तिरुपति बालाजी, फूलों से भक्ति और परंपरा का अद्भुत संगम
तिरुपति तिरुमाला मंदिर में भगवान वेंकटेश्वर और मूर्तियों को प्रतिदिन 300 किलो फूलों और सुगंधित पत्तियों से सजाया जाता है, भक्ति और परंपरा का प्रतीक है।
तिरुपति बालाजी मंदिर में भगवान वेंकटेश्वर स्वामी को उनकी पत्नियों श्रीदेवी और भूदेवी के साथ फूलों की माला पहनाना एक प्राचीन परंपरा है। इन मालाओं की लंबाई लगभग डेढ़ मूड़ा (हाथ की लंबाई) होती है, जो भक्ति और दिव्य प्रेम का प्रतीक मानी जाती है।
यद्यपि भगवान को सोने-हीरे जड़ित आभूषणों से सजाया जाता है, लेकिन मंदिर परंपरा में फूलों का महत्व सबसे अलग है। फूल न केवल शांति और सौंदर्य का वातावरण रचते हैं, बल्कि भक्तिभाव की अभिव्यक्ति भी होते हैं। मंदिर प्रशासन के अनुसार, प्रतिदिन लगभग 15 टन फूल भारत और विदेशों से तिरुमाला लाए जाते हैं। इन्हें करीब 200 महिलाएँ जोड़कर 2,000 गज लंबी मालाओं में बदल देती हैं। विशेषकर ब्रहमोत्सवम पर्व के दौरान फूलों का उपयोग चरम पर होता है। वर्ष 2024 में जहां 40 टन फूलों का प्रयोग हुआ, वहीं इस बार यह संख्या 60 टन तक पहुँचने की संभावना है।
पुष्प अर्पण की पवित्रता
प्राचीन तमिल ग्रंथ तिरुवायमोलि में भी भगवान वेंकटेश्वर को फूल अर्पित करने की महिमा का उल्लेख मिलता है। प्रतिदिन भगवान को लगभग 121 किलो सोने और हीरे जड़ित आभूषण पहनाए जाते हैं और उसके बाद पुष्प सज्जा होती है। विशेषकर गुरुवार को केवल फूलों से ही भगवान का श्रृंगार किया जाता है।
इन सज्जाओं को विशेषज्ञ सज्जाकारों द्वारा अत्यंत सावधानी से तैयार किया जाता है। तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम (TTD) ने फूलों की सजावट पर निगरानी रखने के लिए विशेष अधिकारी नियुक्त किए हैं। प्रत्येक फूल, माला और सुगंध को अत्यंत पवित्र माना जाता है।
संस्कृत विद्वान वैद्य वेंकटेशाचार्य के अनुसार “फूल रंग और सुगंध का दिव्य संगम हैं। देवताओं को फूल और पवित्र पत्ते अर्पित करना हिंदू परंपरा का मूल हिस्सा है। तिरुमाला कलियुग का वैकुंठ है, और भगवान श्रीनिवास अपनी पुष्प सज्जा से इसी दिव्यता को प्रकट करते हैं।”
प्रतिदिन 300 किलो फूलों से सजावट
प्रतिदिन भगवान वेंकटेश्वर और उनके भोग श्रीनिवास मूर्ति (चाँदी की प्रतिमा, जो मुख्य विग्रह के समीप रखी जाती है) को सिर से पाँव तक लगभग 300 किलो फूलों और सुगंधित पत्तियों से सजाया जाता है। इसके लिए TTD का बागवानी विभाग, 50 कर्मचारियों और स्वयंसेवकों के साथ मिलकर प्रतिदिन आठ प्रकार की मालाएँ तैयार करता है।
TTD ईओ अनिल कुमार सिंगल ने 2025 के ब्रहमोत्सव की तैयारी की घोषणा करते हुए कहा इस वर्ष हम 60 टन फूलों का उपयोग कर मंदिर परिसर को पुष्प-छत्रों और भव्य सजावट से भर देंगे।”
मौसमी फूल और पत्तियाँ
TTD गार्डन उप निदेशक श्रीनिवासुलु के अनुसार, “मौसम के आधार पर 12 प्रकार के फूल और छह प्रकार की पत्तियाँ चुनी जाती हैं।”
ग्रीष्म ऋतु में मल्लिका (जैस्मीन)
अगस्त से मार्च तक गुलदाउदी (क्राइज़ेंथेमम)
कार्तिक और धनुर मास में पारिजात व बेलपत्र
नियमित पूजा में उपयोग होने वाले फूलों में कुमुदिनी, मल्लिका, गुलाब, कनेर, कमल और जलकुंभी शामिल हैं। तुलसी, पनीर पत्ता, बिल्वपत्र, दवाना और मरुवम जैसी पत्तियाँ विशेष सुगंध और पवित्रता के कारण चुनी जाती हैं।
दैनिक अनुष्ठान और परंपरा
प्रतिदिन सुबह-शाम विशेष बाँस की टोकरियों में मालाएँ लाई जाती हैं। इन्हें जीयर स्वामी (जो संत रामानुजाचार्य की परंपरा से जुड़े हैं) अपने सिर पर उठाकर संगीत और वाद्ययंत्रों के साथ ध्वज-स्तंभ तक ले जाते हैं, फिर गर्भगृह में भगवान को अर्पित करते हैं।
TTD का गार्डन विभाग 15 महिलाओं और 35 पुरुषों की टीम के साथ शिफ्टों में काम करता है। प्रतिदिन 12 फूलों और छह पत्तियों से 300 किलो सामग्री का उपयोग कर आठ प्रकार की मालाएँ बनाई जाती हैं।
