राजीव चंद्रशेखर को केरल बीजेपी की कमान, क्या 2026 में खिला पाएंगे 'कमल'

राजीव चंद्रशेखर का उत्थान केरल में भाजपा के लिए एक क्रांतिकारी बदलाव का प्रतिनिधित्व करता है। विश्लेषत इसे 2026 विधानसभा चुनाव से पहले रणनीति में एक बड़ा बदलाव बता रहे हैं;

Update: 2025-03-24 08:39 GMT
राजीव चंद्रशेखर एलडीएफ और यूडीएफ के प्रभुत्व वाले राज्य में भाजपा के विस्तार के मुखर समर्थक रहे हैं। फाइल फोटो

Rajeev Chandrashekhar News:  केरल की राजनीति में सोमवार (24 मार्च) को एक बड़ा बदलाव देखने को मिला, जब राजीव चंद्रशेखर, जो एक तकनीकी विशेषज्ञ और पूर्व केंद्रीय मंत्री रह चुके हैं, केरल में बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष बने।

राजनीतिक सफर और अनुभव

राजीव चंद्रशेखर की राजनीतिक यात्रा महत्वाकांक्षी और बहुआयामी रही है। उनके पास 18 वर्षों का अनुभव है, जिसमें वे राज्यसभा के तीन कार्यकालों के लिए कर्नाटक से सांसद रहे और बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता के रूप में कार्य किया। वे केंद्र सरकार में इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी राज्य मंत्री भी रह चुके हैं, जहाँ उन्होंने जटिल नीतिगत मामलों को संभाला। अब वे इसी अनुभव का केरल में उपयोग करना चाहते हैं।

एलडीएफ के प्रखर आलोचक

60 वर्षीय चंद्रशेखर केरल की राजनीति के लिए नए नहीं हैं। उन्होंने 2024 लोकसभा चुनाव में तिरुवनंतपुरम से बीजेपी-एनडीए उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा था।हालांकि वे कांग्रेस के दिग्गज नेता शशि थरूर से मात्र 16,077 वोटों से हार गए, लेकिन उनकी चुनावी रणनीति ने थरूर की जीत का अंतर 2019 के 99,989 वोटों से घटाकर काफी कम कर दिया, जिससे उनका प्रभाव बढ़ता दिखा।

बीजेपी-एनडीए के केरल उपाध्यक्ष के रूप में उन्होंने लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट (LDF) और यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (UDF) के प्रभुत्व को तोड़ने की पुरजोर वकालत की है।

बीजेपी की नई रणनीति

चंद्रशेखर की प्रदेश अध्यक्ष पद पर नियुक्ति को एक बड़ी रणनीतिक बदलाव के रूप में देखा जा रहा है।वे पूर्व अध्यक्ष के. सुरेंद्रन की तुलना में अलग रणनीति अपनाएंगे, जो ग्रासरूट लेवल पर संगठन को मजबूत करने और हिंदुत्व के आक्रामक प्रचार पर केंद्रित थे।चंद्रशेखर कॉर्पोरेट अनुभव और तकनीकी विशेषज्ञता के साथ शहरी और शिक्षित वर्ग को भाजपा से जोड़ने का प्रयास करेंगे।

उनका चयन इस ओर भी संकेत देता है कि बीजेपी अब ज्यादा परिष्कृत, विकास-केंद्रित और शहरी मतदाताओं पर ध्यान केंद्रित करना चाहती है, जो राज्य की पारंपरिक द्विध्रुवीय राजनीति (LDF बनाम UDF) से असंतुष्ट हैं।

विवादों से घिरी शख्सियत

हालांकि, उनकी नियुक्ति विवादों से अछूती नहीं रही।चंद्रशेखर ने पिनाराई विजयन सरकार की अल्पसंख्यक समर्थक नीतियों की आलोचना की है।कालाामसेरी बम ब्लास्ट (जिसमें एक यहोवा विटनेस अनुयायी ने धार्मिक सभा में आईईडी विस्फोट किया था) पर उन्होंने इसे इस्लामी आतंकवाद से जोड़ा, और सरकार पर हमास को समर्थन देने का आरोप लगाया।इस पर केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने उन्हें "जहरीला नेता" करार दिया और कहा कि चंद्रशेखर "इस जहरीले टैग को सम्मान की तरह पहनते हैं"।

