MCD ने NGT को सौंपी रिपोर्ट, क्या 2027 तक खत्म होगा गाजीपुर में ‘कूड़े का पहाड़’?
Waste-to-Energy Plant: विशेषज्ञों का मानना है कि गाजीपुर लैंडफिल की सफाई सिर्फ एक इंजीनियरिंग प्रोजेक्ट नहीं, बल्कि एक शहरी जीवनशैली सुधार अभियान है।
Ghazipur landfill site: दिल्ली के गाजीपुर लैंडफिल में रोजाना करीब 2400 से 2600 मीट्रिक टन (एमटी) टन कचरा पहुंच रहा है, लेकिन डब्ल्यूटीई प्लांट में केवल 700 से 1000 मीट्रिक टन ही प्रोसेस हो पाता है. बाकी कचरा बायो-माइनिंग से बनी सीमित जगह पर डाला जाता है, क्योंकि लैंडफिल की ऊंचाई अब और नहीं बढ़ाई जा सकती. वहीं, पुराने कचरे को साफ करने का काम तेजी से चल रहा है और यह साल 2027 तक पूरा हो जाएगा। यह जानकारी एमसीडी ने एनजीटी को सौंपी अपनी हालिया स्थिति रिपोर्ट में दी है। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या सही में साल 2027 तक कूड़े का पहाड़ साफ हो पाएगा या फिर एनजीटी में सौंपी गई रिपोर्ट महज खानापूर्ति बनकर रह जाएगी.
इसको लेकर दिल्ली के पर्यावरण विशेषज्ञों का कहना है कि गाजीपुर लैंडफिल की समस्या केवल पुराने कचरे को हटाने से खत्म नहीं होगी। जब तक रोज़ाना आने वाले नए कचरे की मात्रा को घटाने और उसके स्रोत पर ही निपटान की ठोस व्यवस्था नहीं होगी, तब तक यह "कूड़े का पहाड़" दोबारा खड़ा हो सकता है। गाजीपुर लैंडफिल तब तक नहीं साफ होगा, जब तक दिल्ली में हर घर और बाजार में ‘वेस्ट सेग्रीगेशन’ यानी गीले-सूखे कचरे को अलग-अलग जमा करने की सख्त व्यवस्था नहीं होगी। सिर्फ बायो-माइनिंग या WTE प्लांट से यह संकट खत्म नहीं हो सकता।
विशेषज्ञों का कहना है कि एमसीडी की रिपोर्ट में दिखाया गया सफाई का आंकड़ा प्रभावशाली है, लेकिन अगर रोज़ 2400–2600 टन नया कचरा आता रहेगा और प्रोसेसिंग क्षमता केवल 1000 टन तक सीमित रहेगी तो पुराना ढेर साफ होने के साथ नया पहाड़ बनता रहेगा। WTE प्लांट में आने वाले कचरे का केवल एक हिस्सा ही प्रोसेस हो पाता है, क्योंकि उसमें गीला और अधजला कचरा भी मिल जाता है। जब तक ठोस अपशिष्ट पृथक्करण (Solid Waste Segregation) नहीं होगा, तब तक ये प्लांट अपनी पूरी क्षमता से नहीं चल सकते।
85 लाख टन पुराना कचरा, 32 लाख टन अब तक हटाया गया
रिपोर्ट बताती है कि गाजीपुर साइट पर करीब 85 लाख एमटी पुराना कचरा जमा था, जिसकी ऊंचाई लगभग 65 मीटर तक पहुंच चुकी थी. 2019 में शुरू हुए बायो-माइनिंग प्रोजेक्ट में कई दिक्कतें आईं — मशीनों के लिए जगह की कमी और ठेकेदारों की अनुपलब्धता जैसी. पहले ठेके में सिर्फ 13.9 लाख एमटी कचरा साफ हो सका, जिसके बाद उसे रद्द कर दिया गया.
