केरल ने खुद को 'अति गरीबी' मुक्त घोषित किया, आंकड़ों और प्रक्रिया पर उठे सवाल
हालांकि सरकार के जवाबों से कई आलोचनाएं शांत हो गईं, लेकिन बहस ने यह व्यापक प्रश्न उठाया कि केरल के कल्याण मॉडल का भविष्य क्या होगा।
केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने घोषणा की है कि राज्य ने अति गरीबी (Extreme Poverty) को समाप्त कर दिया है। उन्होंने इसे राज्य की कल्याण यात्रा का एक ऐतिहासिक मील का पत्थर बताया। हालांकि यह घोषणा आलोचनाओं और बहस के बीच आई है। मुख्यमंत्री ने विधानसभा में कहा कि यह ऐतिहासिक पहल समाज के सभी वर्गों को शामिल करते हुए शुरू की गई थी। लोगों की भागीदारी और उनके सुझावों के आधार पर लाभार्थी परिवारों की पहचान की गई। यह पहल सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) के सार्वभौमीकरण, भूमिहीनता और बेघरपन समाप्त करने जैसे पहले के प्रयासों का विस्तार है। आज हम जो उपलब्धि घोषित कर रहे हैं, वह सामूहिक कार्यों का परिणाम है।
उन्होंने आगे कहा कि यह अंत नहीं, बल्कि एक नई शुरुआत है। हम यह सुनिश्चित करेंगे कि अति गरीबी फिर कभी वापस न आए। मुझे गर्व है कि ‘न्यू केरल’ के निर्माण की यात्रा अब नए जोश और संकल्प के साथ आगे बढ़ेगी।
गरीबी के आंकड़ों और परिभाषा पर उठे सवाल
सरकार की इस पहल को जहां कल्याण शासन में एक बड़ा कदम बताया जा रहा है, वहीं विपक्ष के नेता वीडी सतीशन, कुछ शिक्षाविदों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इस पर सवाल उठाए हैं। उनका कहना है कि “अति गरीबी” की परिभाषा और आंकड़ों की सटीकता पर संदेह है। विपक्ष ने आरोप लगाया कि सरकार ने आंकड़ों में हेराफेरी की है और प्रक्रिया में पारदर्शिता नहीं रखी। इसके जवाब में स्थानीय स्वशासन मंत्री एमबी राजेश और उद्योग एवं विधि मंत्री पी. राजीव ने कहा कि पूरी प्रक्रिया वैज्ञानिक, समावेशी और कई स्तरों पर समीक्षा के बाद की गई है।
यह घोषणा केरल एक्सट्रीम पूवर्टी एराडिकेशन मिशन के तहत की गई, जिसमें 64,006 व्यक्तियों को बहुआयामी गरीबी से प्रभावित परिवारों में पहचाना गया है। मिशन का लक्ष्य 2026 तक राज्य को पूरी तरह अतिदारिद्र्यता-मुक्त बनाना है। सर्वेक्षण स्थानीय स्वशासन संस्थाओं और कुडुंबश्री इकाइयों के माध्यम से किया गया और डेटा को कई प्रशासनिक स्तरों पर सत्यापित किया गया।
पारदर्शिता की मांग
कई शिक्षाविदों, शोधकर्ताओं और सामाजिक क्षेत्र से जुड़े पेशेवरों ने एक खुला पत्र जारी कर सरकार की प्रक्रिया पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने पूछा कि “अति गरीबी” की परिभाषा क्या राष्ट्रीय या अंतरराष्ट्रीय मानकों से मेल खाती है? 64,006 का आंकड़ा कैसे तय किया गया और इन परिवारों को कल्याण योजनाओं में किस आधार पर प्राथमिकता दी जाएगी?
