आवारा कुत्तों से संबंधित आदेश पर विरोध, PETA को क्यों है ऐतराज?

दिल्ली-एनसीआर से आवारा कुत्तों को हटाने के सुप्रीम कोर्ट आदेश पर PETA, मेनका गांधी और दूसरे कार्यकर्ताओं ने विरोध जताया। उनका कहना है कि यह अव्यावहारिक,अमानवीय है।;

Update: 2025-08-12 08:06 GMT

दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र से आवारा कुत्तों को हटाकर शेल्टर में रखने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पशु अधिकार कार्यकर्ताओं ने कड़ा विरोध किया है। कार्यकर्ताओं का कहना है कि मोहल्ले के कुत्तों को लोग परिवार का हिस्सा मानते हैं, और उनका विस्थापन या बंदीकरण न तो वैज्ञानिक है और न ही कभी कारगर साबित हुआ है।

राजधानी में कुत्तों के काटने की घटनाओं पर चिंता जताने वाले कुछ रेज़िडेंट वेलफेयर संगठनों ने इस आदेश का स्वागत किया है। सुप्रीम कोर्ट ने आवारा कुत्तों की समस्या को बेहद गंभीर बताते हुए दिल्ली सरकार और नगर निगमों को सभी इलाकों से कुत्ते पकड़कर शेल्टर में रखने का आदेश दिया है, साथ ही चेतावनी दी है कि इस अभियान में बाधा डालने वालों पर सख्त कार्रवाई होगी।

PETA ने बताया आदेश अव्यावहारिक

पीपुल फॉर द एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनिमल्स (PETA) इंडिया ने कहा कि इतने शेल्टर बनाना संभव नहीं है और कुत्तों के विस्थापन से आपसी झगड़े और क्षेत्रीय संघर्ष बढ़ेंगे। 2022-23 की जनगणना के अनुसार दिल्ली में लगभग 10 लाख सामुदायिक कुत्ते हैं, जिनमें से आधे से भी कम की नसबंदी हुई है। PETA का कहना है कि कुत्तों को जबरन हटाने से न तो उनकी संख्या घटेगी, न रेबीज़ के मामले कम होंगे और न ही काटने की घटनाएं रुकेंगी।

संस्था ने बताया कि 2001 से ही सरकार सामुदायिक कुत्तों की नसबंदी और रेबीज़ टीकाकरण अनिवार्य कर चुकी है, लेकिन इसका प्रभावी क्रियान्वयन नहीं हुआ। PETA ने गैर-कानूनी पालतू दुकानों और ब्रीडरों को बंद करने और गोद लेने को बढ़ावा देने की अपील की।

इंडिया गेट पर विरोध प्रदर्शन

11 अगस्त को दिल्ली-एनसीआर के एनिमल लवर्स, फीडर्स, रेस्क्यूअर्स और केयरगिवर्स इंडिया गेट पर इकट्ठा होकर सुप्रीम कोर्ट के आदेश के खिलाफ प्रदर्शन में उतरे। प्रदर्शनकारियों ने आरोप लगाया कि कुत्ते के काटने और रेबीज़ से मौत के आंकड़े बढ़ा-चढ़ाकर पेश किए गए हैं। उनका कहना था कि नसबंदी, टीकाकरण और उन्हें उनके इलाके में वापस छोड़ना ही समाधान है।

प्रदर्शनकारियों ने यह भी दावा किया कि 2024 में केवल 54 संदिग्ध रेबीज़ मौतें दर्ज हुईं, और मीडिया ने इस मुद्दे को सनसनीखेज बनाया। कुछ प्रदर्शनकारियों को दिल्ली पुलिस ने हिरासत में भी लिया।

मेनका गांधी का कड़ा विरोध

पूर्व केंद्रीय मंत्री और पशु अधिकार कार्यकर्ता मेनका गांधी ने इस आदेश को अव्यावहारिक, वित्तीय रूप से असंभव और पर्यावरणीय संतुलन के लिए हानिकारक बताया। उन्होंने कहा कि दिल्ली में तीन लाख कुत्तों को हटाने के लिए लगभग ₹15,000 करोड़ की आवश्यकता होगी, साथ ही हर सप्ताह ₹5 करोड़ उनके खाने पर खर्च करने पड़ेंगे।

मेनका गांधी ने चेताया कि कुत्तों को हटाने से अन्य समस्याएं पैदा होंगी, जैसे बंदरों का बढ़ना और चूहों का फैलाव, जैसा इतिहास में पेरिस में 1880 के दशक में हुआ था। उन्होंने कुत्तों को रोडेंट-कंट्रोल एनिमल्स बताया और कहा कि इस आदेश से सड़कों पर संघर्ष की स्थिति भी बन सकती है।

सुप्रीम कोर्ट के आदेश की मुख्य बातें

दिल्ली, नोएडा, गुरुग्राम और गाजियाबाद की नगरपालिकाएं तुरंत कुत्तों को हटाने का काम शुरू करें। आठ सप्ताह के भीतर शेल्टर बनाने और उसकी रिपोर्ट कोर्ट में पेश करने का निर्देश।

शेल्टर में नसबंदी और टीकाकरण की पर्याप्त व्यवस्था हो।

कुत्तों को सड़कों या कॉलोनियों में वापस न छोड़ा जाए।

अभियान में बाधा डालने वालों पर अवमानना कार्रवाई की चेतावनी।

डॉग बाइट हेल्पलाइन और रेबीज़ वैक्सीन की जानकारी सार्वजनिक करने के निर्देश।

दिल्ली सरकार ने आदेश मानने के संकेत दिए

दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने कहा कि आवारा कुत्तों की समस्या विकराल रूप ले चुकी है और सरकार आदेश का पालन करते हुए जल्द नीति बनाएगी। दिल्ली के विकास मंत्री कपिल मिश्रा ने कहा कि यह कदम शहर को रेबीज़ और आवारा पशुओं के डर से मुक्त करेगा।

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