भाषा पर सियासी घमासान, ‘हिंदी थोपने’ के आरोपों के बीच महाराष्ट्र सरकार का यू-टर्न
Maharashtra में पहली से पांचवी तक हिंदी अब जरूरी नहीं है. छात्र अब तीसरी भाषा के रूप में विकल्प चुन सकेंगे. सरकार ने कहा कि मराठी की रक्षा और हिंदी का उपयोग, दोनों ज़रूरी है.;
three-language formula: महाराष्ट्र स्कूल शिक्षा विभाग ने मंगलवार को ऐलान किया कि अब राज्य बोर्ड के मराठी और इंग्लिश मीडियम स्कूलों में कक्षा 1 से 5 तक हिंदी भाषा पढ़ना अनिवार्य नहीं होगा. हालांकि, तीन-भाषा फार्मूला पहले की तरह लागू रहेगा. लेकिन हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में चुनना अब जरूरी नहीं होगा.
स्कूल शिक्षा मंत्री दादा भुसे ने कहा कि हम तीन-भाषा नीति को जारी रखेंगे. लेकिन अगर किसी कक्षा में बड़ी संख्या में छात्र कोई दूसरी भाषा पढ़ना चाहते हैं तो स्कूल को उसे अपनाना होगा. उन्होंने बताया कि जल्द ही सरकार की तरफ से नया आदेश (GR) जारी किया जाएगा, जिसमें ‘अनिवार्य’ शब्द को हटाया जाएगा.
विवाद के बीच आया फैसला
यह निर्णय तब लिया गया, जब राज्य की भाषा सलाहकार समिति के अध्यक्ष लक्ष्मीकांत देशमुख ने इसका विरोध किया. इसके बाद सरकार को सफाई देनी पड़ी कि हिंदी को थोपने का इरादा नहीं है.
विपक्ष का कड़ा विरोध
इस फैसले के खिलाफ महाराष्ट्र की कई विपक्षी पार्टियों ने जोरदार विरोध जताया. राज ठाकरे की मनसे ने सबसे आक्रामक रुख अपनाया. उद्धव ठाकरे की शिवसेना (UBT) ने भाजपा पर भाषा के नाम पर लोगों को बांटने का आरोप लगाया. वहीं, कांग्रेस नेता विजय वडेट्टीवार ने इसे "मराठी भाषा पर हमला" और "राज्य की स्वायत्तता पर चोट" बताया.
दबाव में भाजपा
राज्य की सत्तारूढ़ भाजपा अब दबाव में है. क्योंकि महाराष्ट्र, खासकर मुंबई में भाषा का मुद्दा बहुत संवेदनशील रहा है. मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने सफाई दी कि हिंदी एक आम संवाद भाषा है. लेकिन मराठी का सम्मान और संरक्षण भी उतना ही जरूरी है. भाजपा नहीं चाहती कि उसे ‘मराठी विरोधी’ के रूप में देखा जाए.
महाराष्ट्र और भाषा की राजनीति
1950 के दशक में संयुक्त महाराष्ट्र आंदोलन चला था, जिसमें मुंबई को मराठी भाषी राज्य की राजधानी बनाने की मांग की गई थी. इसका परिणाम 1960 में महाराष्ट्र राज्य के गठन के रूप में हुआ. बाल ठाकरे की शिवसेना ने "मराठी मानूस" के अधिकारों के लिए आंदोलन किया और दक्षिण भारतीय और उत्तर भारतीय समुदायों के खिलाफ विरोध भी किया था.