बंद दरवाज़े, लंबी पैदल यात्राएँ और घबराए हुए मतदाता: केरल के एक BLO के जीवन का एक दिन
SIR का दबाव केरल में चरम पर: BLO भारी काम के बोझ, हड़बड़ी, खराब डेटा और जनता की ठंडी प्रतिक्रिया से जूझ रहे हैं
महेश, 45 (बदला हुआ नाम), कानूनी मेट्रोलॉजी विभाग में काम करते हैं और फिलहाल केरल के मलप्पुरम ज़िले में स्पेशल इंटेंसिव रिविज़न (SIR) की ज़िम्मेदारियों के तहत बूथ लेवल ऑफिसर (BLO) के रूप में सेवा दे रहे हैं। वे पोनानी के निवासी हैं और भले ही वे उस वार्ड में नहीं रहते जहाँ तैनात हैं, लेकिन वे उसी वार्ड के पंजीकृत मतदाता हैं। यही तकनीकी आधार उन्हें उस वार्ड में BLO की नियुक्ति का कारण बना।
BLO की आत्महत्या ने सरकारी कर्मचारियों को झकझोरा
द फ़ेडरल की टीम ने महेश से मुलाकात की—यह उस समय था जब कन्नूर ज़िले के BLO अनीश जॉर्ज ने आत्महत्या कर ली थी। इस घटना ने पूरे केरल के सरकारी कर्मचारियों को गहराई से हिला दिया है। उनकी मौत के बाद राज्य सरकार के कर्मचारी SIR गतिविधियों के दौरान BLO पर बढ़ते कार्यभार के विरोध में हड़ताल पर चले गए।
यह उस डर, थकान और बढ़ती नाराज़गी के माहौल में था कि महेश ने अपनी रोजमर्रा की दिनचर्या और इस भूमिका के साथ जुड़े दबाव को विस्तार से बताया।
एर्नाकुलम के ज़िला कलेक्टर राजनीतिक दलों को 2002 SIR की प्रति सौंपते हुए। फोटो: I&PRD केरल
BLO की चुनौतियाँ
महेश जिस वार्ड सेक्शन (ECI और स्थानीय राजनीतिक भाषा में पार्ट/बूथ) की जिम्मेदारी संभालते हैं, उसमें लगभग 1,500 मतदाता हैं। हर मतदाता को उन्हें दो फ़ॉर्म देने होते हैं—एक मतदाता के लिए और एक चुनाव आयोग के लिए। लगभग हर BLO इसी बोझ को ढो रहा है, बड़े-बड़े वार्डों में कागज़ों के ढेर उठाकर घूमते हुए, जिससे उनके बैग और पीठ दोनों पर भार पड़ता है।
चुनौतियाँ तब और बढ़ जाती हैं जब फ़ॉर्म हाथ में लेकर मतदाताओं की तलाश शुरू होती है।
महेश ने अपनी मतदाता सूची की प्रति खोली और दिखाया कि पते कैसे छपे होते हैं—एक प्रविष्टि बस इतनी थी: “मोहम्मद मुस्तफ़ा, पिता का नाम—कुन्हिमोईदीन, मकान संख्या XYZ/10, आयु 72, पुरुष, निवासी—पोनानी।”
बस यही जानकारी। कोई पोस्टल पता नहीं, न ही घर का पहचाने जाने योग्य नाम।
महेश कहते हैं, “उदाहरण के लिए, मेरी मतदाता सूची 1 से 1,489 सीरियल नंबर तक जाती है। मैं इस वार्ड के 70% से ज़्यादा मतदाताओं को व्यक्तिगत रूप से जानता हूँ, फिर भी मैं एक दिन में 30 से ज़्यादा फ़ॉर्म प्रोसेस नहीं कर पाता। एक परिवार की जाँच में कम से कम 30 मिनट लगते हैं। डुप्लीकेशन होना तय है—और उन्हें पहचानना बहुत कठिन है। कई लोगों के पास कई EPIC कार्ड होते हैं, और कोई ऐसा BLO जो इस बूथ को न जानता हो, वह इन्हें पहचान नहीं पाएगा। इसी तरह सभी उम्र के लोग नए मतदाता के रूप में दर्ज हो जाते हैं। जो लोग गलती से फ़ॉर्म 6 (नए नाम जोड़ने के लिए) की जगह फ़ॉर्म 8 (सुधार के लिए) भर देते हैं—उन्हें ट्रैक करना बहुत मुश्किल हो गया है। हम इसकी पुष्टि तभी कर सकते हैं जब हमारे पास उनका EPIC नंबर हो।”
