एक सीट, कई समीकरण: लुधियाना वेस्ट बना AAP और विपक्ष के लिए अग्निपरीक्षा
लुधियाना वेस्ट उपचुनाव केवल एक विधानसभा सीट का मामला नहीं है, बल्कि यह 2027 के विधानसभा चुनावों की दिशा तय करने वाला है। राज्य की प्रमुख राजनीतिक पार्टियां इस उपचुनाव को अपनी प्रतिष्ठा से जोड़कर देख रही हैं।;
पंजाब के लुधियाना वेस्ट विधानसभा क्षेत्र में 19 जून को होने वाले उपचुनाव ने राज्य की राजनीति में हलचल मचा दी है। इस उपचुनाव में आम आदमी पार्टी (AAP), कांग्रेस, भारतीय जनता पार्टी (BJP) और शिरोमणि अकाली दल (SAD) के बीच कड़ी टक्कर देखने को मिल रही है।
AAP का रणनीतिक दांव
AAP ने राज्यसभा सांसद संजीव अरोड़ा को उम्मीदवार बनाया है, जो पार्टी के लिए एक महत्वपूर्ण रणनीतिक कदम है। पार्टी का दावा है कि अरोड़ा की उम्मीदवारी से पंजाब में विकास की गति तेज होगी और पार्टी की छवि सुधरेगी। हालांकि, विपक्षी दलों का आरोप है कि यह कदम दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के लिए राज्यसभा में प्रवेश का रास्ता तैयार करने के लिए उठाया गया है।
कांग्रेस की चुनौती
कांग्रेस ने पूर्व मंत्री भारत भूषण आशु को मैदान में उतारा है, जो पहले भी इस सीट से विधायक रह चुके हैं। आशु का कहना है कि AAP सरकार ने राज्य के संसाधनों का दुरुपयोग किया है और विकास के नाम पर केवल वादे किए हैं। उनका आरोप है कि AAP सरकार ने पंजाब को दिल्ली के नेताओं के हाथों में सौंप दिया है।
BJP और SAD की भूमिका
BJP ने जीवान गुप्ता को उम्मीदवार बनाया है, जबकि SAD ने परूपकर सिंह घुम्मन को मैदान में उतारा है। BJP के नेता रवनीत बिट्टू ने AAP सरकार पर बिजली संकट और अन्य मुद्दों को लेकर हमला बोला है। उन्होंने मुख्यमंत्री भगवंत मान की अनुपस्थिति पर भी सवाल उठाए हैं।
AAP के लिए परीक्षा की घड़ी
AAP के लिए यह उपचुनाव एक परीक्षा की घड़ी है। दिल्ली में हालिया हार के बाद पार्टी की छवि को लेकर सवाल उठ रहे हैं। पार्टी के नेता संजीव अरोड़ा ने दावा किया है कि वे लोगों के बीच जाकर उनकी समस्याओं का समाधान करेंगे। हालांकि, विपक्षी दलों का कहना है कि यह केवल एक दिखावा है और AAP के नेता केवल सत्ता में बने रहने के लिए इस उपचुनाव का उपयोग कर रहे हैं।
लुधियाना वेस्ट सीट AAP के विधायक गुरप्रीत बसी गोगी के जनवरी में आकस्मिक निधन के कारण खाली हुई। AAP के लिए यह उपचुनाव एक चुनौतीपूर्ण परीक्षा है। दिल्ली विधानसभा चुनाव में मिली हार के बाद पार्टी की प्रतिष्ठा दांव पर है। विपक्षी दलों ने आरोप लगाया है कि AAP पंजाब में दिल्ली से शासन चला रही है, जिससे राज्य की स्वायत्तता पर सवाल उठ रहे हैं। कांग्रेस और BJP ने AAP पर आरोप लगाया है कि वह पंजाब को दिल्ली के अधीन कर रही है। BJP ने यह भी दावा किया है कि AAP ने सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग किया है और मुख्यमंत्री भगवंत मान की भूमिका को सीमित किया है।
AAP ने दिल्ली से अपने प्रमुख नेताओं को लुधियाना वेस्ट में प्रचार के लिए भेजा है, जिनमें मनीष सिसोदिया, अतिशी, राखी बिड़लान और हरभजन सिंह शामिल हैं। उन्होंने पार्टी की विकास योजनाओं और भ्रष्टाचार विरोधी अभियानों को प्रमुखता से प्रस्तुत किया है। वहीं, कांग्रेस में आंतरिक मतभेद सामने आए हैं। हाल ही में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान, विपक्षी नेता प्रताप सिंह बाजवा ने नाराज होकर कार्यक्रम छोड़ दिया, जिससे पार्टी की एकता पर सवाल उठे हैं।
पत्रकार और पूर्व AAP विधायक कंवर संधू कहते हैं कि इतिहास गवाह है कि पंजाब ने हमेशा दिल्ली के फ़रमानों का डटकर विरोध किया है। यह पंजाब के लिए एक गहरी भावनात्मक बात है — चाहे कोई ग्रामीण हो या शहरी, एक आम पंजाबी कभी यह बर्दाश्त नहीं करेगा कि राज्य सरकार और मुख्यमंत्री को दिल्ली के बाहरी लोग 'रिमोट कंट्रोल' से चला रहे हों।
संधू आगे कहते हैं कि हालांकि कांग्रेस हाईकमान केंद्रित पार्टी रही है। लेकिन उसने पंजाब में हमेशा यह दिखाने की कोशिश की कि राज्य सरकार पूरी तरह स्वायत्त है। जब 2022 में अमरिंदर सिंह को जिस तरह हटाकर चरणजीत चन्नी को लाया गया, उस वक्त यह धारणा टूटी और कांग्रेस को सबसे बड़ी हार का सामना करना पड़ा। अब कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने काफी हद तक लोगों को यह समझाने में सफलता पाई है कि AAP के तहत पंजाब को दिल्ली की एक टोली चला रही है। हालांकि, मैं यह भी कहूंगा कि लोगों को बहुत ज़्यादा समझाने की ज़रूरत नहीं थी। क्योंकि मान सरकार रोज़ाना अपने अधिकारों का हनन खुद ही कर रही है।
संधू का मानना है कि अगर AAP को लुधियाना वेस्ट में हार मिलती है तो यह पार्टी के लिए एक "विनाशकारी झटका" हो सकता है, भले ही सरकार का कार्यकाल अभी आधा ही बीता हो। वह कहते हैं कि दिल्ली में चुनावी हार के बाद अगर यह उपचुनाव भी हारते हैं तो कार्यकर्ताओं का मनोबल और टूट जाएगा। पार्टी के भीतर से ही लोग केजरीवाल और दिल्ली के अन्य नेताओं की दखलअंदाज़ी पर खुलकर बोल सकते हैं। बड़े स्तर पर पार्टी में टूट भी हो सकती है। हालांकि, AAP के पास अभी भारी बहुमत है और सरकार को गिराना संभव नहीं है। लेकिन अगर यह हार होती है तो इसका सबसे बड़ा नुकसान खुद केजरीवाल को होगा।