अब मार्च 2025 से अलवाजो सॉल्यूशंस कंपनी यह काम कर रही है. उसे 30 लाख एमटी कचरा हटाने का लक्ष्य दिया गया है, जिसे बाद में बढ़ाकर 45 लाख एमटी कर दिया गया. अगस्त 2025 तक 6.6 लाख एमटी कचरा हटाया जा चुका है.
अब तक कुल 32 लाख एमटी पुराना कचरा साफ किया जा चुका है. बाकी सफाई के लिए सितंबर 2025 में नया टेंडर जारी किया गया है और ठेकेदार को निर्देश दिया गया है कि वह तय समय से तीन महीने पहले लक्ष्य पूरा करे.
नया वेस्ट-टू-एनर्जी प्लांट और दोबार शुरू हुई ओखला साइट
एमसीडी ने रिपोर्ट में बताया कि अप्रैल 2025 में बंद हुई ओखला प्लांट को अब फिर से चालू किया गया है. अगस्त 2025 से रोज़ाना करीब 300 एमटी कचरा वहां भेजा जा रहा है. हालांकि, यह मात्रा प्लांट की क्षमता के अनुसार बदलती रहती है. इसके अलावा, जुलाई 2025 में 2000 एमटी क्षमता वाला नया WTE प्लांट लगाने के लिए भी टेंडर जारी किया गया है.
बायो-माइनिंग से निकला कचरा कहां जाता है?
रिपोर्ट के अनुसार, बायो-माइनिंग से निकले अलग-अलग प्रकार के कचरे को अलग-अलग जगह भेजा जा रहा है:-
इनर्ट और C&D वेस्ट (निर्माण अवशेष) — गाजियाबाद, नोएडा, लोनी और दसना जैसी जगहों में भराई (लेवलिंग) के लिए भेजा जा रहा है.
RDF (Refuse Derived Fuel)— मेरठ और मुजफ्फरनगर की फैक्टरियों में ईंधन के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है.
साइट पर अब तक 5 एकड़ जमीन साफ की जा चुकी है, जहां ट्रॉमेल मशीनों के शेड, RDF स्टोरेज और वाहन पार्किंग बनाई गई है. एमसीडी के मुताबिक, पुराने कचरे की सफाई की गति नई आमद से तेज है. अप्रैल से जुलाई 2025 के बीच जितना नया कचरा आया, उसका लगभग दोगुना पुराना कचरा हटाया गया.
लीचेट (गंदे पानी) के प्रबंधन में सुधार
रिपोर्ट में बताया गया है कि कचरे से निकलने वाले गंदे पानी यानी लीचेट के प्रबंधन में सुधार किया गया है. अब यह लीचेट साइट पर ही छिड़काव के लिए इस्तेमाल किया जाता है, जिससे धूल कम होती है और बायो-कल्चर प्रक्रिया (सूक्ष्मजीवों की गतिविधि) को बढ़ावा मिलता है. दिसंबर 2024 में दो बड़े लीचेट टैंक बनाए गए, जिनकी क्षमता 50,000 लीटर प्रत्येक है. जनवरी से जुलाई 2025 तक लीचेट के उपयोग का पूरा रिकॉर्ड रिपोर्ट में दिया गया है.
एनजीटी के सवालों पर एमसीडी का जवाब
एनजीटी ने अप्रैल 2025 में गाजीपुर लैंडफिल में लगी आग पर स्वत: संज्ञान लेते हुए एमसीडी, डीपीसीसी, सीपीसीबी और पूर्वी दिल्ली जिलाधिकारी से जवाब मांगा था. एमसीडी ने कहा है कि C&D कचरा ढेर पर डालना आग और गैस के खतरे को कम करने के लिए जरूरी है. ट्रॉमेल मशीनें 24 घंटे चलती हैं, सिर्फ रखरखाव के समय बंद रहती हैं. क्षतिग्रस्त ड्रेनों की मरम्मत के लिए प्रस्ताव भेजा गया है. एमसीडी ने माना कि जगह और प्रोसेसिंग क्षमता की कमी के कारण कुछ अस्थायी डंपिंग हो रही है, लेकिन नए प्लांट और प्रोजेक्ट्स से स्थिति में जल्द सुधार की उम्मीद है.