पिछले दो हफ़्तों से महेश हर दिन काम कर रहे हैं, रविवार सहित। अपनी स्कूटर पर आठ घंटे की ड्यूटी, और अक्सर नहरों व खेतों के रास्तों से पैदल चलते हुए एक बिखरे हुए घर से दूसरे तक पहुँचना—इन सबके बाद भी उन्हें दिन भर में मुश्किल से कुछ ही मतदाता मिल पाते हैं।
जमीनी हकीकत
इस बार मैं उन्हें अपनी कार में लेकर गया, और हमने मिलकर गलियों में रास्ता ढूँढा और पड़ोसियों से पता पूछा। फिर भी, उस दिन वे केवल 26 मतदाताओं से ही मिल सके। लेकिन उनमें से भी कुछ ही लोगों ने फ़ॉर्म भरकर उन्हें वापस दिए।
कागज़ पर गणित आसान है—अगर वे रोज़ 50 मतदाताओं से मिलें, तो एक महीने में पूरा बूथ कवर कर सकते हैं। लेकिन ज़मीन पर स्थिति अलग है—ऊबड़-खाबड़ इलाका, बिखरे हुए घर, अधूरे पते और हर दरवाज़े के पीछे का अनिश्चित माहौल—इन सबके कारण यह लक्ष्य अव्यावहारिक बन जाता है।
अब BLO को निर्देश है कि पहले फ़ॉर्म बाँटें और बाद में उन्हें वापस इकट्ठा करें। महेश के अनुसार, यह तरीका फ्लैट्स और अपार्टमेंट जैसी बेहतर बसी बस्तियों में चल सकता है, लेकिन ग्रामीण इलाकों में बहुत से लोगों को फ़ॉर्म भरना ही नहीं आता। BLO को ही उनके फ़ॉर्म भरवाने पड़ते हैं और फिर उन्हें ऑनलाइन अपलोड करने के लिए वापस लेना पड़ता है।
मैदान में जारी मुश्किलें
कई घर बंद मिलते हैं। कुछ जगह कुत्ते भीतर जाने नहीं देते। कुछ लोग खिड़की से झाँकते हैं लेकिन दरवाज़ा नहीं खोलते। कुछ कहते हैं कि वे व्यस्त हैं, बाद में आना। कुछ लोग सवालों की बरसात कर देते हैं या उन पर शक करते हैं।
‘अल्पसंख्यक मतदाता बहुत चिंतित’
महेश कहते हैं, “इसे पक्षपात मत समझिए, लेकिन अल्पसंख्यक मतदाता SIR प्रक्रिया को लेकर बेहद चिंतित और सतर्क हैं। कई लोगों को लगता है कि समय के साथ यह उनकी नागरिकता की स्थिति को भी प्रभावित कर सकता है। इसलिए वे बेहद सतर्क रहते हैं और हर दस्तावेज़ तैयार रखकर आते हैं। लेकिन इस चरण में हम उन दस्तावेज़ों की जाँच नहीं कर सकते—इससे मतदाताओं और BLO के बीच भ्रम और तनाव पैदा होता है।”
सत्तर वर्षीय खदीजा ने अपने पास मौजूद हर दस्तावेज़—आधार, EPIC, राशन कार्ड, यहाँ तक कि अपने घर की रजिस्ट्री—सब BLO के लिए तैयार रखी थीं, जबकि इस चरण में इनमें से कोई भी आवश्यक नहीं था।
“2002 SIR में नाम अलग लिखा था”
खदीजा कहती हैं, “हमें नहीं पता आगे क्या हो, इसलिए जो भी है, तैयार रखना बेहतर है।” उनका नाम 2002 SIR सूची में “खदीजुम्मा” लिखा था। वे कहती हैं, “सब मुझे खदीजुम्मा कहते हैं, क्योंकि बुजुर्गों को सम्मान से ऐसे ही बुलाया जाता है। शायद तभी किसी ने रिकॉर्ड में यह नाम लिख दिया होगा।”
BLO का कहना है कि उनके पुराने रिकॉर्ड की जाँच होकर सही लिंक स्थापित किया जाएगा, तभी उन्हें नई सूची में बरकरार रखा जा सकेगा।
‘केंद्र सरकार पर पूरा भरोसा नहीं’
इब्राहिम, 37, एक ऑटोचालक, भी इसी तरह की चिंताएँ साझा करते हैं। वे कहते हैं, “CAA और NRC के बाद हम केंद्र सरकार पर पूरी तरह भरोसा नहीं कर सकते। मैं कम्युनिस्टों और कांग्रेस की बात को नज़रअंदाज़ नहीं करता—वे कहते हैं कि यह NRC लाने का पिछला दरवाज़ा हो सकता है। इसलिए हमें सावधान रहना पड़ेगा। लेकिन राजनीतिक पार्टियाँ अभी लोगों का मार्गदर्शन नहीं कर पा रही हैं, क्योंकि वे पंचायत चुनावों में व्यस्त हैं। शायद यही केंद्र सरकार चाहती है।”