बीजेपी की अंदरूनी राजनीति

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है किकेरल बीजेपी के नेता पारंपरिक रूप से राज्य की सामाजिक और सांस्कृतिक विविधता से जुड़े हुए हैं, लेकिन चंद्रशेखर की जड़ें उतनी मजबूत नहीं हैं।वे पार्टी की नई नेतृत्व शैली का प्रतिनिधित्व करते हैं, जो अमित शाह और कॉर्पोरेट जगत के समर्थन से आगे बढ़ रही है।

उनके मीडिया और व्यवसाय में प्रभाव (जैसे Asianet News का मालिकाना हक) को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं, क्योंकि इससे जनमत को प्रभावित करने की आशंका व्यक्त की जा रही है।

कांग्रेस की प्रतिक्रिया

कांग्रेस और सीपीआई (एम) के आईटी सेल ने उन्हें अक्सर "फेक न्यूज़ फैलाने वाला" करार दिया है, क्योंकि उनकी सोशल मीडिया पोस्ट्स को विवादास्पद और ध्रुवीकरण करने वाला माना गया।कांग्रेस नेता वी.डी. सतीसन ने कहा कि "हमें बीजेपी के नेता से फर्क नहीं पड़ता, हमारा ध्यान उनकी विचारधारा पर है"।

हालांकि, यह बयान लेफ्ट नेताओं को रास नहीं आया, क्योंकि वे मानते हैं कि चंद्रशेखर को हल्का आंकना उनके हिंदुत्व एजेंडे को स्वीकार करने जैसा होगा।

भविष्य की चुनौती: क्या वे सफल होंगे?

राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि चंद्रशेखर की नियुक्ति बीजेपी के लिए दोधारी तलवार साबित हो सकती है।

सकारात्मक पक्ष

वे बीजेपी को LDF और UDF के लिए एक गंभीर चुनौती बनाने में मदद कर सकते हैं।2024 में बीजेपी ने त्रिशूर में पहली बार लोकसभा सीट जीती थी, जो राज्य में पार्टी के उभरते जनाधार को दर्शाता है।चंद्रशेखर शहरी युवा मतदाताओं को आकर्षित कर सकते हैं, जो आर्थिक विकास को प्राथमिकता देते हैं।

नकारात्मक पक्ष

उनकी जमीनी पकड़ कमजोर है, जिससे पार्टी के संगठनात्मक ढांचे में संघर्ष हो सकता है।उनकी विवादास्पद बयानबाजी केरल जैसे धर्मनिरपेक्ष समाज में बीजेपी के लिए प्रतिकूल साबित हो सकती है।केरल की राजनीतिक संस्कृति धर्मनिरपेक्षता और सामाजिक कल्याण पर केंद्रित रही है, जबकि चंद्रशेखर की नीतियां इनसे टकराती हैं।

आने वाले चुनावों पर प्रभाव

2025 में केरल के स्थानीय निकाय चुनाव और 2026 के विधानसभा चुनाव उनकी वास्तविक परीक्षा होंगे।बीजेपी का वोट शेयर 2011 में 6% से बढ़कर 2024 में 15% हो गया, लेकिन इसे विधानसभा सीटों में बदलना अब भी चुनौती है।अगर वे LDF की नीतियों के खिलाफ आक्रामक अभियान और UDF के पुनरुत्थान का सामना करने में सफल होते हैं, तो बीजेपी को राज्य में अपनी पकड़ मजबूत करने का मौका मिल सकता है।

अब सवाल यह है कि क्या राजीव चंद्रशेखर के नेतृत्व में बीजेपी केरल में अपनी बहुप्रतीक्षित राजनीतिक सफलता हासिल कर पाएगी, या फिर यह एक बड़ा राजनीतिक दांव साबित होगा?

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