लखनऊ: मोहर्रम से बाहर होंगे अमेरिकी प्रोडक्ट, स्वदेशी पर जोर

मोहर्रम का महीना 27 जून से शुरू हो रहा है। लोग इमाम हुसैन की शहादत को याद करने के लिए मजलिसें करते हैं और तबर्रुक ( प्रसाद) बाँटते हैं। लखनऊ में अमरीकी कंपनियों का सामान न बाँटने और स्वदेशी सामान का तबर्रुक बाँटने की बात शिया समुदाय के लोग कर रहे हैं।;

By :  Shilpi Sen
Update: 2025-06-25 12:03 GMT
मोहर्रम में अज़ादारी और मजलिसों का दौर चलता है( फाइल फोटो)

ईरान और इज़राइल के बीच 12 दिन बाद सीज़फ़ायर भले ही हो गया हो पर अमेरिका और इज़राइल का विरोध लखनऊ में शिया समुदाय के लोग शांतिपूर्वक तरीके से करेंगे। इस विरोध का असर 27 जून से शुरू होने वाले मोहर्रम महीने में देखने को मिलेगा। मोहर्रम में मजलिसों के बाद बँटने वाले तबर्रुक (प्रसाद) में अमेरिकी कंपनियों के प्रोडक्ट नहीं बांटे जाएँगे। उनकी जगह देश में बनी हुई चीज़ें बाँटने के लिए लोगों को सहमत किया जा रहा है। मोहर्रम कर्बला की जंग में शहीद हुए इमाम हुसैन और उनके 72 अनुयायियों की शहादत को याद करते हुए मनाया जाता है। इस पूरे महीने लोग इबादत करते हैं।

भेजा जा रहा है मैसेज

माह-ए-ग़म मोहर्रम महीना 27 जून से शुरू हो रहा है। पूरे महीने और ख़ास तौर पर आशूर ( मोहर्रम की दसवीं तारीख) तक शिया समुदाय के लोगों के घर में मजलिसों का दौर चलेगा। पर इस बार आज़ादारी के अलावा अमेरिका और इज़राइल का विरोध भी मोहर्रम में किया जाएगा। लखनऊ में मोहर्रम से पहले घर-घर में मैसेज भेजा जा रहा है। आज़ादरों को इस बात के लिए मैसेज भेजकर जागरूक किया जा रहा है कि मोहर्रम में मजलिसों के दौरान बांटा जाने वाला तबर्रुक ( प्रसाद) इस बार अलग हो। इसके लिए क़रीब 84 प्रॉडक्ट्स की एक लिस्ट भी लोगों को भेजी जा रही है और लोगों को अमेरिका की कंपनियों का बहिष्कार करने के लिए कहा का रहा है।

अमेरिकी सामानों का बहिष्कार

मोहर्रम में अपने घर में मजलिस करने वाली फराह रिज़वी कहती हैं कि ‘जिस तरह से इजराइल ने अत्याचार किया उसका सबूत हम लोगों ने गाज़ा में देखा। मोहर्रम में हम लोग इमाम हुसैन और सभी शहीदों को याद करते हैं। हम लोग ईरान तो नहीं जा सकते लेकिन अपनी तरह से विरोध तो कर ही सकते हैं। हम लोग घर में आशूर तक मजलिसें करते हैं। उसके बाद तबर्रुक तकसीम किया जाता है। यानि जो लोग मोहल्ले के या रिश्तेदार आते हैं उनको खाने-पीने का सामान इमाम हुसैन और कर्बला के शहीदों के नाम पर दिया जाता है। इस बार हम लोग अमेरिकी और इज़राइली कंपनियों का सामान नहीं देंगे।’




 


