अब चुनावी रण के लिए जम्मू-कश्मीर तैयार, जानें- पांच साल में क्या कुछ बदला

अनुच्छेद 370 के हटाए जाने के बाद जम्मू-कश्मीर के लिए चुनावी तारीखों का ऐलान होने जा रहा है। यहां पर हम आप को कुछ खास जानकारी देंगे

By :  Lalit Rai
Update: 2024-08-16 08:22 GMT

Jammu Kashmir Assembly Polls:  चुनाव आयोग आज तीन बजे हरियाणा और जम्मू-कश्मीर के लिए तारीखों का ऐलान करने वाला है। यह ऐलान जम्मू-कश्मीर के संदर्भ में हटकर है। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से कहा था कि वो 30 सितंबर तक हर हाल में चुनावी प्रक्रिया पूरी करे। 5 अगस्त 2019 को अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद जम्मू कश्मीर को राज्य से केंद्रशासित प्रदेश का दर्जा मिला। इसे लेकर जबरदस्त विरोध भी हुआ। लेकिन अब चुनाव होने जा रहे हैं। ऐसे में 2019 के बाद क्या कुछ बदलाव हुआ है उसके बारे में जानना भी जरूरी है। 

2014 में हुए थे आखिरी चुनाव

जम्मू-कश्मीर में इससे पहले साल 2014 में चुनाव कराए गए थे। यानी कि 10 साल बाद चुनाव होने जा रहा है। लेकिन 2014 के मुकाबले 2024 में काफी फर्क है। मसलन तब 83 सीटों के लिए चुनाव कराए गए थे। लेकिन अब 90 सीटों के लिए मतदान होगा। पहले जिस दल के पास सत्ता की कमान होती थी उसके पास असीमित शक्तियां होती थीं। लेकिन अब उसमे बदलाव हो चुका है। दिल्ली की तरह उपराज्यपाल के पास ज्यादा शक्तियां होंगी। 

पांच साल पहले की तस्वीर

पांच साल पहले तक जम्मू-कश्मीर और लद्दाख एक हुआ करते थे। लेकिन 5 अगस्त 2019 को जम्मू-कश्मीर अलग और लद्दाख अलग केंद्रशासित प्रदेश बने। जम्मू-कश्मीर में विधानसभा है लेकिन लद्दाख में ऐसा नहीं है। जम्मू-कश्मीर में सरकार और सीएम दोनों होंगे लेकिन उपराज्यपाल के पास शक्ति अधिक होगी। उदाहरण के लिए पुलिस, जमीन और नागरिक व्यवस्था पर उपराज्यपाल का अधिकार बाकी मामलों में सरकार निर्णय कर सकती है लेकिन लेफ्टिनेंट गवर्नर की मंजूरी जरूरी होगी। 

सीटों की संख्या पर असर

  • पांच अगस्त 2019 से पहले जम्मू-कश्मीर में कुल 111 सीट होती थी। जम्मू में 37, कश्मीर में 46, लद्दाख में 4 और पीओके में 24 सीट।
  • अब जम्मू में कुल 43, कश्मीर में 47 और पीओके में 24 सीट है। पीओके और लद्दाख में चुनाव नहीं कराए जा सकते हैं, लिहाज 90 सीटों पर मतदान होगा। 
  • जम्मू क्षेत्र के उधमपुर, सांबा, कठुआ, किश्तवाड़, राजौरी औक डोडा में एक एक सीट बढ़ी है। कश्मीर के कुपवाड़ा में एक सीट बढ़ी है।
  • कुपवाड़ा में अब पांच की जगह 6 विधानसभा होगी।

  • अनुसूचित जाति के लिए 7 सीट और अनुसूचित जनजाति के लिए 9 सीट रिजर्व है। यानी कि कुल 16 सीटें रिजर्व हैं।

कश्मीरी पंडितों के लिए दो सीट रिजर्व

कश्मीरी पंडितों के लिए दो सीटें आरक्षित की गई हैं। उन्हें कश्मीरी प्रवासी नाम दिया गया है। उप राज्यपाल तीन सदयों को नामित कर सकेंगे। जिसमें दो कश्मीरी प्रवासी, एक पीओके से विस्थापित। कश्मीर प्रवासी में से एक महिला होगी। कश्मीरी प्रवासी का दर्जा उन्हें मिलेगा जो 1 नवंबर 1989 के बाद घाटी या जम्मू-कश्मीर के किसी भी हिस्से से बाहर गया हो और उसका नाम रिलीफ कमीशन के रजिस्टर में हो। इसी तरह जो शख्स 1947-48, 1965 और 1971 के बाद पाक अधिकृत कश्मीर से आया होगा उसे भी विस्थापित माना जाएगा। इस हिसाब से जम्मू-कश्मीर विधानसभा में कुल 93 सीट होंगी जिसमें तीन मनोनीत होंगे। इसी तरह की व्यवस्था पुड्डुचेरी की है जहां कुल 33 सीटों में से 30 पर चुनाव और तीन सीटों पर मनोनीत सदस्य होते हैं। 

सियासत पर कैसे असर

अगर 2019 के पहले की व्यवस्था देखें तों कश्मीर में 46 और जम्मू में 37 सीट होती थी। यानी कि जिस दल का प्रदर्शन कश्मीर घाटी में बेहतर वो सरकार बनाने में बाजी मारता था। लेकिन अब दोनों के बीच फर्क को कम किया गया है। कश्मीर में जहां 47 वहीं जम्मू में 43 सीट होगी। इसका अर्थ यह है कि राजनीतिक दलों के जम्मू और कश्मीर दोनों पर बराबर ध्यान देना होगा। सियासी जानकार कहते हैं कि जम्मू इलाके में 6 सीट के इजाफे से बीजेपी को फायदा मिलने से इनकार नहीं किया जा सकता है। 2014 के चुनाव में बीजेपी को 37 में से 25 सीट पर जीत मिली थी। इसी तरह 2024 आम चुनाव में जम्मू की दोनों सीटों को एक बार फिर बीजेपी जीतने में कामयाब रही है।

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