केसीआर की नीति को किया दरकिनार, राज्य की भलाई के लिए रेवंत का केंद्र के साथ तालमेल बनाने पर जोर

रेवंत रेड्डी ने कहा कि उनकी प्राथमिकता तेलंगाना और केंद्र के बीच संघीय संबंध बहाल करना और राज्य के विकास में नई दिल्ली को भागीदार बनाना है.

Update: 2024-07-06 01:31 GMT

तेलंगाना के मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी अपने पूर्ववर्ती केसीआर की मोदी विरोधी नीति को त्यागकर सहकारी संघवाद को आगे बढ़ा रहे हैं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तथा अन्य केंद्रीय नेताओं से मुलाकात कर रहे हैं. फाइल फोटो

Telangana: तेलंगाना के मुख्यमंत्री ए रेवंत ने पीछे 5 साल से राज्य और केंद्र सरकार के बीच पैदा हुई खाई को पाटने का काम किया है, यही वजह है कि अब तेलंगाना राज्य को मुख्यधारा की राजनीति की पटरी पर वापस ला दिया है. पांच साल बाद, तेलंगाना के मुख्यमंत्री फिर से नई दिल्ली में केंद्र सरकार के साथ बातचीत कर रहे हैं.

ए रेवंत रेड्डी ने 4 जुलाई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की. 2018 से 2023 के बीच ऐसी मुलाकातें अकल्पनीय थीं, क्योंकि पिछले मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव ने केंद्र का बहिष्कार किया था.

मोदी और शाह के साथ अपनी बैठकों के बाद रेवंत रेड्डी ने कहा कि केसीआर द्वारा केंद्रीय धन प्राप्त करने में विफलता के कारण तेलंगाना को नुकसान उठाना पड़ा.

'केसीआर ने राज्य के हितों को नुकसान पहुंचाया'

मुख्यमंत्री ए रेवंत रेड्डी ने कहा कि "केसीआर ने केवल कालेश्वरम, मिशन काकतीय और मिशन भागीरथ को लोगों के सामने लाने के लिए अन्य विकास कार्यों को नजरअंदाज किया और कभी भी केंद्र प्रायोजित योजनाओं से धन प्राप्त करने की कोशिश नहीं की. उन्होंने राज्य के हितों को नुकसान पहुंचाया." रेड्डी ने कहा कि उनकी प्राथमिकता तेलंगाना और केंद्र के बीच संघीय संबंध बहाल करना और राज्य के विकास में नई दिल्ली को भागीदार बनाना है, उन्होंने ये भी कहा कि चुनाव खत्म होते ही उन्होंने राजनीति छोड़ दी है. हालांकि तेलंगाना में भाजपा के साथ कटु प्रतिद्वंद्विता का सामना कर रहे रेवंत रेड्डी पहले ही दिन से विकास के मामलों में केंद्र-राज्य भागीदारी की वकालत कर रहे हैं.


मोदी को 'बड़ा भाई' कहा

केंद्र और रज्य सरकार के बीच बेह्टर तालमेल की अपनी मंशा को सार्वजनिक करने के लिए रेड्डी 4 मार्च को एक समारोह में प्रधानमंत्री की प्रशंसा करते हुए उन्हें 'पेद्दन्ना' (बड़ा भाई) कहा, तथा गुजरात मॉडल की तर्ज पर उदार वित्त पोषण की मांग की.

दरअसल, केंद्र के प्रति उनके दोस्ताना व्यवहार की शुरुआत बहुत पहले ही हो गई थी. दिसंबर 2023 में, उपमुख्यमंत्री भट्टी विक्रमार्क मल्लू के साथ, उन्होंने नवंबर में हुए विधानसभा चुनावों के बाद पहली बार मोदी से मुलाकात की और लंबित परियोजनाओं की एक इच्छा सूची पेश की.

बाद में जनवरी में उन्होंने वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण से आमने-सामने मुलाकात की. फरवरी में नीति आयोग के उपाध्यक्ष सुमन बेरी हैदराबाद में रेवंत रेड्डी से मिलने आए और उनसे केंद्र के प्रति शत्रुतापूर्ण रवैया खत्म करने को कहा.

रेवंत ने नीति आयोग से आवंटन मांगा

रेड्डी ने नीति आयोग से अनुरोध किया कि वो 16 वें वित्त आयोग द्वारा राज्य के लिए आवंटन बढ़ाने तथा स्वास्थ्य एवं शिक्षा क्षेत्रों में बुनियादी ढांचा सुविधाओं के विकास के लिए अधिक धनराशि देने पर विचार करे.

मुख्यमंत्री ने नीति आयोग से आंध्र प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम, 2014 की धारा 94(2) के अनुसार पिछड़ा जिला विकास अनुदान के संबंध में 1,800 करोड़ रुपये की लंबित धनराशि जारी करने का भी अनुरोध किया.

केसीआर के दूसरे कार्यकाल के दौरान राज्य सरकार और केंद्र के बीच ऐसी बैठकें अनसुनी थीं, जब वो केंद्र में वैकल्पिक मोर्चे के लिए एक जरिया बनने का सपना देख रहे थे.


तेलंगाना चाहता है आईआईएम

रेवंत रेड्डी ने प्रधानमंत्री से राज्य की बिजली उत्पादन की मांग को पूरा करने के लिए नीलामी के लिए निर्धारित 2 कोयला ब्लॉक तेलंगाना की सिंगरेनी कोयला खदानों को आवंटित करने का भी आग्रह किया है. उन्होंने आंध्र प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम 2014 में शामिल लंबे समय से लंबित मुद्दों को हल करने के लिए अमित शाह से सहयोग मांगा.

