हिजाब खींचने के विवाद ने एक बार फिर नीतीश कुमार के सार्वजनिक व्यवहार और स्वास्थ्य पर सवाल खड़े कर दिए हैं

वायरल वीडियो को लेकर विपक्ष ने स्वास्थ्य से जुड़े सवाल उठाए, जबकि सत्तारूढ़ जद(यू) ने इस घटना को तूल न देने की कोशिश की और किसी भी तरह की स्वास्थ्य समस्या से इनकार किया

Update: 2025-12-19 13:09 GMT
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा एक युवा महिला डॉक्टर के चेहरे से हिजाब हटाने का मामला | वीडियो ग्रैब: X
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बिहार के मुख्यमंत्री 74 वर्षीय नीतीश कुमार के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को लेकर अटकलें एक बार फिर तेज हो गई हैं। यह चर्चा तब शुरू हुई जब उन्होंने इस सप्ताह की शुरुआत में एक आधिकारिक कार्यक्रम के दौरान युवा मुस्लिम आयुष डॉक्टर नुसरत परवीन के चेहरे से नक़ाब (हिजाब) हटा दिया। इस असामान्य व्यवहार ने न केवल तीखी आलोचना को जन्म दिया, बल्कि उस धारणा को भी बल दिया है जो पिछले कुछ समय से राज्य में चल रही है कि विपक्षी नेताओं के आरोपों के अनुसार वे शासन करने के लिए पूरी तरह फिट नहीं हैं।

यह घटना 15 दिसंबर को मुख्यमंत्री सचिवालय (जो उनके आधिकारिक आवास के पास स्थित है) में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान हुई। मुस्कुराते हुए नीतीश कुमार ने नुसरत को अन्य लोगों के साथ आयुष डॉक्टर के रूप में नियुक्ति पत्र सौंपने के कुछ ही मिनट बाद अचानक उनके चेहरे से हिजाब खींच दिया।

मुख्यमंत्री के सार्वजनिक व्यवहार पर विवाद

घटना इतनी अचानक हुई कि नुसरत हतप्रभ रह गईं। बिहार के सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहे और एक अनुभवी राजनेता से इस तरह के व्यवहार की किसी को उम्मीद नहीं थी। कैमरे में कैद यह दृश्य सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो गया और व्यापक रूप से रिपोर्ट किया गया।

स्थिति की गंभीरता को भांपते हुए, नीतीश के पीछे खड़े भाजपा नेता और उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी ने उन्हें रोकने के लिए उनकी बाजू खींचने की कोशिश की, लेकिन वे सफल नहीं हो सके। नुसरत की असहजता इस बात से और बढ़ गई कि वहां मौजूद लोग — जिनमें बिहार के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडे और सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी दीपक कुमार (पूर्व मुख्य सचिव और वर्तमान में मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव) शामिल थे — हंसते हुए दिखाई दिए।

बताया जाता है कि इस घटना से हिजाब पहनने वाली नुसरत इतनी आहत हुईं कि वे तुरंत अपने परिवार के पास कोलकाता चली गईं और उन्होंने सरकारी नौकरी जॉइन न करने का फैसला कर लिया। उन्हें 20 दिसंबर को पदभार ग्रहण करना था। नुसरत के एक करीबी रिश्तेदार ने कहा, “जो कुछ उनके साथ हुआ, उससे नुसरत खुद को अपमानित महसूस कर रही हैं और मानसिक तनाव में हैं। परिवार के समझाने के बावजूद उन्होंने आयुष डॉक्टर का पद स्वीकार करने से इनकार कर दिया।”

देशभर के कई मुस्लिम संगठनों और महिला अधिकार कार्यकर्ताओं ने नीतीश कुमार की निंदा की और उनसे माफी की मांग की। उनके खिलाफ एक शिकायत भी दर्ज कराई गई है।

सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ता कंचन बाला, जो 1990 के दशक के मध्य में समता पार्टी के दौर में नीतीश कुमार के साथ काम कर चुकी हैं, ने कहा, “क्या यह गंभीर मुद्दा नहीं है कि नीतीश कुमार जैसे नेता ने नक़ाब पहनी महिला की शक्ल-सूरत पर सवाल उठाया और जबरन उसके चेहरे से नक़ाब हटा दिया? यह उनकी मानसिक स्थिति को उजागर करता है। वे अस्वस्थ हैं और उन्हें मुख्यमंत्री पद पर बने नहीं रहना चाहिए। जो लोग उनकी स्थिति जानते हुए भी उनका बचाव कर रहे हैं, वे अपने राजनीतिक हितों के लिए उनका इस्तेमाल कर रहे हैं और उनके साथ-साथ राज्य के साथ भी अन्याय कर रहे हैं।”

