज्य की राजनीति का हिस्सा बने और सीएम बने. सीएम पद से हटने के बाद वो केंद्रीय राजनीति का हिस्सा बने लेकिन संसद में बने रहने के लिए ऊपरी सदन यानी राज्यसभा को चुना.इस सीट पर कांग्रेस को आखिरी जीत साल 2009 में मिली थी.अगर बात 2019 के नतीजे की करें तो रोडमल नागर 65 फीसद वोट शेयर के साथ जीत हासिल करने में कामयाब रहे. इस सीट पर लड़ाई टाइट रही.