सोनम वांगचुक को दिल्ली में विरोध की जरूरत क्यों पड़ी, क्या है वो 4 मांगें

सोनम वांगचुक किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। लद्दाख के विषय को वो जोर शोर से उठाते हैं। यहां हम बात करेंगे कि उन्हें दिल्ली आकर विरोध करने की जरूरत क्यों पड़ी।

By :  Lalit Rai
Update: 2024-10-01 04:51 GMT

Sonam Wangchuk Protest: सोनम वांगचुक का नाम तो आपने सुना ही होगा। नाता लद्दाख से है, वो कहते हैं कि हम भले ही देश के सबसे दुर्गम जगह पर रहते हैं लेकिन दिल हिंदुस्तानी है। हालांकि देश की सरकार से थोड़ी नाखुशी है। हम सरकार से लद्दाख के विकास की अपेक्षा तो करते हैं। लेकिन बर्बादी की कीमत पर नहीं। जब लद्दाख और दिल्ली की सरकार ने उनकी नहीं सुनी तो उनके पास दिल्ली चलो के अलावा ओर कोई रास्ता नहीं बचा। अब सोनम वांगचुक कहां इसे लेकर आपके मन में तरह तरह के सवाल होंगे। वांगचुक दिल्ली में लेकिन हिरासत में। उनकी हिरासत पर राहुल गांधी ने कहा कि मोदी जी आपका अहंकार जरूर टूटेगा। लेकिन आप के दिमाग में यह सवाल कौंध रहा होगा कि आखिर उनका मुद्दा क्या है। 

सितंबर से पदयात्रा का आगाज
2019 में जब लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया तब से इस इलाके को छठी अनुसूची में शामिल करने की मांग की जा रही है। इसके साथ ही राज्य का भी दर्जा दिए जाने की मांग है। इस संबंध में रेमन मैग्सेस विजेता वांगचुक ने एक सितंबर से लद्दाख से दिल्ली चलो की पदयात्रा शुरू की थी।

ये हैं चार मांगें

  • लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा
  • संविधान की 6ठीं अनुसूची में शामिल करें
  • लद्दाख के लिए लोक सेवा आयोग की स्थापना
  • लेह और करगिल के लिए अलग अलग लोकसभा सीट


पहले भी वांगचुक कर चुके हैं अनशन

बता दें कि इन मांगों को लेकर वांगचुक ने इसी साल मार्च के महीने में 21 दिन का अनशन किया था। उनका आरोप है कि सरकार ने अपने वादे को तोड़ा है। पहला वादा पूर्ण राज्य और दूसरा संवैधानिक संरक्षण का था। सवाल यह है कि वांगचुक संविधान का संरक्षण क्यों चाहते हैं। इस सवाल के जवाब में वो खुद कहते हैं कि अनुच्छेद 370 की वजह से हमें संवैधानिक सुरक्षा मिली हुई थी।लेकिन अब तस्वीर बदल गई है। जैसे 6ठीं अनुसूची में अनुच्छेद 244(2) और अनुच्छेद 275(1) के तहत पूर्वात्तर के असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम में जनजाति क्षेत्रों में प्रशासनिक व्यवस्था है, ठीक उसी तरह लद्दाख में भी होना चाहिए।

इस अनुसूची के तहत ट्राइबल इलाकों में स्वायत्त जिलों की व्यवस्था है। इन स्वायत्त जिलों का लैंड रेवेन्यू,टैक्स लगाने, बिजनेस को नियंत्रित, खनन के लाइसेंस इश्यू करने का अधिकार होता है। इसके साथ स्कूल, बाजार बनाने का अधिकार होता है। इसकी वजह से स्थानीय लोग सरकार का सीधे तौर पर हिस्सा बनते हैं।

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