गांव की महिलाएं बनीं बदलाव की मिसाल, फिर जिंदा हुआ बाजरा

तमिलनाडु के पेरेम्बलूर में महिला किसानों ने पारंपरिक बाजरा खेती को फिर से जीवित कर पर्यावरण, पोषण और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को नया जीवन दिया।;

Update: 2025-07-09 08:56 GMT

तमिलनाडु का पेरेम्बलूर जिला, जो कभी राज्य का सबसे जलवायु-संवेदनशील और सूखा प्रभावित क्षेत्र माना जाता था, आज एक शांत लेकिन प्रभावशाली क्रांति का गवाह बन रहा है। इस बदलाव की अगुआई कोई और नहीं, बल्कि यहां की महिला किसान कर रही हैं, जिन्होंने पारंपरिक बाजरा खेती को फिर से ज़िंदा कर एक नई दिशा दी है।

बाजरा वापसी की शुरुआत संकट से हुई

पेरेम्बलूर के वेप्पूर ब्लॉक में किसानों ने कभी पारंपरिक बाजरा जैसे वरागु (कोदो मिलेट), चोलम (ज्वार) और थिनई (फॉक्सटेल मिलेट) की खेती की थी। लेकिन समय के साथ बीटी कॉटन और हाई-यील्डिंग मक्का जैसे फसलों ने जगह ले ली। हालांकि, इन फसलों ने मुनाफे का वादा किया था, लेकिन साथ आई कीटनाशकों पर निर्भरता, पर्यावरणीय क्षति और किसानों की मौतें।बाजरा जब खेतों से गायब हुआ तो महिलाओं और बच्चों में कुपोषण तेजी से बढ़ने लगा। इन्हीं हालातों ने 48 वर्षीय के. बनुमति को प्रेरित किया कि वो कुछ करें।

Barefoot Academy के साथ नई शुरुआत

2015 में 'Barefoot Academy of Governance' (BA) ने छोटे किसानों को जोड़कर जैविक तरीके से बाजरा खेती को पुनर्जीवित करने का प्रयास शुरू किया। बनुमति बताती हैं,"इस प्रयास ने न केवल खेती को फिर से जीवित किया बल्कि स्वस्थ, पर्यावरण-अनुकूल और जलवायु-स्थिर विकल्प दिए।"

2024-25 तक 1.6 लाख किलो बाजरा उत्पादन

एक दशक बाद, आज 227 किसान 425 एकड़ में बाजरा उगा रहे हैं और अब तक 1.63 लाख किलो से अधिक बाजरे की खरीद हो चुकी है।

पार्टिसिपेटरी प्राइसिंग मॉडल से खत्म हुआ शोषण

किसान सुमति बताती हैं,"हर सीजन में हम बीज से फसल तक हर खर्च का हिसाब रखते हैं। फिर सामूहिक बैठक में वास्तविक लागत के आधार पर दाम तय करते हैं। इससे बाजार से बेहतर दाम मिलते हैं और बिचौलियों से मुक्ति।"इसी मॉडल से 2020 में ‘नम्मालवार इयरकाई सिरुधनिया उझावर उरपथियालर कुजु’ नामक महिला नेतृत्व वाली किसान समूह का गठन हुआ, जिसमें 30 सक्रिय सदस्य हैं।

सरकारी और निजी सहयोग से नया आकार

तमिलनाडु स्टेट प्लानिंग कमीशन ने State Balanced Growth Fund के तहत वित्तीय सहायता दी जिससे 115 एकड़ में 61 किसानों से खरीद और नन्नई गांव में बाजरा प्रोसेसिंग यूनिट की स्थापना संभव हुई। Earth 360 Eco Ventures और Millet Machines & Tools ने किसानों को बेहतर दाम और आधुनिक ग्रेडिंग मशीनें दीं।DANE और Protech Impact Foundation जैसे संगठनों ने डी-हुलर, रोस्टर और पाउडर इकाइयाँ उपलब्ध कराईं जिससे महिलाओं की आय के नए स्रोत खुले।

सफलता की कहानी आंकड़ों में

2015-16 में 1,350 किलो से शुरू होकर 2024-25 में 48,297 किलो बाजरे की खरीद हुई। कुल मिलाकर 10 साल में 1.63 लाख किलो से अधिक बाजरा खरीदा गया। लेकिन चुनौतियां अभी भी हैं औसत उत्पादन 500–600 किलो प्रति एकड़

प्रोसेसिंग श्रमिकों पर भारी दबाव

बिजली लागत अधिक (₹3,500/दो माह) है और सबसे बड़ा, स्थानीय उपभोग की कमी

स्थानीय खपत को बढ़ावा देने की योजना

बनुमति कहती हैं, "आज कुछ आंगनवाड़ियों और स्कूलों में बाजरा भोजन दिया जाता है। इससे बच्चों को घर में भी बाजरा अपनाने की प्रेरणा मिलती है। जब बच्चों को पता चलता है कि उनका खाना स्थानीय किसान उगा रहे हैं, तो वे इस परंपरा को अपनाते हैं।"

समानता और स्थायित्व की ओर कदम

पर्यावरणविद अरुल सेल्वम कहते हैं:"यह सिर्फ खेती का पुनरुत्थान नहीं है, बल्कि एक सशक्तिकरण मॉडल है – जो परंपरा में रचा-बसा है और भविष्य की ओर देखता है।"नम्मालवार सोसाइटी अब बाजरे से नाश्ते, रेडी-टू-ईट मिक्स, और स्नैक्स बनाकर महिलाओं को उद्यमिता और नेतृत्व में प्रशिक्षित कर रही है।

पेरेम्बलूर की महिलाओं की यह बाजरा क्रांति सिर्फ एक खेती आंदोलन नहीं है, बल्कि यह जलवायु प्रतिरोधकता, खाद्य सुरक्षा, ग्रामीण अर्थव्यवस्था और महिला सशक्तिकरण का सशक्त उदाहरण बन चुकी है। यह कहानी साबित करती है कि यदि सही दिशा, सहयोग और सामूहिक इच्छाशक्ति हो, तो सबसे पिछड़ा इलाका भी प्रेरणा बन सकता है।

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