सेहत को लेकर सियासी तकरार

इस घटना ने विपक्षी आरजेडी को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर हमला करने का मौका दे दिया। आरजेडी ने सवाल उठाया, “नीतीशजी को क्या हो गया है? उनकी मानसिक स्थिति बेहद दयनीय स्तर पर पहुंच गई है।” हालांकि, नीतीश कुमार की पार्टी जद(यू) के नेताओं ने इन दावों को सिरे से खारिज करते हुए सार्वजनिक रूप से कहा कि वे पूरी तरह स्वस्थ और फिट हैं। यह बहस अब जोर पकड़ चुकी है कि क्या यह घटना नीतीश कुमार की मानसिक सेहत से जुड़ी है या नहीं।

एक पूर्व केंद्रीय मंत्री और जद(यू) के वरिष्ठ नेता, जिन्हें कभी पार्टी में नीतीश के बाद दूसरा सबसे प्रभावशाली माना जाता था, ने कहा, “उन्हें उम्र से जुड़ी स्वास्थ्य समस्याएं हैं, जो कभी-कभी सार्वजनिक व्यवहार में दिखाई देती हैं, जो पहले नहीं दिखती थीं। यह चिंता का विषय है। हालांकि, जब तक कोई मेडिकल बुलेटिन सार्वजनिक नहीं किया जाता, तब तक इसका कोई दस्तावेजी प्रमाण नहीं है।”

आरजेडी नेता एजाज अहमद ने कहा कि नीतीश कुमार में गंभीर स्वास्थ्य समस्या के लक्षण दिख रहे हैं। “पिछले एक साल में उनका सार्वजनिक व्यवहार बार-बार इसका संकेत देता रहा है।”

पारदर्शिता की नई मांग

कुछ नौकरशाह, जिन्होंने वर्षों तक उनके साथ काम किया है, और उनके करीबी जद(यू) नेता निजी तौर पर मानते हैं कि नीतीश कुमार का व्यवहार बदला हुआ नजर आ रहा है। एक पूर्व मंत्री और जद(यू) नेता ने कहा, “नीतीशजी अब पहले जैसे नहीं रहे। वे कभी अपनी शालीनता, छवि के प्रति सजगता और सार्वजनिक आचरण के लिए जाने जाते थे। अब ऐसा लगता है कि वे बदल गए हैं — वे वही पुराने नीतीश कुमार नहीं रहे।”

टीआईएसएस (पटना) के पूर्व प्रोफेसर पुष्पेंद्र कुमार ने कहा कि अप्रत्याशित व्यवहार के कारण नीतीश कुमार का चर्चा और गॉसिप का केंद्र बनना, न उनके लिए अच्छा है और न ही राज्य के लिए, खासकर जब वे एक संवैधानिक पद पर हैं। उन्होंने सुझाव दिया कि यदि नीतीश कुमार स्वस्थ हैं और अपनी स्थिति को लेकर सजग हैं, तो मुख्यमंत्री कार्यालय को एम्स पटना, आईजीआईएमएस पटना और पीएमसीएच के डॉक्टरों की एक मेडिकल बोर्ड बनाकर उनकी फिटनेस का प्रमाणपत्र जारी करना चाहिए।

उन्होंने कहा, “अब समय आ गया है कि पार्टी और मुख्यमंत्री कार्यालय उनकी मानसिक और शारीरिक सेहत पर मेडिकल रिपोर्ट सार्वजनिक करे, ताकि अफवाहों, चर्चाओं और अटकलों पर विराम लग सके। आखिरकार, वे बिहार जैसे बड़े राज्य की सरकार का नेतृत्व कर रहे हैं।”

विवाद के बाद मीडिया की पहुंच सीमित

ऐसा प्रतीत होता है कि भविष्य में इस तरह की घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकने और सार्वजनिक मंचों पर किसी भी अनियंत्रित व्यवहार से बचने के लिए, नीतीश कुमार के करीबी और उनके सार्वजनिक कार्यक्रमों का प्रबंधन करने वाले प्रभावशाली समूह ने मीडिया की पहुंच सीमित करने का फैसला किया है।

इसका संकेत 16 दिसंबर (मंगलवार) को तब मिला, जब पटना में ऊर्जा विभाग के नियुक्ति पत्र वितरण कार्यक्रम में मीडिया कर्मियों को प्रवेश नहीं दिया गया। इसी तरह, बुधवार (17 दिसंबर) को बोधगया में उनके पूरे दिन के कार्यक्रम के दौरान भी मीडिया की एंट्री सीमित रही। यहां तक कि जद(यू) ने अपने आधिकारिक प्लेटफॉर्म पर कार्यक्रम का लाइव प्रसारण भी नहीं किया, जो इससे पहले कभी नहीं हुआ था।

