17 साल की मेहनत से बनी देश की सबसे कठिन रेलवे लाइन, मिज़ोरम में रेल प्रोजेक्ट का पीएम करेंगे उद्घाटन
भूस्खलन, खड़ी घाटियों और नरम चट्टानों के धंसने जैसी चुनौतियों से जूझने के बाद 8,071 करोड़ रुपये की बैराबी–सैरांग रेल परियोजना अब पूरी हो चुकी है; प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसका उद्घाटन कल (शनिवार को) करेंगे;
भारत में रेल आने के 170 साल से भी अधिक समय बाद मिज़ोरम की राजधानी आइज़ोल अब देश के विशाल रेलवे नेटवर्क से जुड़ने जा रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 13 सितंबर को बैराबी–सैरांग रेलवे लाइन का उद्घाटन करेंगे। यह केवल मिज़ोरम ही नहीं बल्कि भारतीय रेल के लिए भी एक ऐतिहासिक उपलब्धि होगी, क्योंकि इसे भारत की सबसे तकनीकी रूप से चुनौतीपूर्ण रेलवे लाइन माना जा रहा है।
कठिनतम निर्माण कार्य
यह रेल लाइन पहाड़ों, गहरी घाटियों और घने जंगलों से गुजरती है। इसमें 45 सुरंगें और 153 पुल बनाए गए हैं। भौगोलिक जटिलताओं, भूस्खलनों, मुलायम चट्टानों के धंसने और कठोर मौसम ने इसे एक असाधारण इंजीनियरिंग उपलब्धि बना दिया है।
यह लाइन सैरांग तक जाती है, जो आइज़ोल से सिर्फ 20 किमी दूर है। इस परियोजना को 2008 में मनमोहन सिंह की यूपीए सरकार ने मंजूरी दी थी। मोदी ने 2014 में इसकी नींव रखी थी और 10 जून 2025 को हॉर्टोकी से सैरांग तक का अंतिम हिस्सा पूरा किया गया।
पूर्वोत्तर राज्यों की कनेक्टिविटी
यह परियोजना भारतीय रेल की उस बड़ी योजना का हिस्सा है, जिसके तहत सभी पूर्वोत्तर राज्यों की राजधानियों को राष्ट्रीय रेलवे नेटवर्क से जोड़ना है।
अभी तक केवल गुवाहाटी (असम), ईटानगर (अरुणाचल प्रदेश) और अगरतला (त्रिपुरा) रेल से जुड़े हैं।
मणिपुर (जिरीबाम–इंफाल), नागालैंड (दीमापुर–कोहिमा), सिक्किम (सिवोक–रंगपो) और मेघालय (बर्नीहाट–शिलांग) की परियोजनाएँ प्रगति पर हैं।
शिलांग में स्थानीय विरोध भी देखा गया है क्योंकि इनर लाइन परमिट (ILP) व्यवस्था न होने से जनसांख्यिकी बदलाव की आशंका जताई जा रही है।
अंतर्राष्ट्रीय संपर्क की संभावना
बैराबी–सैरांग लाइन को म्यांमार से जोड़ने का भी मार्ग माना जा रहा है। 2015 में सैरांग से भारत-म्यांमार सीमा के पास हमावंगबुचुआ तक 223 किमी लंबी लाइन के विस्तार का प्रारंभिक सर्वे किया गया था। इसे म्यांमार के कलादान मल्टी-मॉडल ट्रांजिट ट्रांसपोर्ट प्रोजेक्ट से जोड़ने की योजना है।
इसी तरह जिरीबाम–इंफाल लाइन को आगे बढ़ाकर मोरेह (भारत-म्यांमार सीमा का सामरिक कस्बा) तक ले जाने की योजना है।
"लुक ईस्ट पॉलिसी" से जुड़ा कदम
इन परियोजनाओं का संबंध भारत की “लुक ईस्ट पॉलिसी” से है, जिसे यूपीए सरकार के दौर में शुरू किया गया था। 29 जून 2007 को संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय (न्यूयॉर्क) में भारत ने ट्रांस-एशियन रेलवे समझौते पर हस्ताक्षर किए थे, जिससे पूर्वोत्तर भारत को दक्षिण-पूर्व एशिया से जोड़ने का आधार तैयार हुआ।
सबसे कठिन चुनौतियाँ
भारी वर्षा के कारण काम साल में केवल 4-5 महीने ही हो पाता था। नाज़ुक चट्टानें बार-बार धंस जातीं, जिससे दुर्घटनाएँ और विलंब होते रहे। निर्माण सामग्री जैसे रेत, गिट्टी और पत्थर मिज़ोरम में उपलब्ध नहीं थे। इन्हें असम, पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड और मेघालय से लाना पड़ा।
पूर्वोत्तर सीमांत रेलवे के प्रवक्ता नीलांजन देब ने कहा,"यह सबसे कठिन रेल परियोजनाओं में से एक रही है, जहाँ भौगोलिक स्थिति और मौसम ने लगभग असंभव हालात बना दिए थे।"
क्षेत्र पर परिवर्तनकारी असर
अब यह लाइन बैराबी से सैरांग तक का सफर 7 घंटे से घटाकर केवल 3 घंटे कर देगी। स्वास्थ्य, शिक्षा और बाज़ारों तक पहुँच आसान होगी।
नए चार स्टेशन बने हैं: हॉर्टोकी, कॉवनपुई, मुअलखांग और सैरांग। कोलासिब और आइज़ोल जिलों के लोगों को सस्ती और तेज़ परिवहन सुविधा मिलेगी।
पर्यटन और आर्थिक लाभ
भारतीय रेलवे खानपान एवं पर्यटन निगम (IRCTC) और मिज़ोरम सरकार ने पिछले साल 2 साल का समझौता किया है।
डिस्कवर नॉर्थ ईस्ट बियॉन्ड गुवाहाटी’ पहल के तहत आइज़ोल को शामिल कर विशेष टूरिस्ट ट्रेन चलाई जाएगी।
पर्यटन अभियानों, यात्रा अनुभवों और लॉजिस्टिक सपोर्ट से रोज़गार और स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलेगा।