म्यांमार संकट में मिजोरम की कूटनीतिक भूमिका, भारत ने बदली नीति
नई दिल्ली अपने हितों की रक्षा के लिए म्यांमार में विद्रोहियों के साथ 'शटल कूटनीति' के लिए मिजो राजनेताओं, नागरिक समाज समूहों का लाभ उठा रही है, जैसे कि केएमएमटी परियोजना।;
म्यांमार में सैन्य जुंटा और विद्रोही गुटों के बीच जारी संघर्ष के बीच भारत ने अपनी पड़ोसी नीति में बड़ा बदलाव करते हुए मिजोरम को एक अहम कड़ी बना दिया है। भारत अब म्यांमार के गैर-राज्य (नॉन-स्टेट) से बातचीत के लिए मिजोरम के प्रभावशाली नेताओं और नागरिक संगठनों की मदद ले रहा है। विश्वसनीय सूत्रों के अनुसार, मिजोरम के मुख्यमंत्री लालदूहोमा और पूर्व मुख्यमंत्री जोरमथांगा जैसे वरिष्ठ नेता म्यांमार के जातीय विद्रोहियों से बातचीत कर रहे हैं, ताकि भारत के सामरिक हितों की रक्षा की जा सके।
शांति के लिए मध्यस्थता
मुख्यमंत्री लालदूहोमा ने "चिनलैंड में शांति के लिए एडवोकेसी समूह" भी गठित किया है। इस समूह ने हाल ही में दो प्रतिस्पर्धी विद्रोही गुटों चिन नेशनल फ्रंट (CNF) और इंटरिम चिन नेशनल कंसल्टेटिव काउंसिल (ICNCC) के बीच संघर्षविराम समझौता कराने में सफलता हासिल की। यह फरवरी 2025 की एक और सफल मध्यस्थता का ही विस्तार है। इस प्रयास में मिजोरम की दो प्रमुख नागरिक संस्थाएं यंग मिजो एसोसिएशन (YMA) और जो री-यूनिफिकेशन ऑर्गनाइजेशन (ZORO) भी शामिल हैं।
‘शटल डिप्लोमैसी’
भारत सरकार ने रणनीतिक रूप से इस 'शटल डिप्लोमेसी' को मिजोरम के नेताओं के हवाले किया, ताकि दिल्ली और म्यांमार के विद्रोहियों के बीच हो रही बातचीत सार्वजनिक न हो। विद्रोही समूहों में विशेष रूप से अराकान आर्मी (AA) भारत के लिए चुनौती रही है, क्योंकि वह म्यांमार के रणनीतिक राखीन राज्य पर नियंत्रण रखती है, जहां भारत का महत्वाकांक्षी कलादान मल्टी-मॉडल ट्रांजिट प्रोजेक्ट (KMMT) स्थित है।
भारत की दुविधा
राखीन राज्य भले ही भारत की सीमा से न जुड़ा हो, लेकिन वहां स्थित सिटवे पोर्ट भारत के उत्तर-पूर्व को समुद्री रास्ते से जोड़ने के लिए अहम है। हालांकि, इस पोर्ट के आसपास के क्षेत्र पर अब अराकान विद्रोहियों का कब्जा है, जिससे परियोजना में रुकावटें आ रही हैं। भारत के पारंपरिक सहयोगी जुंटा के पास केवल राजधानी सिटवे का नियंत्रण है, इसलिए भारत को अब विद्रोहियों को साथ लेकर चलना मजबूरी बन गया है।
‘ऑपरेशन लीच’
भारत की अराकान आर्मी से सीधी बातचीत की कोशिशें 2024 में बैंकोक, दिल्ली और अगरतला में हुईं, लेकिन 1998 में अंडमान में हुई ‘ऑपरेशन लीच’ की यादों ने विश्वास को तोड़ दिया। उस गुप्त सैन्य अभियान में AA के कई सदस्य मारे गए थे, जिसे विद्रोही आज भी “विश्वासघात” मानते हैं।
मिजो नेताओं की पहल से बनी बात
इन हालातों में मिजो नेताओं खासकर जोरमथांगा ने मध्यस्थ की भूमिका निभाई और अराकान विद्रोहियों के साथ “सार्थक वार्ताएं” कीं। इसके बाद AA ने मिजोरम में अपना प्रतिनिधि कार्यालय स्थापित किया, जो भारत के साथ संबंधों के नए युग की ओर इशारा करता है। इसी तरह CNF के भी कई गुप्त कार्यालय मिजोरम में मौजूद हैं, जिससे मिजोरम की रणनीतिक भूमिका और स्पष्ट हो जाती है।
पालेटवा पर तनाव
चिन राज्य का सीमावर्ती कस्बा पालेटवा अब AA के कब्जे में है, जिस पर चिन और अराकान विद्रोहियों के बीच टकराव बढ़ा है। भारत जानता है कि अगर इन विद्रोही समूहों में आपसी संघर्ष जारी रहा तो परियोजनाओं पर असर पड़ेगा। इसी कारण मिजो नेताओं ने चिन नेशनल फ्रंट और अराकान आर्मी को एक मंच पर लाने की कोशिश की। ऐतिहासिक मुलाकात में CNF की ओर से उपाध्यक्ष थांग येन और AA की ओर से कमांडर-इन-चीफ त्वान म्रात नाइंग समेत कई वरिष्ठ नेता शामिल हुए।
विदेश नीति में राज्यों की भूमिका
यह घटनाक्रम भारत के विदेश नीति इतिहास में एक दुर्लभ उदाहरण है, जब किसी राज्य मिजोरम को इस तरह की प्रत्यक्ष कूटनीतिक भूमिका में देखा जा रहा है। इससे पहले 1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम में पश्चिम बंगाल और त्रिपुरा ने ऐसी भूमिका निभाई थी। मिजोरम, जो लंबे समय तक उग्रवाद से प्रभावित रहा है, अब भारत की पूर्वोत्तर नीति का कूटनीतिक पुल बन गया है।