पत्र में यह भी कहा गया कि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 के तहत केरल की सार्वजनिक वितरण प्रणाली में चार लाभार्थी श्रेणियां हैं। इनमें सबसे गरीब अंत्योदय अन्न योजना (AAY) कार्डधारक — 5.92 लाख परिवार हैं। 2023 से राज्य सरकार इन्हें मुफ्त चावल और गेहूं दे रही है, जबकि केंद्र सरकार इन्हीं को रियायती दर पर अनाज देती है। पत्र में पूछा गया कि तो फिर अब सरकार यह कैसे कह सकती है कि केवल 64,006 परिवार ही अतिदरिद्र हैं? क्या AAY श्रेणी को अब गरीबी-मुक्त घोषित कर दिया गया है? यह पत्र सोशल साइंस विभागों और नीति हलकों में व्यापक चर्चा का विषय बन गया, जिससे राजनीतिक प्रतिक्रियाएं भी सामने आईं।
सरकार का बचाव
सरकार ने स्पष्ट किया कि गरीबी और अति गरीबी दो अलग अवधारणाएं हैं। नीति आयोग के बहुआयामी गरीबी ढांचे के अनुसार, अति गरीबी का मूल्यांकन आवास, स्वास्थ्य, शिक्षा, पोषण और सामाजिक समावेशन जैसे संकेतकों से किया जाता है, न कि केवल आय या पारंपरिक गरीबी रेखा के आधार पर। मंत्री एम. बी. राजेश ने कहा कि यह आंकड़ों का खेल नहीं, बल्कि अभाव की पहचान का प्रयास है। सर्वेक्षण में स्वास्थ्य, आवास, शिक्षा, आय और सेवाओं की पहुंच जैसे मापदंडों का उपयोग किया गया। हर चरण विशेषज्ञ समिति द्वारा जांचा गया।
उन्होंने कहा कि घोषणा का उद्देश्य राजनीतिक लाभ नहीं, बल्कि लक्षित कार्रवाई सुनिश्चित करना है। आज की अति गरीबी हमेशा आर्थिक नहीं दिखती — यह बीमारी, विकलांगता या सामाजिक अलगाव से भी जुड़ी हो सकती है। हमारा उद्देश्य है कि कोई पीछे न रह जाए।
‘यह सामूहिक उपलब्धि है, राजनीतिक नहीं’
उद्योग एवं विधि मंत्री पी. राजीव ने कहा कि यह घोषणा किसी दल की नहीं, बल्कि सामूहिक प्रगति की प्रतीक है। उन्होंने कहा कि कुछ लोग हर सकारात्मक बदलाव पर शक करते हैं। लेकिन यह मिशन सभी राजनीतिक दलों, अधिकारियों और स्वयंसेवकों के संयुक्त प्रयास का परिणाम है। उदाहरण के तौर पर एर्नाकुलम जिला पंचायत, जो यूडीएफ के नियंत्रण में है, ने भी अतिदारिद्र्यता खत्म करने में अग्रणी भूमिका निभाई। राजीव ने बताया कि इस पूरी प्रक्रिया की समीक्षा मुख्यमंत्री स्वयं करते रहे और विधानसभा में इस पर चर्चा भी हुई। जब राज्य एक सामाजिक उपलब्धि की ओर बढ़ रहा है, तब हमें उसके इरादे पर संदेह नहीं, बल्कि इस सामूहिक प्रयास की सराहना करनी चाहिए।
डिजिटल और फील्ड डेटा से हुई परिवारों की पहचान
अधिकारियों ने बताया कि परिवारों की पहचान मैदानी सत्यापन और डिजिटल डेटा विश्लेषण के संयोजन से की गई। पूर्व मुख्य सचिव सरदा मुरलीधरन ने फेसबुक पर लिखा कि यह पहचान आय और संपत्ति आधारित प्रश्नावली से नहीं, बल्कि समुदाय के दृष्टिकोण से की गई, जो समाज के हाशिये पर रहने वाले लोगों के अनुभवों को समझती है। संकेतक स्वास्थ्य, भूख, आय के साधन और जीवन-परिस्थितियों पर केंद्रित थे। इसमें विशेष रूप से आदिवासी, पीवीटीजी, एससी, तटीय और शहरी गरीब, एचआईवी/एड्स पीड़ित, प्रवासी श्रमिक, अनाथ बच्चे और LGBTQIA+ समुदायों को प्राथमिकता दी गई।
सरकार ने बताया कि मिशन का अगला चरण इन परिवारों को मौजूदा कल्याण योजनाओं से जोड़ने और पंचायत स्तर पर व्यक्तिगत विकास योजनाएं बनाने पर केंद्रित होगा। कुडुंबश्री इकाइयां और स्थानीय निकाय सीधे इन परिवारों के साथ मिलकर स्वास्थ्य, शिक्षा, आजीविका और सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित करेंगे। मंत्री राजेश ने कहा कि लक्ष्य है — डेटा को डिलीवरी में बदलना। हर परिवार के लिए सुधार का रोडमैप तैयार किया जाएगा और स्थानीय स्तर पर निगरानी होगी। यही असली परिवर्तन है।
पारदर्शिता बनाए रखना होगी सबसे बड़ी चुनौती
हालांकि सरकार के जवाबों से कई आलोचनाएं शांत हो गईं, लेकिन बहस ने यह व्यापक प्रश्न उठाया कि केरल के कल्याण मॉडल का भविष्य क्या होगा। अब चुनौती यह है कि घोषित पारदर्शिता को बनाए रखते हुए, पहचाने गए परिवारों तक वास्तविक परिवर्तन पहुंचाया जाए, ताकि यह उपलब्धि केवल घोषणा न रहकर ज़मीनी सच्चाई बन सके।