मालेगांव धमाके से ट्रायल तक, 17 साल की कानूनी कहानी

2008 के मालेगांव ब्लास्ट केस में अदालत ने सभी सातों आरोपियों को बरी कर दिया है।धमाके में 6 लोगों की मौत और 101 घायल हुए थे। इस मामले की जांच ATS से NIA तक ने की थी।;

Update: 2025-07-31 06:48 GMT

17 साल पहले महाराष्ट्र के मालेगांव में धमाका हुआ था। उस धमाके के लिए साध्वी प्रज्ञा ठाकुर समेत सात लोगों को आरोपी बनाया गया। इतने वर्ष की कानूनी लड़ाई के बाद एनआईए की कोर्ट ने सभी सातों आरोपियों को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया। एनआईए कोर्ट के फैसले के खिलाफ पीड़ित परिवारों ने ऊपरी अदालत का दरवाजा खटखटाने का फैसला किया है। इन सबके बीच आरोपियों ने कहा कि देर से ही सही इस मामले में न्याय मिला है। लेकिन सितंबर 2008 में क्या कुछ हुआ था। 

धमाका हुआ लेकिन कोई दोषी नहीं

29 सितंबर 2008 को महाराष्ट्र के मालेगांव के भीकू चौक पर एक मोटरसाइकिल में रखे बम में धमाका हुआ, जिसमें 6 लोगों की मौत हो गई और 101 लोग घायल हो गए। मृतकों में फरहीन उर्फ शगुफ्ता शेख लियाकत, शेख मुश्ताक यूसुफ, शेख रफीक मुस्तफा, इरफान जियाउल्लाह खान, सैयद अजहर सैयद निसार और हारून शाह मोहम्मद शाह शामिल थे।

शुरुआती एफआईआर स्थानीय पुलिस ने दर्ज की, लेकिन बाद में केस एंटी टेररिज्म स्क्वॉड (ATS) को सौंपा गया। ATS ने दावा किया कि 'अभिनव भारत' नाम का संगठन एक संगठित आपराधिक गिरोह की तरह 2003 से काम कर रहा था। चार्जशीट में साध्वी प्रज्ञा ठाकुर, लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित, रमेश उपाध्याय समेत कुल 16 लोगों को आरोपी बनाया गया।

जांच का पहला सुराग एक LML फ्रीडम मोटरसाइकिल से मिला, जिसका नंबर फर्जी था। इंजन-चेसिस नंबर की जांच के बाद असली रजिस्ट्रेशन नंबर (GJ-05-BR-1920) प्रज्ञा सिंह ठाकुर के नाम पर दर्ज पाया गया। 23 अक्टूबर 2008 को प्रज्ञा ठाकुर, शिवनारायण कालसांगरा और श्याम शाउ को गिरफ्तार किया गया। नवंबर 2008 तक कुल 11 गिरफ्तारियाँ हुईं और केस में MCOCA लगाया गया।

साजिश और आरोप

अभियोजन के अनुसार, कर्नल पुरोहित ने कश्मीर से RDX लाकर अपने घर में छिपाया। सुधाकर चतुर्वेदी के देवलाली स्थित घर में बम तैयार किया गया, जिसे बाद में रामजी कालसांगरा, प्रवीण टक्कलकी और संदीप डांगे ने मालेगांव में मोटरसाइकिल पर लगाकर धमाका किया।धमाके की योजना जनवरी 2008 से फरीदाबाद, भोपाल और नासिक में हुई गुप्त बैठकों में बनाई गई थी। आरोप था कि इन बैठकों में एक 'हिंदू राष्ट्र - आर्यवर्त' बनाने की योजना बनाई गई थी, जिसमें स्वतंत्र संविधान और ध्वज की भी बात थी।

जनवरी 2009 में पहली चार्जशीट दाखिल की गई। इलेक्ट्रॉनिक सबूतों में सुधाकर द्विवेदी के लैपटॉप की रिकॉर्डिंग और वॉयस सैंपल शामिल थे। फरवरी 2011 में प्रवीण टक्कलकी की गिरफ्तारी के बाद सप्लीमेंट्री चार्जशीट दाखिल की गई।

NIA की एंट्री और कानूनी बदलाव

2011 में केस राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) को ट्रांसफर हुआ। 13 मई 2016 को NIA ने सप्लीमेंट्री चार्जशीट में MCOCA की धाराएं हटाई, यह कहते हुए कि ATS द्वारा इसका इस्तेमाल संदिग्ध था। NIA ने ATS पर झूठे सबूत गढ़ने और गवाहों को धमकाने का आरोप लगाया।

27 दिसंबर 2017 को ट्रायल कोर्ट ने माना कि MCOCA लागू नहीं होता, लेकिन प्रज्ञा ठाकुर समेत 7 आरोपियों को आरोपमुक्त करने से इनकार कर दिया। इनके खिलाफ UAPA, IPC और Explosives Act के तहत मुकदमा जारी रहा। सबूतों के अभाव में तीन आरोपियों को बरी कर दिया गया।

ट्रायल और गवाही

दिसंबर 2018 में ट्रायल शुरू हुआ। प्रॉसिक्यूशन ने 323 गवाहों की गवाही करवाई, जिनमें 282 ने साथ दिया। कॉल डाटा रिकॉर्ड और वॉयस सैंपल जैसे तकनीकी साक्ष्य भी पेश किए गए। हालांकि 26 गवाहों की मृत्यु हो चुकी थी और 39 अपने बयान से पलट गए। 41 गवाहों को सूची से हटा भी दिया गया था।कुछ आरोपियों ने हिरासत में प्रताड़ना का आरोप लगाया। लंबी कानूनी प्रक्रिया के बाद, 19 अप्रैल 2025 को कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया।

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