'ED कोई सुपर कॉप नहीं': मद्रास हाई कोर्ट में प्रवर्तन निदेशालय को लगी फटकार
मद्रास हाई कोर्ट ने कोल आवंटन मामले में प्रवर्तन निदेशायल यानी ईडी की कार्रवाई को उसके अधिकार क्षेत्र से बाहर बताया है।;
मद्रास हाई कोर्ट ने प्रवर्तन निदेशालय (ED) को कड़ी फटकार लगाई है और कहा है कि ईडी कोई सुपर कॉप नहीं है जिसे असीमित शक्तियाँ दी गई हों कि वह अपनी सीमा से बाहर जाकर मामलों की जांच कर सके।
यह टिप्पणी कोर्ट ने RKM Powergen Private Limited द्वारा दाखिल याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए दी। कंपनी ने कोयला आवंटन घोटाले से जुड़े मामले में ईडी की कार्रवाई को चुनौती दी थी।
अधिकार क्षेत्र से बाहर थी ईडी की कार्रवाई
न्यायमूर्ति एम. एस. रमेश और वी. एल. के. नारायणन की खंडपीठ ने ईडी द्वारा की गई संपत्ति जब्ती (attachment) की कार्रवाई को रद्द कर दिया। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि ईडी PMLA एक्ट के तहत प्राथमिक अपराध (predicate offence) के बिना कोई कार्रवाई नहीं कर सकती।
कोर्ट ने कहा कि ईडी बिना किसी पंजीकृत अपराध या PMLA की अनुसूचित अपराधों से जुड़े आरोप के जांच करने का अधिकार नहीं रखती।
कोयला घोटाले से संबंध नहीं
यह मामला 2005 में गठित एक जॉइंट वेंचर से जुड़ा है, जो RKM Powergen और मलेशिया की Mudajaya Corporation के बीच छत्तीसगढ़ में कोयला आधारित पावर प्लांट लगाने को लेकर हुआ था।
ED की जांच CBI की चार्जशीट के बाद शुरू हुई थी, लेकिन कोर्ट ने पाया कि ईडी की ओर से जो धन के दुरुपयोग और सार्वजनिक ऋणों के गबन की जांच की जा रही थी, वह कोयला घोटाले से सीधे तौर पर जुड़ी नहीं थी।
“ED कोई बेतरतीब मिसाइल नहीं”
कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के ‘विजय मदनलाल चौधरी केस’ का हवाला देते हुए दोहराया कि ईडी तभी कार्रवाई कर सकती है जब कोई स्पष्ट प्राथमिक अपराध हो और उसके परिणामस्वरूप "अपराध से अर्जित संपत्ति (proceeds of crime)" का सबूत हो।
बेंच ने टिप्पणी की, “ईडी कोई बेतरतीब मिसाइल या ड्रोन नहीं है जो मनचाही जगह पर हमला कर दे। यदि किसी एजेंसी, जैसे कि Power Finance Corporation (जिसने RKM को ऋण दिया था), की ओर से कोई औपचारिक शिकायत नहीं है, तो ईडी की जांच शुरुआत से ही गलत मानी जाएगी।
अन्य कानूनों में उल्लंघन दिखे तो संबंधित एजेंसी को सौंपे मामला
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि PMLA की धारा 66(2) के तहत, अगर ईडी को जांच के दौरान किसी अन्य कानून के उल्लंघन का पता चलता है, तो उसे उस मामले को संबंधित एजेंसी को रेफर करना चाहिए, न कि खुद जांच शुरू करनी चाहिए।
हाई कोर्ट ने याचिकाकर्ता से एक सप्ताह के भीतर लागत का ब्यौरा दायर करने को कहा।