'केशव' संग ये दो तस्वीरें, OBC नेताओं के साथ जुगलबंदी संयोग या प्रयोग
आम चुनाव 2024 में यूपी में बीजेपी का प्रदर्शन खराब रहा. उसके बाद अब ब्लेम गेम की राजनीति तेज हो गई है. खासतौर से डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य की चर्चा कुछ अधिक है।
Keshav Prasad Maurya: सियासत में अनायास कभी कुछ नहीं होता। कहीं न कहीं कुछ आधार होता है। फर्ज करिए कि अगर यूपी में बीजेपी को आम चुनाव में 62 सीट मिलती है तो नतीजों का पोस्टमार्टम होता। जवाब, शायद नहीं। लेकिन 33 सीट मिलने के बाद तस्वीर बदल चुकी है। बीजेपी में मंथन का दौर जारी है तो दूसरी तरफ दो डिप्टी सीएम में से एक केशव प्रसाद मौर्य के तेवर तल्ख हो चले हैं. वो कैबिनेट की बैठक में शामिल नहीं हो रहे। यही नहीं हाल ही में आउटसोर्स कर्मचारियों के संबंध नें नियुक्ति और कार्मिक विभाग से लिस्ट भी मांगी कि आरक्षण का हक तो नहीं मारा गया. कार्मिक विभाग को चिट्ठी इसलिए अहम है क्योंकि इस विभाग के मुखिया कोई और नहीं बल्कि सीएम योगी आदित्यनाथ है, इन सबके बीच केशव प्रसाद मौर्य के साथ दो तस्वीरें चर्चा की वजह बनीं. एक तस्वीर निषाद पार्टी के मुखिया संजय निषाद के साथ तो दूसरी तस्वीर सुभासपा के ओम प्रकाश राजभर के साथ है.
संजय निषाद-ओ पी राजभर संग तस्वीर
नेताओं का एक दूसरे की तस्वीरों का आना भी मुद्दा नहीं बनता। लेकिन जब कोई हालात या परिस्थिति उसके साथ जुड़ जाए तो मामला संवेदनशील हो जाता है. आप को पता होगा कि संजय निषाद और ओमप्रकाश राजभर दोनों योगी सरकार में मंत्री हैं और दोनों के बेटे आम चुनाव हार गए थे. संजय निषाद तो खुले तौर पर अधिकारियों के रवैये और आरक्षण के विषय को उठाते रहते हैं हालांकि ओम प्रकाश राजभर दबी जुबां में बोलते हैं, इन सबके बीच सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव का मानसून ऑफर भी चर्चा के केंद्र में हैं. उन्होंने एक्स पर लिखा था कि 100 लाओ सरकार बनाओ, हालांकि उन्होंने किसी का नाम नहीं लिखा था लेकिन इशारा किस तरफ था उसे यूपी के सियासतदां अच्छी तरह से समझते हैं.
क्या कहते हैं जानकार
जानकार कहते हैं कि केशव प्रसाद मौर्य और योगी आदित्यनाथ के बीच तनातनी आम चुनाव के नतीजों के बाद हुई हो ऐसी बात नहीं. साल 2017 में बीजेपी जब यूपी की सत्ता में आई उस समय यह तय नहीं था कि सूबे की कमान किसे मिलेगी. उस समय कई नाम चर्चा में थे जिसमें केशव प्रसाद मौर्य का नाम भी था. लेकिन पार्टी के खांचे में योगी आदित्यनाथ जितना फिट बैठे उतना मौर्य नहीं. लिहाजा शीतयुद्ध का दौर तब से ही शुरू हो गया, आप सबको याद होगा कि आम चुनाव 2019 में तनातनी खुलकर सामने आई हालांकि केंद्रीय नेतृत्व ने असंतोष पर काबिज पाने में कामयाब रहा। समय बीतता रहा। साल 2022 में विधानसभा चुनाव योगी आदित्यनाथ की अगुवाई में लड़ा गया। बीजेपी एक बार फिर सत्ता में आई। लेकिन इस बार कम से कम इस बात को लेकर संशय नहीं था कि सीएम कौन बनने जा रहा है. केशव प्रसाद मौर्य नंबर दो की हैसियत में आए लेकिन उनकी व्यक्तिगत हार भी थी. कहा जाता है कि सियासत में समय से बेहतर हथियार कुछ भी नहीं होता.
2024 के नतीजों में बीजेपी की हार के पीछे कई और वजहों के साथ साथ संविधान और आरक्षण को बताया जा रहा है. केशव प्रसाद मौर्य को ये बिंदु ऐसे हथियार के तौर पर नजर आ रहे हैं जिसके जरिए वो अपनी चाहत को जमीन पर उतार सकते हैं.लेकिन क्या वो कहीं इस तरह की मुहिम से पार्टी के खिलाफ तो नहीं जा रहे यह देखना होगा. बीजेपी का इतिहास भी रहा है कि जिस किसी ने पार्टी के साथ बगावत की उसका हश्र क्या हुआ था।