श्रीलंकाई तमिल शरणार्थी अब भी कैंप में, कब मिलेगी वापसी की राह?
OfERR के संस्थापक ने शरणार्थियों के प्रति भारत के नजरिए, कानूनी सुरक्षा और भारत में श्रीलंकाई तमिलों को शरण देने वाले शरणार्थी शिविरों के अस्तित्व पर चर्चा की।;
Sri Lankan Tamils: भारत ने पिछले चार दशकों से श्रीलंकाई तमिल शरणार्थियों को शरण दी है, विशेष रूप से तमिलनाडु राज्य में। लेकिन यह सवाल अब भी बना हुआ है कि श्रीलंका में गृहयुद्ध समाप्त हुए वर्षों बीत चुके हैं, फिर भी भारत में शरणार्थी कैंप क्यों मौजूद हैं? इसके साथ ही भारत में अब तक कोई स्पष्ट शरणार्थी कानून भी नहीं है।
शरणार्थियों पर भारत की नीति
The Federal से बातचीत में "ऑर्गनाइज़ेशन फॉर ईलम रिफ्यूजीज़ रिहैबिलिटेशन" (OfERR) के संस्थापक एससी चंद्रहासन ने भारत की शरणार्थी नीति, कानूनी संरक्षण की आवश्यकता, और सम्मानजनक वापसी को लेकर अपनी राय साझा की।
चंद्रहासन कहते हैं कि भारत उन देशों में से एक है जो अंतरराष्ट्रीय शरणार्थी संधि का पालन नहीं करता, बल्कि अपनी अलग प्रणाली से शरणार्थियों को संभालता है। उनके अनुसार 1983 से अब तक मैंने कोई ऐसा मामला नहीं देखा, जहां किसी श्रीलंकाई तमिल शरणार्थी को, जिसने वास्तव में शरण मांगी हो, भारत ने अस्वीकार कर दिया हो।
तमिलनाडु का विशेष योगदान
तमिलनाडु राज्य ने न सिर्फ शरणार्थियों को जगह दी, बल्कि कई बार अपने ही नागरिकों से अधिक सहानुभूति और सहायता दी है। यहां तक कि शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधाओं तक उनकी पहुँच सुनिश्चित की गई है। हालांकि, इन्हें भारत की नागरिकता नहीं प्राप्त है, लेकिन जीवन यापन का अधिकार और गरिमा उन्हें मिलती रही है।
गृहयुद्ध समाप्त, फिर भी कैंप क्यों?
गृहयुद्ध समाप्त हो चुका है और श्रीलंका में राजनीतिक बदलाव भी आया है, लेकिन लोगों के मन में अब भी भय बना हुआ है। विश्वास को फिर से कायम करना समय लेगा। चंद्रहासन मानते हैं कि जब सम्मानजनक वापसी की प्रक्रिया विश्वसनीय बन जाएगी, तब ज़्यादा से ज़्यादा लोग स्वदेश लौटने लगेंगे।
शरणार्थी कानून की कमी
भारत में शरणार्थियों के लिए कोई विशेष कानून नहीं है। इसका मतलब है कि सैद्धांतिक रूप से सरकार किसी भी शरणार्थी को अवैध प्रवासी करार दे सकती है। फिर भी, श्रीलंकाई तमिल शरणार्थियों के संदर्भ में अब तक भारत का रुख सहिष्णु और मानवीय रहा है।
कैम्प में जीवन
तमिलनाडु के शरणार्थी कैंपों में रह रहे लोगों को शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएं मिलती हैं। वे भारतीय नागरिकों के समान अधिकार तो नहीं रखते, लेकिन समाज और सरकार की ओर से उन्हें गरिमा के साथ जीवन यापन का अवसर मिला है।
आगे का रास्ता
चंद्रहासन कहते हैं कि भारत को ऐसे प्रयासों को संस्थागत समर्थन देना चाहिए जो शरणार्थियों को अपने देश लौटने के लिए प्रोत्साहित करें। शरणार्थी का दर्जा स्थायी नहीं होता। उनकी समस्याएं समाप्त होते ही उन्हें अपने घर लौटने का अवसर मिलना चाहिए। भारत और श्रीलंका, दोनों के हित में यही एक स्थायी समाधान है।
भारत भले ही कोई विशेष शरणार्थी कानून न रखता हो, लेकिन मानवीय दृष्टिकोण से उसने दशकों से श्रीलंकाई तमिलों की मदद की है। अब ज़रूरत इस बात की है कि उनकी वापसी सम्मान और सुरक्षा के साथ सुनिश्चित की जाए। साथ ही भारत को एक स्पष्ट और मानवीय शरणार्थी नीति बनाने की दिशा में कदम उठाना चाहिए।