पंकज चौधरी की बड़ी परीक्षा, यूपी बीजेपी की कमान संभालना और 2027 की तैयारी

प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद अब संगठन की पूरी जिम्मेदारी पंकज चौधरी के हाथों में होगी। उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती सरकार और संगठन के बीच बेहतर तालमेल बनाना, कार्यकर्ताओं की नाराजगी दूर करना और बूथ स्तर तक संगठन को मजबूत करना होगी।

Update: 2025-12-14 02:19 GMT
पंकज चौधरी
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UP BJP President: उत्तर प्रदेश बीजेपी को आखिरकार नया प्रदेश अध्यक्ष मिल गया है। मोदी सरकार में मंत्री पंकज चौधरी ने शनिवार को यूपी बीजेपी अध्यक्ष पद के लिए अपना नामांकन दाखिल कर दिया। इस दौरान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ उनके प्रस्तावक बने। प्रदेश अध्यक्ष पद के लिए सिर्फ एक ही नामांकन दाखिल हुआ है, इसलिए रविवार को पंकज चौधरी के नाम का औपचारिक ऐलान कर दिया जाएगा।

कौन हैं पंकज चौधरी?

पंकज चौधरी पूर्वांचल के गोरखपुर से आते हैं। वह ओबीसी वर्ग से हैं। कुर्मी समाज से ताल्लुक रखते हैं। 7 बार सांसद रह चुके हैं और वर्तमान में केंद्रीय मंत्री हैं। बीजेपी ने उन्हें प्रदेश अध्यक्ष बनाकर सामाजिक संतुलन साधने की कोशिश की है। पार्टी ने संगठन की कमान ओबीसी नेता को देकर और सरकार की कमान अगड़ी जाति के नेता (सीएम योगी) के पास रखकर जातीय समीकरणों को संतुलित करने का प्रयास किया है।

2027 चुनाव की जिम्मेदारी

पंकज चौधरी की अगुवाई में ही बीजेपी 2027 का विधानसभा चुनाव लड़ेगी। ऐसे में उनके सामने सिर्फ संगठन संभालने की नहीं, बल्कि पार्टी को चुनावी जीत की ओर ले जाने की बड़ी जिम्मेदारी होगी।

सरकार और संगठन के तालमेल की चुनौती

प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद अब संगठन की पूरी जिम्मेदारी पंकज चौधरी के हाथों में होगी। उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती सरकार और संगठन के बीच बेहतर तालमेल बनाना, कार्यकर्ताओं की नाराजगी दूर करना और बूथ स्तर तक संगठन को मजबूत करना होगी। पिछले कुछ समय से सीएम योगी की कार्यशैली को लेकर पार्टी के भीतर असंतोष की बातें सामने आती रही हैं। 2024 के चुनाव के बाद संगठन और सरकार के बीच खींचतान खुलकर दिखी थी।

‘संगठन सरकार से ऊपर’ बयान से बढ़ा विवाद

2024 के लोकसभा चुनाव के बाद डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य के “संगठन सरकार से ऊपर है” वाले बयान ने सियासी हलचल बढ़ा दी थी। ऐसे माहौल में पंकज चौधरी के सामने चुनौती होगी कि वे सरकार और संगठन को साथ लेकर चलें, किसी समानांतर शक्ति केंद्र की छवि न बनाएं और कार्यकर्ताओं का मनोबल बनाए रखें।

खुद को साबित करने की परीक्षा

बीजेपी में इससे पहले केशव प्रसाद मौर्य, महेंद्रनाथ पांडेय, स्वतंत्र देव सिंह और भूपेंद्र चौधरी जैसे मजबूत नेता प्रदेश अध्यक्ष रह चुके हैं। केशव मौर्य के नेतृत्व में 2017 में बीजेपी सत्ता में लौटी थी। महेंद्रनाथ पांडेय के समय 2019 लोकसभा में बड़ी जीत मिली। वहीं, स्वतंत्र देव सिंह की अगुवाई में 2022 में सत्ता दोहराई गई। अब पंकज चौधरी के सामने भी खुद को एक मजबूत संगठनात्मक नेता साबित करने की चुनौती है।

2024 की हार से उबरना बड़ी चुनौती

2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को सबसे बड़ा झटका यूपी में लगा था। 80 सीटों में से बीजेपी सिर्फ 33 सीटें जीत पाई। 2019 की तुलना में 31 सीटों का नुकसान हुआ। सपा ने 37 सीटें जीतकर बड़ी बढ़त बनाई। इस हार के बाद बीजेपी को सहयोगी दलों के सहारे सरकार बनानी पड़ी, जिससे पार्टी के अंदर असंतोष बढ़ा।

दलित और ओबीसी वोटों को वापस लाने की कोशिश

2024 में सपा ने ओबीसी और दलित वोटों को अपने पक्ष में कर लिया। अब पंकज चौधरी के सामने चुनौती है कि खिसके हुए वोट बैंक को वापस लाया जाए। दलित और गैर-यादव ओबीसी समाज को जोड़ा जाए। पार्टी का सामाजिक संतुलन फिर से बनाया जाए।

सपा के PDA फॉर्मूले को तोड़ना

सपा प्रमुख अखिलेश यादव का फोकस PDA (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) समीकरण पर है। इसी रणनीति से सपा ने 2024 में बीजेपी को बड़ा नुकसान पहुंचाया था। बीजेपी का मानना है कि 2024 में खासतौर पर कुर्मी वोटर उससे छिटक गए थे और सबसे ज्यादा नुकसान पूर्वांचल में हुआ। इसी वजह से पार्टी ने कुर्मी समाज से आने वाले पंकज चौधरी को प्रदेश अध्यक्ष बनाया है।

पूर्वांचल और गैर-यादव ओबीसी पर फोकस

बीजेपी की रणनीति अब पूर्वांचल में अपनी पकड़ मजबूत करना, गैर-यादव ओबीसी वोटों को एकजुट करना और सपा के PDA समीकरण को जवाब देना होगा। कुर्मी समाज का असर पूर्वांचल, बुंदेलखंड और रुहेलखंड तक फैला है, जिससे पार्टी को उम्मीद है कि इसका फायदा मिलेगा।

2027 में हैट्रिक की तैयारी

पंकज चौधरी की पहली बड़ी परीक्षा होगी:-

* 2026 पंचायत चुनाव

* 2027 विधानसभा चुनाव

बीजेपी का लक्ष्य लगातार तीसरी बार सत्ता में लौटना है, लेकिन 10 साल की सरकार के बाद एंटी-इनकंबेंसी भी एक बड़ी चुनौती है।

टिकट बंटवारे से नैरेटिव तक जिम्मेदारी

पंकज चौधरी के सामने कई बड़े काम होंगे। जैसे कि सही उम्मीदवारों को टिकट देना, पार्टी का चुनावी नैरेटिव तैयार करना, संगठन को जमीन पर सक्रिय करना और विधायकों के खिलाफ नाराजगी को संभालना। अब सबकी नजर इस पर है कि पंकज चौधरी इन सभी चुनौतियों से कैसे निपटते हैं और बीजेपी को 2027 में जीत की राह पर ले जा पाते हैं या नहीं।

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