“सोमवार को जो कुछ गलत हुआ, उसके बाद पिछले दो दिनों से नीतीश कुमार के कार्यक्रमों में मीडिया की एंट्री नहीं दी गई। अब उनके कार्यक्रमों का पैटर्न बदल दिया गया है। वे बड़े आयोजनों के बजाय केवल चुनिंदा उम्मीदवारों को ही नियुक्ति पत्र सौंपेंगे। कोई लाइव स्ट्रीमिंग नहीं होगी और मुख्यमंत्री कार्यालय की ओर से सिर्फ चयनित तस्वीरें और वीडियो क्लिप ही जारी की जाएंगी,” जनसंपर्क विभाग के एक अधिकारी ने कहा।

इसके बावजूद जद(यू) नेताओं ने नीतीश कुमार की सेहत को लेकर उठ रहे सभी सवालों को सार्वजनिक रूप से खारिज किया है और लगातार यह दावा किया है कि वे पूरी तरह स्वस्थ, फिट और सक्रिय हैं। पार्टी नेताओं का कहना है कि वे नियमित रूप से विभिन्न स्थानों का दौरा कर रहे हैं, परियोजनाओं का उद्घाटन कर रहे हैं, चल रहे कार्यों का निरीक्षण कर रहे हैं और उच्चस्तरीय बैठकों की अध्यक्षता कर रहे हैं।

पिछले व्यवहार पर भी सवाल

हालांकि यह कोई अकेली घटना नहीं थी। पिछले महीने नीतीश कुमार ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पैर छूने की कोशिश की थी। अक्टूबर के मध्य में मुजफ्फरपुर में हुई अपनी पहली चुनावी रैली में भी वे अपने भाषण से ज्यादा अपने असामान्य व्यवहार को लेकर सुर्खियों में रहे।

अक्टूबर 2025 की शुरुआत में, प्रधानमंत्री मोदी की मौजूदगी वाले एक वर्चुअल कार्यक्रम के दौरान नीतीश कुमार को एक मिनट से अधिक समय तक हाथ जोड़े बैठे देखा गया। इस दौरान उनके हाथ हल्के से कांप रहे थे, वे इधर-उधर देख रहे थे और बीच-बीच में मुस्कुरा रहे थे। इससे पहले एक सरकारी कार्यक्रम में उन्होंने एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी के सिर पर फूलदान रख दिया था।

इसी साल मार्च में एक सार्वजनिक कार्यक्रम में उन्हें एक महिला के कंधे पर हाथ रखते हुए देखा गया था और एक अन्य कार्यक्रम में वे एक महिला को छूने की कोशिश करते नजर आए। विपक्षी नेताओं ने इन घटनाओं की आलोचना की और उनकी मानसिक स्थिति पर सवाल उठाए।

उसी महीने एक और कार्यक्रम में राष्ट्रगान के दौरान नीतीश कुमार को मुस्कुराते, हंसते, बात करते और हाथ हिलाते हुए देखा गया। यह व्यवहार ऐसे मुख्यमंत्री से पहले कभी नहीं जुड़ा रहा, जो 2005 से (2014 में एक छोटे अंतराल को छोड़कर) सत्ता में रहे हैं। विपक्षी आरजेडी ने इसे राष्ट्र का अपमान बताया और माफी की मांग की।

बढ़ती अटकलों के बीच चुप्पी

हालांकि जद(यू) नेताओं ने लगातार इन घटनाओं को हल्के में लिया है और उनके असामान्य सार्वजनिक व्यवहार पर चुप्पी साधे रखी है। कई लोगों का मानना है कि यह चुप्पी उनकी गिरती मानसिक सेहत को लेकर फैल रही अफवाहों और अटकलों का संकेत है।

एक राजनीतिक विश्लेषक ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, “कोई भी इसे सार्वजनिक रूप से कहने की हिम्मत नहीं करता, क्योंकि कोई दस्तावेजी सबूत नहीं है। लेकिन यह सच है कि नीतीश कुमार का सार्वजनिक व्यवहार उनकी सेहत को लेकर चिंताओं को बढ़ा रहा है। वे अभी भी अपनी पार्टी और सरकार पर पकड़ बनाए हुए हैं, लेकिन उनकी स्थिति किस दिशा में जाएगी, इसका अंदाजा कोई नहीं लगा सकता।”

दिलचस्प बात यह है कि इस पूरे विवाद पर भाजपा ने चुप्पी साध रखी है और उसके नेता भी इस घटनाक्रम को तवज्जो देने से बचते नजर आ रहे हैं।

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