महाकुंभ भगदड़: मौतों की संख्या पर सवालों के घेरे में यूपी सरकार
प्रयागराज महाकुंभ में मारे गए श्रद्धालुओं की संख्या पर नए खुलासे के बाद यूपी सरकार सवालों के घेरे में है। विपक्ष मुद्दे को लेकर लगातार हमलावर है।;
प्रयागराज महाकुंभ में भगदड़ को लेकर यूपी सरकार एक बार फिर सवालों के कटघरे में है। इस बार सवाल विपक्ष ने नहीं, बल्कि मीडिया रिपोर्ट खड़े किए हैं। बीबीसी की इनवेस्टिगेटिव रिपोर्ट कहती है कि 29 जनवरी को मौनी अमावस्या के दिन महाकुंभ क्षेत्र में सिर्फ़ संगम नोज पर नहीं, बल्कि चार अलग-अलग प्वाइंट्स पर भगदड़ हुई थी। रिपोर्ट में इस बात को बताया गया है कि इन चार जगहों पर हुई भगदड़ में बड़ी संख्या में लोगों की मौत हुई थी। लेकिन सबसे ज़्यादा गंभीर बात यह है कि इस मीडिया रिपोर्ट में 82 मौतों को सबूत के साथ ढूंढकर लाने का दावा किया गया है।
संख्या और नकद आर्थिक सहायता
चार महीने बाद श्रद्धालुओं की मौत की संख्या पर सवाल उठने के बाद भी सरकार खामोश बनी हुई है। लेकिन अंदरखाने में हलचल है। ये सवाल गंभीर हैं सिर्फ़ इसलिए नहीं है कि निर्दोष लोगो की मौत हुई है, बल्कि इसलिए भी क्योंकि यह बात भी चौंकाने वाली है कि सरकार ने कई मृतकों के परिजनों को 5-5 लाख रुपए की आर्थिक मदद आख़िर किस मद से उपलब्ध करा दिया? इसके साथ ही ये भी सवाल ज़रूरी हो गया है कि वो पुलिस वाले कौन थे, जिन्होंने सरकार या प्रशासन की तरफ़ से जाकर उन लोगों को नकद पैसा दिया?
हालांकि, अंदर से बेचैनी के बावजूद सरकार पर मां गंगा के भक्तों की मौतों की संख्या न बताने की बात को लेकर कोई दबाव नहीं दिख रहा है।इसकी वजह ये है कि विपक्ष इस मुद्दे पर सिर्फ़ सोशल मीडिया तक ही सीमित है। यूपी के सबसे बड़े विपक्षी दल और लोकसभा में तीसरी सबसे बड़ी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने ट्वीट ( x) पर सरकार को घेरने के बाद खामोशी ओढ़ ली। कांग्रेस की ओर से भी सिर्फ़ सोशल मीडिया पर ही सवाल उठाया गया है, नहीं तो 4 महीने बाद मौतों की संख्या को लेकर खुलासा करने का दबाव यूपी सरकार पर बढ़ जाता।
अधिकारियों की पोस्टिंग पर सवाल
एक गंभीर बात ये भी है कि इन मौतों के समय जिम्मेदार पद पर रहे अधिकारियों को प्राइम पोस्टिंग भी मिल गई। महाकुंभ मेलाधिकारी विजय किरण आनंद को यूपी के सबसे बड़े प्रोजेक्ट इन्वेस्ट यूपी का सीईओ बना दिया गया तो उस दौरान प्रयागराज में एजीजी रहे भानु भास्कर को यूपी के सबसे क्रीम क्षेत्र माने जाने वाले मेरठ ज़ोन में पोस्टिंग दी गई। यही नहीं इस दौरान श्रद्धालुओं को मौतों को सिरे से नकार देने वाले एसएसपी राजेश द्विवेदी को शाहजहांपुर में तैनाती दे दी गई। इसके अलावा प्रयागराज के तत्कालीन कमिश्नर, जिलाधिकारी को भी प्राइम पोस्टिंग मिल गई। ये बात इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि भगदड़ की एक वजह के रूप में पीपे के पुल बंद होने की बात भी उस दौरान सामने आई थी। बता दें कि उस दौरान इस बात के लिए मेला प्रशासन की आलोचना हुई थी कि 30 से ज़्यादा पीपे के पुल होने के बाद भी सिर्फ़ 7-8 पूल ही सामान्य लोगों के लिए खुले हुए थे। इसके लिए अधिकारियों पर सवाल उठे थे। मां गंगा के भक्तों की मौत की संख्या पर अब एक बार फिर से बात हो रही है तो इस बात पर भी चर्चा हो रही है।
विपक्ष ने उठाए सवाल
हालांकि, इस बार विपक्ष ने फिर सवाल उठाया है, पर ये आंकड़ा सामने आने के बाद भी विपक्ष का कोई मुखर विरोध सामने नहीं आया है। न तो किसी तरह के आंदोलन की घोषणा की गई है, न इस खुलासे के बाद बड़े नेताओं के कोई बयान सामने आए हैं। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता अमीक जामेई ( Ameeque Jamei) मौतों के साथ नकद आर्थिक मदद पर भी सवाल उठा रहे हैं। उनका कहना है कि ‘लाशों की तरह ये आंकड़े भी दफ़्न कर दिए गए। ऐसा क़त्ल तो अफ़ग़ानिस्तान में भी हिंदुओं का नहीं होता। ऐसा क़त्ल तो तालिबान में भी नहीं होता। अभी भी सैंकड़ों लोग मां, बहन, भाई की तस्वीरें लेकर घूम रहे हैं। पूरे हत्याकांड की जांच होनी चाहिए। अमीक जामेई सवाल उठाते हैं कि जो अफ़सर इसके ज़िम्मेदार हैं, उनको योगी सरकार ने बड़े बड़े पदों पर नवाज़ा।
वहीं, कांग्रेस भी इस खुलासे पर सवाल उठा रही है। हालांकि कांग्रेस के शीर्ष नेताओं ने अब तक कोई ट्वीट तक नहीं किया है। बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने भी खुलासे के 24 घंटे बीतने के बाद अब तक कोई बयान जारी नहीं किया है। यूपी कांग्रेस प्रवक्ता अंशु अवस्थी कहते हैं ‘ संख्या न 37 है न 82 हैं, बल्कि संख्या हज़ारों में है। उस दौरान भी कांग्रेस ने बाकायदा प्रेस में ये सवाल उठाए थे। सरकार ने कोई आधिकारिक आंकड़ा जारी नहीं किया। पैसे सरकार ने किस कोष से दिए? मेला अधिकारी को प्रमुख पोस्टिंग कैसे मिल गई? इन सवालों का कोई जवाब नहीं मिला।’
वहीं, बीजेपी की ओर से इस खुलासे पर नेताओं ने चुप्पी साध रखी है। प्रदेश के एक नेता ने बताया कि इसमें अधिकारियों को जवाब देना चाहिए।सवाल सरकार से है। पिछले विधानसभा सत्र में यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सदन में 37 मौतों की जानकारी दी थी। यूपी में जुलाई के तीसरे सप्ताह में यूपी विधानसभा का मानसून सत्र होने वाला है। फ़िलहाल ये माना जा सकता है विपक्ष इस मुद्दे को लेकर हमलावर होगा। ऐसे में सरकार को सदन में इसका जवाब देना पड़ सकता है।