महायुति में 173 सीटों पर बनी सहमति, लेकिन क्या है चप्पलमार सियासत

2024 में महाराष्ट्र की जनता किसे जनादेश देगी। इसका अभी इंतजार है हालांकि राजनीतिक दल गुणा-गणित में जुट गए हैं।

By :  Lalit Rai
Update: 2024-09-01 08:46 GMT

Maharashtra Assembly Elections 2024:  महाराष्ट्र के लिए अभी चुनावी तारीखों का ऐलान नहीं हुआ है। लेकिन सियासी तौर पर समीकरण को अपने पक्ष में बनाए रखने की कोशिश हो रही है। हाल ही में सिंधुदुर्ग के मालवन में जब शिवाजी की प्रतिमा गिरी तो सियासी समंदर में हलचल मच गई। जाहिर सी बात थी कि महाविकास अघाड़ी को शिंदे सरकार और बीजेपी के घेरने का मौका मिल गया। रविवार को ऐसा नजारा सामने आया जिसे देखकर आप सोच नहीं सकते। एक पूर्व सीएम यानी उद्धव ठाकरे वर्तमान सीएम एकनाथ शिंदे के पोस्टर को चप्पल मारते नजर आए। अब यह चप्पल मार सियासत से उद्धव ठाकरे या महाविकास अघाड़ी को कितना फायदा मिलेगा यह तो नहीं पता। लेकिन महायुति में 173 सीटों पर सहमति बन गई है। महाराष्ट्र की सियासत में फिलहाल महाविकास अघाड़ी और महायुति नदी के दो किनारों की तरह एक दूसरे को देख रहे हैं ललकार रहे हैं। हालांकि चुनावी ऐलान के बाद दल बदल का नजारा भी दिखाई देगा। 

173 सीटों पर सहमति

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस तथा अजीत पवार ने आगामी राज्य विधानसभा चुनावों के लिए नागपुर में सीट बंटवारे पर बातचीत की। ये चुनाव अक्टूबर-नवंबर में होने की संभावना है।बीजेपी सूत्रों के अनुसार यह बैठक करीब तीन घंटे तक चली।सूत्रों ने बताया कि कल की बैठक पिछले दो-तीन दौर की शुरुआती चर्चाओं के अनुरूप ही थी। सीटों के बंटवारे पर अंतिम मुहर दो-तीन बैठकों के बाद लगेगी।एनसीपी के सूत्रों ने बताया कि 173 सीटों पर सहमति बन गई है, जिसमें सबसे ज्यादा सीटें बीजेपी को मिलेंगी, उसके बाद मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की शिवसेना और अजीत पवार की पार्टी को सीटें मिलेंगी।उन्होंने बताया कि महाराष्ट्र बीजेपी प्रमुख चंद्रशेखर बावनकुले, सीएम शिंदे और एनसीपी के वरिष्ठ नेताओं सुनील तटकरे और प्रफुल्ल पटेल की बैठक में जल्द ही शेष 115 सीटों पर अंतिम फैसला किया जाएगा।

क्या कहते हैं सियासी जानकार
महाराष्ट्र की सियासी राजनीति पर नजर रखने वाले कहते हैं कि 2024 का चुनाव दिलचस्प रहने वाला है। इस चुनाव में हर एक दल की ताकत को जमीन पर नजर आएगी। अगर आप आम चुनाव 2024 की बात करें तो महायुति को झटका लगा था। वहीं महाविकास अघाड़ी को फायदा मिला। लेकिन अलग अलग दलों के प्रदर्शन को देखें तो शिवसेना उद्धव गुट और शिंदे गुट का प्रदर्शन करीब करीब एक जैसा रहा। लेकिन एनसीपी के दोनों धड़ों शरद पवार और अजित पवार गुट का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा। हालांकि शरद पवार, अजित पवार पर भारी पड़े थे। अब महाराष्ट्र की सियासत में शिवाजी वो आदर्श पुरुष हैं जिनके ईर्द गिर्द सियासत घूमती रहती है। कोई भी राजनीतिक दल शिवाजी के आदर्शों और उनके गौरव से हटकर कोई बात नहीं करता। इसीलिए आप देखेंगे कि पीएम मोदी जब ठाणे में वधावन पोर्ट का शिलान्यास कर रहे थे तो हाथ जोड़कर सिर झुकाकर शिवाजी की प्रतिमा गिरने पर माफी मांगी। 

अब शिवाजी का प्रसंग ऐसा है कि विपक्षी दलों को यकीन है कि इसे सियासी फसल के तौर पर काटा जा सकता है। अब इस विषय पर शिंदे सरकार के सामने कड़े से कड़ा एक्शन की जगह कोई और विकल्प नहीं है। शिंदे की सरकार पोल खोल के जरिए कांग्रेस, एनसीपी शरद पवार और शिवसेना ठाकरे की नीतियों की आलोचना कर तो सकती है। लेकिन उसे जनता यह समझाना कठिन होगा कि सिंधुदुर्ग के मालवन में जो घटना घटी उससे उसका कोई नाता नहीं है। 

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