लखनऊ में दरगाह हज़रत अब्बास, काज़मेन, नक्ख़ास, नजफ़, मैदान इलश ख़ान जैसे इलाक़ों में बड़ी संख्या में शिया मुसलमान रहते हैं। दरअसल मोहर्रम में मजलिसों के बाद तबर्रुक तकसीम किया जाता है। लोग अपने हैसियत और आर्थिक स्थिति के अनुसार लोगों को ख़ास तौर पर आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को खाने पीने की चीज़ें बांटते भी हैं। लखनऊ में संस्थाएं भी सबील ( प्याऊ) लगाती हैं। लोगों को भोजन भी कराया जाता है।समय के साथ तबर्रुक में बदलाव आया है। पहले जहाँ शीरमाल, बेकरी के बिस्किट, नमकीन, शरबत दिए जाते थे वहीं अब रेडीमेड खाने पीने की चीज़ें दी जाती हैं। उसमें अमेरिका की कंपनियों की चीज़ें बड़ी संख्या में हैं। पर इस बार ट्रंप और इज़राइल, अमेरिका के विरोध में लोग अमेरिकी कंपनियों का भी बहिष्कार करेंगे।

हर चीज़ का स्वदेशी विकल्प

घर-घर भेजे जा रहे संदेश में ये कहा जा रहा है कि शिया मुसलमान ईरान के सपोर्ट में किसी ऐसी कंपनी की चीज़ें इस्तेमाल भी न करें जिससे इज़राइल और अमरीका मज़बूत हो। जिस तरह ग़ाज़ा में इज़राइल ने बर्बरता की और अमेरिका ने जिस तरह से उसका साथ दिया ये विरोध ज़रूरी है। ख़ास बात ये है कि विदेशी कंपनियों के विकल्प के तौर पर भारतीय कंपनियों का सामान बाँटने और तबर्रुक में देने की अपील की जा रही है।स्वदेशी को अपनाने के लिए कहा का रहा है। इमाम हुसैन और शहीदों को जिस तरह प्यासे रहकर शहीद होना पड़ा उसकी वजह से उनकी शहादत को याद करते हुए कोकाकोला, पेप्सी जैसे कोल्ड ड्रिंक भी बांटे जाते हैं उनकी जगह कैंपा और माज़ा और लेज़, रफ़ल्स, ओरियो जैसी कंपनियों के बिस्किट और चिप्स की जगह देश की कंपनियों खाद्य पदार्थ बाँटे जाएँगे।

दरगाह हज़रत अब्बास क्षेत्र में रहने वालीं सकीना कहती हैं ‘ वो इस बार इन कंपनियों की चीज़ें नहीं बाँटेंगी। ’मैं वर्किंग हूँ इसलिए ख़ुद बनाने की जगह हम लोग इन चीज़ों को बाँटते थे पर अब इसकी जगह लोकल दुकानों के नमकपारे, शकरपारे, बिरियानी, लोकल दालमोठ, चाय और नींबू पानी बाँटेंगे।’

मैसेज कहाँ से आया?

इस बात पर सकीना कहती हैं कि उनको इसकी जानकारी नहीं पर उनके रिश्तेदार भी इससे सहमत हैं कि ईरान पर हमले में इज़राइल का साथ देने वाले अमेरिका और अत्याचारी इज़राइल का कोई सामान हम आगे भी न इस्तेमाल करें। मोहर्रम तो इसकी शुरुआत है। मोहर्रम में इस तरह के अभियान को शेख़ सईद हुसैन ज़रूरी मानते हैं। वो ख़ुद घर-घर ये मैसेज भेज रहे हैं। शेख़ सईद हुसैन कहते हैं ‘ कई लोगों को लग रहा है इस विरोध से क्या होगा? जब गांधी जी ने नमक का आंदोलन किया था तब भी कुछ लोगों ने विरोध किया था। हम लोग भारत में बनाये सामान को तबर्रुक के तौर पर बाँटेंगे। चाहे वो शिया बनाए, सुन्नी बनाए, हिंदू बनाए, सिख बनाए लेकिन हम अमेरिका के सामान नहीं बाँटेंगे। मजलिसों का दौर पूरे मोहर्रम के दौरान चलेगा। हम लोग इसके लिए लोगों को जागरूक करेंगे। ये हमारा स्वदेशी तबर्रुक अमेरिका इज़राइल का विरोध भी है और भारत की आत्मनिर्भरता के लिए ज़रूरी भी है।’ 

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