ओडिशा में BJP जीत का 'M' फैक्टर, माझी की ताजपोशी से झारखंड पर टिकी निगाहें

क्या ओडिशा में मोहन चरण माझी के हाथ में सरकार की कमान सौंप बीजेपी ने बड़ा फैसला किया है. क्या झारखंड की सियासत को साधने की कोशिश हुई.

By :  Lalit Rai
Update: 2024-06-13 07:09 GMT

Mohan Charan Majhi News: भारतीय जनता पार्टी के बारे में कहा जाता है कि वो किसे फर्श से अर्श तक पहुंचने का मौका दे कहा नहीं जा सकता. अब आप ओडिशा के सीएम मोहन चरण माझी को देखिए. उनके शपथ से पहले उनकी पत्नी कहती हैं इतना तो पता था कि वो मंत्री बन जाएंगे लेकिन सीएम के बारे में सोचा नहीं था. हालांकि हम यहां बात कुछ और करने वाले हैं, ओडिशा में जीत का एम फैक्टर क्या है. ओडिशा में ट्राइबल फेस को सीएम बनाने का मतलब क्या है.बुधवार को जब मोहन चरण माझी सीएम पद की शपथ ले रहे थे उस वक्त दो तरह के इतिहास बन रहे थे. पहला तो ये कि अगर नवीन पटनायक दोबारा जीत हासिल किए होते तो अगस्त के महीने में वो देश के सबसे लंबे समय तक सीएम बने रहने का रिकॉर्ड बना लेते. दूसरा इतिहास यह बना कि बीजेपी अपने बलबूते ओडिशा में सरकार बनाने में कामयाब हुई.

मोहन चरण माझी तीसरे ट्राइबल सीएम
मोहन चरण माझी के सीएम बनने से पहले ओडिशा में दो और आदिवासी उस कुर्सी तक पहुंचे. नाम था हेमानंद बिस्वाल और गिरधर गोमांग. बिस्वाल 1989-90 और 1999-2000 के बीच कुछ महीनों के लिए सीएम रहे जबकि गिरधर गोमांग को 1999 में ही कुछ समय के लिए जिम्मेदारी मिली थी. इस तरह से मोहन चरण मांझी के तीसरे बड़े आदिवासी बहुल राज्य के तीसरे सीएम बने हैं. ओडिशा की राजनीति की बात करें तो ज्यादातर सीएम राज्य के तटीय इलाकों से आए और उनका सामाजिक रुतबा था. आर्थिक तौर पर वो संपन्न जातियों से आते थे. लेकिन मोहन चरण मांझी का चुना जाना या यूं कहें कि बीजेपी को ओडिशा की सत्ता में आना क्रांतिकारी बदलाव है.

ओडिशा की जीत में M फैक्टर
ओडिशा में बीजेपी की जीत कोई एक साल या दो साल के संघर्ष का नतीजा है. सालों साल से संघ परिवार ट्राइबल बहुल इलाकों में सक्रिय रहा है. अगर आप देश की आजादी के बाद से देखें तो 1995 से पहले तक कांग्रेस की सरकार रही, कांग्रेस की सरकार ने भी आदिवासी कल्याण के लिए काम किया. लेकिन वो सतही रहा. कांग्रेस की कमजोरियों को संघ ने समझा और वनवासी कल्याण आश्रमों के जरिए ट्राइबल अस्मिता, पहचान और रोजगार देने पर बल दिया है, आदिवासी इलाकों में धर्मांतरण के खिलाफ भी जमीनी स्तर पर काम किया और धीरे धीरे इस समाज को बीजेपी का तरफ जाने के लिए आकर्षित किया. इसके साथ साथ राजनीतिक तौर बीजेपी ने ओडिशा के आदिवासी समाज को ताकत दी. इसके लिए द्रौपदी मुर्मू को ना सिर्फ केंद्र सरकार में मंत्री बनाया. झारखंड का गवर्नर बनाया बल्कि देश का सर्वोच्च पद यानी राष्ट्रपति बना दिया. इससे आदिवासी समाज में संदेश गया कि बीजेपी वो दल है जो सही मायनों में हितैषी. इसके साथ ही नरेंद्र मोदी सरकार की आदिवासी कल्याणकारी योजनाओं का भी असर दिखा.

झारखंड से क्या है नाता
अब सवाल यह है कि मोहन चरण माझी के सीएम बनने और झारखंड के बीच क्या नाता है. आप इसे ऐसे समझिए कि नाता सीधा तो नहीं बल्कि सियासी फसल से जुड़ा है. झारखंड की सियासत में शिबू सोरेन परिवार के असर को नकारा नहीं जा सकता. इस समय झारखंड मुक्ति मोर्चा की सरकार है और चंपई सोरेन सरकार की कमान संभाल रहे हैं. दरअसल जमीन घोटाला केस में हेमंत सोरेन जेल में हैं. हाल ही में लोकसभा चुनाव संपन्न हुआ और बीजेपी का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा.खासतौर से दुमका सीट पर बीजेपी ने शिबू सोरेन की बड़ी बहू सीता सोरेन को टिकट दिया था. लेकिन वो चुनाव हार गईं. उनकी हार से अधिर बीजेपी के लिए चिंता की बात यह हुई कि संथाल समाज पूरी तरह से उनसे कट गया. अगर आप मोहन चरण माझी को देखें तो वो संथाल समाज से आते हैं.लिहाजा माझी की ताजपोशी के जरिए संथाल समाज को यह संदेश देने की कोशिश की गई है कि वो लोग बीजेपी के दिल में बसते हैं, इसके साथ ही छत्तीसगढ़ में विष्णुदेव को सीएम बनाकर पहले ही बीजेपी संदेश दे चुकी है कि आदिवासी समाज उनके लिए कितना मायने रखता है.

कैसे सधेगा बंगाल
यहां दिलचस्प सवाल है कि ओडिशा के जरिए बंगाल कैसे सधेगा.सियासी जानकारों के मुताबिक राजनीति में हवा का रुख बदलने में देर नहीं लगती. किसको पता था कि संविधान बचाओ और आरक्षण पर डाका बीजेपी के खिलाफ चला जाएगा. ओडिशा में इस समय बीजेपी की सरकार है. बीजेपी ने आदिवासी समाज से एक संथाल को सीएम बनाया है. बीजेपी को उम्मीद है कि उसका यह कार्ड झारखंड में चल सकता है. अगर एक पल के लिए आप मान लें कि झारखंड की कमान बीजेपी के हाथ में आई तो उसके असर से बंगाल अछूता नहीं रह सकता क्योंकि झारखंड और ओडिशा दोनों की भौगोलिक सीमा बंगाल से लगती है और वहां रहने वाले आदिवासी समाज के बीजेपी यह संदेश दे सकती है आपकी भलाई को सबसे बेहतर समझने वाला दल हम हैं.

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