रेवंत रेड्डी हैदराबाद में भारतीय प्रबंधन संस्थान (आईआईएम) की स्थापना और सूचना प्रौद्योगिकी निवेश क्षेत्र (आईटीआईआर) के पुनरुद्धार के बारे में बहुत खास थे, जिसे शुरू में 2010 में मंजूरी दी गई थी और 2014 में रोक दिया गया था.

मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत तेलंगाना के लिए 25 लाख घरों की मंजूरी का अनुरोध किया. उन्होंने मोदी से राज्य को प्रस्तावित सेमीकंडक्टर मिशन में शामिल करने का भी आग्रह किया.

अमित शाह के साथ अपनी बैठक में मुख्यमंत्री ने आदिलाबाद, मंचेरियल और कुमार भीम-आसिफाबाद जिलों में सुरक्षा संबंधी व्यय (एसआरई) के विस्तार का अनुरोध किया.

मुख्यमंत्री के रूप में अपने दूसरे कार्यकाल के दौरान केसीआर ने ये इशारा दिया कि सभी मुद्दे तभी हल होंगे जब वे केंद्र में सरकार का नेतृत्व करेंगे. उन्होंने राजनीतिक रणनीति के रूप में टकराव को चुना और मोदी से दूरी बनाए रखी.

वे लोगों से कहते थे, कि अगर केंद्र में बीआरएस की सरकार बनती है तो वे पूरे देश में रैतु भरोसा योजना और कृषि के लिए मुफ्त बिजली लागू करेंगे. राज्य के लिए अधिक धन के लिए ज्ञापन लेकर मोदी और अन्य मंत्रियों से मिलना उनके कद से नीचे माना जाता था.

केसीआर के सपने नहीं हुए साकार 

टकराव का दौर तब शुरू हुआ जब केसीआर ने 2018 में फेडरल फ्रंट के नाम पर सभी गैर-कांग्रेसी और गैर-भाजपा विपक्षी दलों को एकजुट करके केंद्र में प्रधानमंत्री मोदी का विकल्प बनने का दिखावा करना शुरू किया. लेकिन उनकी ये कोशिश परवान नहीं चढ़ सकी.

2019 में मोदी की वापसी ने केसीआर की राष्ट्रीय योजनाओं को खत्म कर दिया और उनके और मोदी के बीच की खाई को और चौड़ा कर दिया. केसीआर ने नई दिल्ली आना बंद कर दिया. बाद में उन्होंने राष्ट्रीय विकास परिषद की बैठकों का बहिष्कार किया. भारत राष्ट्र समिति के गठन के बाद केसीआर ने केंद्र के प्रति अपना रुख और कड़ा कर लिया और आधिकारिक यात्राओं के दौरान प्रोटोकॉल के तहत प्रधानमंत्री का स्वागत करना भी बंद कर दिया.

मोदी जब भी हैदराबाद आते थे, केसीआर बीमार होने का बहाना बनाते थे. लेकिन दुर्भाग्य से, हर कोई बीआरएस को भाजपा की बी टीम मानने लगा. विधानसभा और लोकसभा चुनावों में हार तक ये कलंक उन्हें भूत की तरह सताता रहा.

अब मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी, केसीआर की नीति को पलटकर सहयोग की नीति अपनाना चाहते हैं. इससे उन्हें लोगों को यह बताने में मदद मिलेगी कि केसीआर के दृष्टिकोण ने राज्य को किस तरह नुकसान पहुंचाया है.

राजनीतिक रणनीति

हैदराबाद के राजनीतिक टिप्पणीकार प्रोफेसर अलदास जनैया ने कहा कि रेवंत रेड्डी की लाइन कांग्रेस जैसी राष्ट्रीय पार्टी के आदर्शों के अनुरूप है.

जनैया के अनुसार, कांग्रेस नेता सहकारी संघवाद के रास्ते पर चल रहे हैं, जो यूपीए-2 के दौरान सामने आया था. उन्होंने कहा कि राजनीतिक रूप से कहें तो कल रेवंत रेड्डी केंद्र पर आरोप लगा सकते हैं कि उन्होंने अपने सर्वश्रेष्ठ प्रयासों के बावजूद फंड जारी नहीं किया. जनैया ने कहा, "ये दोधारी तलवार है."

खराब वित्तीय स्थिति

कृषि अर्थशास्त्री डॉ. जनैया ने द फेडरल से कहा, "केसीआर खुद को मोदी के लिए चुनौती देने वाले के तौर पर पेश करना चाहते थे, ताकि पार्टी कार्यकर्ताओं को ये एहसास हो सके कि वे प्रधानमंत्री बनने के काबिल हैं. इस झूठे समीकरण ने उन्हें राज्य के लिए धन जुटाने के लिए प्रधानमंत्री या केंद्रीय मंत्रियों से मिलने का मौका नहीं दिया. वे कहते थे कि अगर बीआरएस केंद्र में सरकार बनाती है तो वे पूरे देश का विकास करेंगे. लेकिन आखिरकार उनकी बात नाकाम हो गई."

जनैया ने कहा कि ये रणनीति कांग्रेस सरकार के लिए आवश्यक है, जो राज्य की खराब वित्तीय स्थिति से जूझ रही है.

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