शहरी क्षेत्रों में नामांकन प्रपत्र बांटे जा रहे हैं (तस्वीर में फ़िल्म अभिनेता टीनी टॉम)। फोटो: I&PRD केरल**
मल्टी-टास्किंग BLO
जब हम एक घर से दूसरे घर जा रहे थे, महेश का फोन लगातार बजता रहा। हर फॉर्म पर BLO का मोबाइल नंबर लिखा होता है, इसलिए मतदाता दिन भर अपने संदेह और स्पष्टीकरण के लिए कॉल करते रहते हैं। लंबी दूरी तय करते हुए और कम जानकारी के आधार पर घरों को ढूंढते हुए, महेश को इन फोन कॉल्स का जवाब देने के लिए समय भी निकालना पड़ता है।
“ज्यादातर सवाल पुराने SIR सूची में दिए गए ‘रिश्तेदार’ वाले कॉलम को लेकर होते हैं। वहां व्यक्ति अपने माता-पिता या यहां तक कि दादा-दादी का नाम भी लिख सकता है, क्योंकि ‘रिश्तेदार’ लिखा तो है, लेकिन कोई स्पष्ट दिशा-निर्देश नहीं है। BLO को दिया गया आधिकारिक ऐप तो जीवनसाथी को भी ‘रिश्तेदार’ के रूप में मान्यता नहीं देता,” महेश ने कहा।
आवागमन की समस्या
BLOs के लिए एक और बड़ी चुनौती परिवहन है। उन्हें फॉर्म के बंडल ढोने पड़ते हैं, और महेश बताते हैं कि वह रोज़ाना दो लीटर से अधिक पेट्रोल खर्च करते हैं। एक महीने में, केवल ईंधन का खर्च ही 6,000 रुपये से ऊपर पहुंचने की संभावना है। अभी तक इस बात पर कोई आधिकारिक सूचना नहीं है कि क्या इन खर्चों की भरपाई की जाएगी।
कई BLO के पास वाहन नहीं हैं और वे फॉर्म की गाठों के साथ लंबी दूरी पैदल तय करते हैं। उनके लिए यह बोझ और भी भारी है। महेश का कहना है कि यह स्पष्ट नहीं है कि अधिकारी सीमित समय और संसाधनों में उनसे यह काम कैसे पूरा करवाने की उम्मीद करते हैं।
समय लेने वाला काम
फॉर्म बांटने के बाद, BLO को उन्हें वापस लेकर विवरण की जांच करनी होती है, प्रविष्टियों को डिजिटाइज़ करना होता है और फॉलो-अप प्रक्रियाएं पूरी करनी होती हैं। ये काम उनके नियमित कार्यों का हिस्सा नहीं हैं और काफी समय लेते हैं।
दिनभर यह स्पष्ट था कि अपने क्षेत्र के घरों को पहचानने में BLOs को बूथ लेवल एजेंट्स (BLA) की मदद मिलती है। कुछ लोगों ने हमें घरों की पहचान करवाई, हालांकि अधिकतर एजेंट स्थानीय निकाय चुनाव के काम में व्यस्त थे।
अब BLAs को भी फॉर्म इकट्ठा कर BLO को जमा कराने की अनुमति है, इसलिए राजनीतिक दल यहां मदद कर सकते थे।
लेकिन केरल में LSG चुनाव चल रहे होने के कारण सभी दल पूरी तरह व्यस्त हैं, और SIR फॉर्म बांटने व इकट्ठा करने की अंतिम तारीख पहले चरण के मतदान से पहले ही समाप्त हो जाएगी।
जल्दबाज़ी में हो रहे SIR का व्यक्तिगत बोझ
महेश ने दिन के अंत में कहा कि यदि अभी मतदाता सूची सही ढंग से तैयार नहीं हुई, तो अगला विधानसभा चुनाव आने पर बूथ एजेंट्स को ही सबसे ज्यादा परेशानी होगी। अगर लोगों के नाम गायब होंगे, घर गलत मैप किए गए होंगे, और संशोधन जल्दबाज़ी में किए गए होंगे, तो लोकतांत्रिक प्रक्रिया सबसे बुनियादी स्तर पर कमजोर हो जाएगी। और महेश जैसे BLOs पर इस जल्दबाज़ी की व्यावहारिक कीमत अभी से दिखने लगी है।