विशेष मालाएँ
जैसे प्रसादम बनाने में विशेष नियम होते हैं, वैसे ही मालाओं की तैयारी में भी सटीक अनुपात का पालन किया जाता है। कुछ प्रमुख मालाएँ इस प्रकार हैं —
शिखमणि : सिर से दोनों कंधों तक जाने वाली माला, लगभग 8 मूड़ा लंबी।
शालिग्राम माला : दो मालाएँ, प्रत्येक 4 मूड़ा लंबी, जो कंधों से पैरों तक लटकती हैं।
कंठसारी : गर्दन से कंधों तक की परतदार माला, लगभग 3.5 मूड़ा लंबी।
प्रमुख पुष्प मालाएँ और सज्जा
वक्षस्थल लक्ष्मी (Vakshasthala Lakshmi): श्रीदेवी और भूदेवी के लिए दो 3.5 मूड़ा लंबी मालाएँ।
शंख-चक्र मालाएँ (Shanku-Chakra Malas): शंख और चक्र के लिए 1 मूड़ा लंबी मालाएँ।
खटारी सारम (Khatari Saram): नाभि पर स्थित पवित्र तलवार (नंदक) के लिए 2 मूड़ा लंबी माला।
टावलम (Tavalams): कोहनी से घुटनों और घुटनों से पांव तक लटकने वाली तीन मालाएँ, विशेष माप के अनुसार बनाई जाती हैं।
तिरुवाड़ी मालाएँ (Tiruvadi Malas): पांव के चारों ओर सजाने के लिए दो मालाएँ, प्रत्येक 1 मूड़ा लंबी।
इन मालाओं को पुला आरा नामक विशेष फूलों के कक्ष में सुरक्षित रखा जाता है।
पुष्प दर्शन (Pulangi Seva)
हर गुरुवार को विशेष पुलंगी सेवा आयोजित की जाती है, जिसमें भगवान को केवल पुष्प मालाओं से सजाया जाता है—कोई आभूषण नहीं। TTD की एक विशेष टीम पहले से इन मालाओं की तैयारी करती है, ताकि आनंद निलयम गर्भगृह की सभी मूर्तियों के लिए ये उपलब्ध हों।
TTD का बागवानी विभाग 50 कर्मचारियों (15 महिलाएँ और 35 पुरुष) के साथ शिफ्टों में काम करता है। प्रतिदिन 300 किलो फूलों और 12 प्रकार के फूल व 6 सुगंधित पत्तियों का उपयोग कर 8 मालाएँ बनाई जाती हैं। ब्रह्मोत्सवम जैसे त्योहारों में नियमित उपयोग के अलावा और 300 किलो फूल जोड़े जाते हैं।
भोग श्रीनिवास की भूमिका
गर्भगृह में मुख्य मूर्ति के समीप भोग श्रीनिवास मूर्ति स्थित है। ऐसा माना जाता है कि इसे 614 ईस्वी में पलव देश की रानी समवई ने दान किया था। विमाना वेंकटेश्वर मूर्ति के नीचे पत्थर पर बनी शिलालेख में इस दान का उल्लेख है।आगम शास्त्र में भोग श्रीनिवास को कौतुक मूर्ति या श्रीमणावल परमाल कहा गया है। इस मूर्ति के लिए भी विशेष पुष्प माला बनाई जाती है। वहीं, कोलुवु श्रीनिवास, जो दैनिक भोग और प्रशासनिक अनुष्ठानों में पूजे जाते हैं, उनके लिए भी अलग माला तैयार की जाती है।
विदेश से आने वाले फूल
मंदिर में कई उत्सव मूर्तियाँ हैं, जिनके लिए अलग-अलग पुष्प मालाओं की आवश्यकता होती है। उदाहरण के लिए:उग्र श्रीनिवास के लिए श्रीदेवी और भूदेवी के साथ 3 मालाएँ।सीता-राम-लक्ष्मण मूर्तियों के लिए 3 मालाएँ।रुक्मिणी-कृष्ण के लिए 2 मालाएँ।ब्रह्मोत्सवम और अन्य विशेष अवसरों पर, फूलों का दान विदेशों से भी किया जाता है, जैसे यूके और बैंकाक से।
दैनिक फूलों का उपयोग और सज्जा प्रक्रिया
मंदिर प्रशासन के अनुसार, प्रतिदिन लगभग 15 टन फूल भारत और विदेशों से तिरुमाला लाए जाते हैं। इन्हें 200 महिलाएँ जोड़कर 2,000 गज लंबी मालाओं में बदल देती हैं।पहले ये फूल TTD के बेंगलुरु सूचना केंद्र भेजे जाते हैं, फिर तिरुमाला ले जाया जाता है। मंदिर की सज्जा और मूर्तियों को जीवंत बनाने के लिए 50 से अधिक विशेषज्ञ सज्जाकार कार्यरत हैं। केवल मंदिर के परिसर को सजाने के लिए लगभग 60 टन फूलों का उपयोग किया जाता है।
तिरुपति तिरुमाला मंदिर में पुष्प सज्जा केवल भव्यता का साधन नहीं, बल्कि भक्ति, परंपरा और दिव्यता का प्रतीक है। मुख्य मूर्तियों की पुष्प सज्जा में प्रत्येक फूल, माला और पत्ते का गहरा आध्यात्मिक महत्व है। चाहे मुख्य मूर्तियाँ सोने-हीरे के आभूषणों से सजी हों, फूल हमेशा भगवान की भक्ति और मंदिर की पवित्रता को प्रमुखता देते हैं।