साइकिल से की दूध की सप्लाई शराब से दौलत कमाई राजनिति में आकर बना डीपी भाई

कहानी पश्चिमी उत्तरप्रदेश के बाहुबली डीपी यादव की अपने ही राजनितिक गुरु की हत्या का आरोप लगा ब्लाक प्रमुख से सांसद तक का किया सफर

Update: 2024-05-17 11:43 GMT

उत्तर प्रदेश की सियासत में एक नाम ऐसा भी है जो कभी साइकिल पर दूध बेचने जाया करता था, लेकिन दूध बेचते बेचते वो शराब बेचने लगा और अकूत सम्पति का मालिक बन बैठा. इस दौरान उस पर अपराधिक मामले भी दर्ज हुए. फिर उसने शराब के कारोबार से राजनीती में कदम रखा. वो विधायक भी रहा और राज्यसभा सांसद भी लेकिन जैसा हर बाहुबली के साथ होता है, वाही इसके साथ भी हुआ. वक़्त के साथ जिस भी पार्टी ने इसे गले लगाया बाद में उसी ने ठुकरा भी दिया. बात ही रही है धर्मपाल यादव की जो शराब के कारोबार में आते ही बन गया डीपी यादव. डीपी यादव पश्चिमी उत्तर प्रदेश का वो नाम रहा जिसने मुलायम सिंह यादव के साथ मिल कर सपा के गठन में भूमिका भी निभाई और मुलायम सिंह के कैबिनेट में जगह भी पायी.

पिता के दूध के कारोबार को छोड़ अपनाया शराब का कारोबार

धर्मपाल यादव उर्फ़ डीपी यादव का जन्म 25 जुलाई 1948 को हुआ था. डीपी यादव के पिता दूध बेचते थे. वो दिल्ली के जगदीश नगर में दूध की डेरी चलाते थे. डीपी यादव भी साइकिल पर नॉएडा(पहले गाज़ियाबाद) के सर्फाबाद से दूध लेकर दिल्ली बेचने जाते थे. लेकिन धर्मपाल को दूध का कारोबार पसंद नहीं आया. उसकी मुलाकात शराब कारोबारी बाबु किशन लाल से हुई और फिर धर्मपाल भी शराब के धंधे में कूद गया. उसने धंधा बदलने के साथ ही नाम भी धर्मपाल से डीपी कर लिया.

कांग्रेस से बना ब्लाक प्रमुख

शराब के कारोबार में कदम रखने के बाद डीपी यादब सिर्फ गाज़ियाबाद तक ही सिमित नहीं रहा बल्कि हरियाणा पंजाब आदि राज्यों तक उसने अपनी पकड़ बनायीं. इस दौरान उस पर कई मामले भी दर्ज हुए. शराब के कारोबार में उसने काफी पैसा बनाया. अब वो राजनीती में भी कदम रखना चाहता था. ये 80 का दशक था. कांग्रेस के नेता बलराम सिंह यादव ने डीपी यादव को गाजियाबाद का कांग्रेस पिछड़ा वर्ग का जिलाध्यक्ष बनवा दिया. यहीं से उसके राजनीतिक सफर की शुरुआत हो गयी. डीपी यादव ने गाजियाबाद के नवयुग मार्केट में अपना कार्यालय भी खोला. इसी दौरान डीपी यादव का सम्पर्क महेन्द्र सिंह भाटी से हुआ. अब डीपी यादव को अपना राजनितिक गुरु भी मिल गया. वो पहली बार बिसरख से ब्लॉक प्रमुख चुना गया.

महेंद्र सिंह भाटी की हत्या का लगा आरोप

महेंद्र सिंह भाटी जिन्हें डीपी यादव अपना राजनितिक गुरु मानता था, सन 1992 में उन्हीं की हत्या का आरोप डीपी यादव पर ही लगा. सीबीआई ने मामले की जाँच की. निचली अदालत ने डीपी यादव को दोषी करार दिया लेकिन हाई कोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को पलट दिया और डीपी यादव इस मुकदमे में बरी हो गया.

मुलायम सिंह की पार्टी को बढ़ाने में निभाई भूमिका

80 के दशक के आखिर में मुलायम सिंह यादव अपनी खुद की पार्टी बना रहे थे. उन्हें ऐसे लोगों के साथ की जरूरत थी, जो आर्थिक तौर पर पार्टी की मदद कर सकें. ये मौका डीपी यादव को भा गया. वो नेताजी के साथ शामिल हो गया. 1993 में सपा के टिकट पर उनसे बुलंदशहर से चुनाव लड़ा. वो विधायक बना. मुलायम की पार्टी में महासचिव भी बना और कैबिनेट में मंत्री भी. लेकिन फिर डीपी यादव और मुलायम सिंह के बीच खटास पैदा हो गयी. 1996 में डीपी यादव में बसपा के टिकट पर संभल से लोकसभा का चुनाव लड़ा और जीता भी. 2004 में बीजेपी का साथ मिला और राज्यसभा सांसद भी बना लेकिन 2007 में बीजेपी ने उसे पार्टी से निकाल दिया. इसके बाद उसने खुद की पार्टी राष्ट्रीय परिवर्तन दल बनाई. इस पार्टी से दो विधायक भी विधानसभा पहुंचे. एक डीपी यादव और दूसरा उसकी पत्नी. लेकिन चुनावी खर्च का ब्यौरा न दे पाने के कारण डीपी यादव की पत्नी की सदस्यता चुनाव योग ने रद्द कर दी. इसके बाद डीपी यादव ने बसपा की टिकट पर चुनाव लड़ा लेकिन हार गया. एक बार फिर से सपा में जाने का प्रयास किया लेकिन अखिलेश यादव ने उसकी एंट्री रुकवा दी.

बेटा और भतीजा भी हत्या के मामले में जेल में बंद

डीपी यादव के बेटे विकास और भतीजे विशाल यादव पर नितीश कटारा की हत्या का आरोप लगा और दोनों को सजा भी हुई. इसी मामले में गवाह अजय कटारा पर जानलेवा हमला हुआ लेकिन वो बच गया. हत्या के प्रयास में विकास और विशाल के अलावा डीपी यादव का भी नाम आया. हालाँकि डीपी यादव इस मुकदमे में बरी हो गया है.

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