पलक्काड एक्सप्रेस में महिला पर गिरा मिडिल बर्थ, रेलवे ने झाड़ा पल्ला
भारतीय रेलवे से यात्रा कर रहे हों तो सुरक्षा की जिम्मेदारी आप की है। पलक्काड एक्सप्रेस में महिला एक ऊपर मिडिल बर्थ गिर गया। लेकिन रेलवे पल्ला झाड़ रहा है।;
भारतीय रेलवे में यात्रा कर रहे यात्रियों के लिए एक भयावह सपना उस समय हकीकत बन गया जब पलक्काड एक्सप्रेस में सफर कर रही एक महिला यात्री के ऊपर मिडिल बर्थ गिर गया। यह हादसा उस वक्त हुआ जब महिला निचली बर्थ पर सो रही थी। इस दुर्घटना में उसे सिर पर गंभीर चोटें आईं और लगभग एक घंटे तक उसे खून बहने से खुद को बचाने के लिए अपने सिर पर कपड़ा बांधकर बैठना पड़ा। पीड़िता का आरोप है कि उसे समय पर प्राथमिक उपचार भी नहीं मिला।
रेलवे ने आरोपों को किया खारिज, सुरक्षा की दी सलाह
दक्षिण रेलवे के अधिकारियों ने इस दुर्घटना के लिए मिडिल बर्थ की फिटनेस में कोई कमी होने से इनकार किया है। अधिकारियों का कहना है कि मिडिल बर्थ की हैंडल और चेन को ठीक से लॉक न करने के कारण यह हादसा हुआ। साथ ही रेलवे ने यात्रियों के लिए एक एडवाइजरी भी जारी की है कि वे सफर के दौरान बर्थ को ठीक से लॉक करें और खुद भी सावधानी बरतें।
कैसे हुआ हादसा?
यह हादसा 12 मई की तड़के तमिलनाडु के मोरप्पुर रेलवे स्टेशन के पास हुआ। पीड़िता सुर्या (39 वर्ष), चेन्नई के मुगलिवक्कम की निवासी हैं। वह 11 मई की रात अपने परिवार के साथ पलक्काड एक्सप्रेस के कोच S5 में सफर कर रही थीं और मुन्नार अपने पैतृक घर जा रही थीं।
रात करीब 1:30 बजे जब सुर्या निचली बर्थ पर सो रही थीं, तभी ऊपर की बर्थ पर सो रहा एक सहयात्री टॉयलेट जाने के लिए नीचे उतरा। तभी मिडिल बर्थ अचानक अपनी जगह से निकलकर सुर्या के सिर पर गिर गई। तेज आवाज और सुर्या की चीख सुनकर बाकी यात्री जाग गए और मदद के लिए दौड़े।
'ट्रेन में प्राथमिक उपचार की कोई सुविधा नहीं थी'
सिर पर लगी चोट से सुर्या का काफी खून बह रहा था। उन्होंने जब TTE (ट्रेन टिकट परीक्षक) से मदद मांगी, तो बताया गया कि ट्रेन में फर्स्ट एड बॉक्स ही नहीं है। सुर्या ने यह भी आरोप लगाया कि उनकी हालत गंभीर होने के बावजूद ट्रेन को किसी नजदीकी स्टेशन पर नहीं रोका गया। लगभग डेढ़ घंटे बाद जब ट्रेन सलेम स्टेशन पहुंची, तब जाकर उन्हें चिकित्सकीय सहायता मिल सकी। वहाँ डॉक्टरों ने प्राथमिक इलाज किया और सिर में तीन टांके लगाए। बाद में सुर्या को मुन्नार के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया।
रेलवे अधिकारियों पर लापरवाही का आरोप
पीड़िता सुर्या ने रेलवे अधिकारियों पर गंभीर लापरवाही का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा, “ट्रेन में एक प्राथमिक उपचार बॉक्स तक नहीं था।” उन्होंने यह भी बताया कि बाद में उन्हें मोरप्पुर स्टेशन के रेलवे सुरक्षा अधिकारियों का फोन आया, जिन्होंने दावा किया कि उन्हें इस घटना की कोई जानकारी नहीं है।
यह हादसा भारतीय रेलवे की सुरक्षा व्यवस्था और लंबी दूरी की ट्रेनों में आपातकालीन चिकित्सा सुविधा की हकीकत पर बड़ा सवाल खड़ा करता है। यात्रियों के मन में यह आशंका उठ रही है कि अगर कोच का उपकरण इस तरह असफल हो सकता है, तो उनकी सुरक्षा किसके भरोसे है?
दक्षिण रेलवे का बयान: बर्थ लॉक नहीं किया गया था ठीक से
दक्षिण रेलवे के मुख्य जनसंपर्क अधिकारी एम. सेंथमिझ सेल्वन ने मीडिया से कहा कि रेलवे ने नियमानुसार त्वरित चिकित्सकीय सहायता की व्यवस्था की थी। उनके अनुसार, “पीड़िता ने मोरप्पुर स्टेशन पर इलाज के लिए उतरने से इनकार कर दिया था। बाद में सलेम स्टेशन पर उन्हें चिकित्सा स्टाफ ने देखा और स्टेशन मास्टर द्वारा भेजी गई एम्बुलेंस से दोपहर 3:05 बजे उन्हें सलेम गवर्नमेंट हॉस्पिटल ले जाया गया।”
रेलवे का कहना है कि यह दुर्घटना तकनीकी खामी नहीं बल्कि यात्री द्वारा मिडिल बर्थ की चेन को ठीक से न लगाने के कारण हुई। कोच S5 (क्रमांक SRWWGCN 056303) की जाँच रेल विभाग, RPF और ट्रैफिक विभाग के अधिकारियों द्वारा की गई। जाँच में पाया गया कि मिडिल बर्थ की चेन और लॉकिंग मैकेनिज़्म पूरी तरह सुरक्षित थे। यह भी स्पष्ट हुआ कि बर्थ का हुक तभी खुलता है जब उसे 2.5 सेंटीमीटर से अधिक उठाया जाए, जो मानक विनिर्देशों के अनुरूप है।
रेलवे ने यह भी जानकारी दी कि कोच का अंतिम पूर्ण निरीक्षण 16 मार्च, 2025 को किया गया था और 12 मई को ट्रेन के चेन्नई से प्रस्थान से पहले फिटनेस प्रमाण पत्र जारी किया गया था।
यात्री सुरक्षा पर फिर सवाल
यह हादसा एक बार फिर यह साबित करता है कि रेलवे को सिर्फ तकनीकी फिटनेस ही नहीं, यात्रियों की आपात चिकित्सा सहायता और सुरक्षा जागरूकता पर भी ध्यान देना होगा। फर्स्ट एड बॉक्स जैसी बुनियादी सुविधा का ना होना, और घायलों को तत्काल राहत ना मिल पाना ये व्यवस्थागत खामियों की ओर इशारा करते हैं, जिनकी कीमत आम यात्रियों को चुकानी पड़ती है।