SIR विवाद: 'अंतिम' मतदाता सूची बनी रहस्य, असमंजस में महागठबंधन

विपक्ष ने हटाए गए मतदाताओं को बहाल करने का श्रेय लिया है, लेकिन उन्होंने कहा कि चुनाव के बाद से ही सवाल अभी भी बने हुए हैं। आयोग ने कोई ब्योरा नहीं दिया है।

Update: 2025-10-01 18:04 GMT
Click the Play button to listen to article

निर्वाचन आयोग (EC) ने मंगलवार (30 सितंबर) को बिहार की अंतिम चुनाव मतदाता सूची जारी कर दी है। इस सूची में पहले से ही जनगणना एवं खास पुनरीक्षण (Special Intensive Revision — SIR) को लेकर विपक्षी गठबंधन द्वारा कड़ी टिप्पणियां की गई थीं। इस बीच सूची ने विपक्ष को कुछ राहत और साथ ही सावधानी दोनों ही विचारों का कारण दिया है। सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार, त्रुटियों को सुधारा जाना अभी बाकी है। लेकिन जून 2025 की प्रारंभिक सूची (24 जून 2025 को 7.89 करोड़ मतदाता दर्ज थे) में सुधार कर इसे अब आयोग ने 7.42 करोड़ तक सीमित किया है। विपक्ष इसे आंशिक सफलता तो मानता है, लेकिन इसे एक रहस्य भी कहता है कि आखिर SIR पर उसकी आपत्तियां कितनी स्वीकार की गईं।

राष्ट्र जनता दल (RJD) के मनोज झा, कांग्रेस के बिहार विधान पार्टी नेता शकील अहमद व अन्य विपक्षी नेता आयोग की जारी सूची को “प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा की झूठी प्रचार-राय को उजागर करने वाला” बताते हैं। उनका कहना है कि लगभग सभी नाम हटाने की श्रेणियां मौत, स्थायी प्रवास और डुप्लीकेट मतदाता हैं — “अवैध निवासियों” को हटाने की कोई श्रेणी नहीं दी गई है। CPI‑ML Liberation सांसद राजा राम सिंह का कहना है कि प्रारूप सूची में लगभग 65 लाख नाम हटाए गए थे। लेकिन गठबंधन, नागरिक समाज और सुप्रीम कोर्ट के दबाव के कारण लगभग 10–15 लाख नाम वापस जोड़े गए हैं।

फिर भी प्रश्न बने रहे?

गठबंधन यह मानता है कि अंतिम सूची ने प्रारूप सूची की कुछ गलतियों को सुधारा है, लेकिन कई नये सवाल खड़े किए हैं। कांग्रेस के बिहार प्रदेश अध्यक्ष राजेश राम का कहना है कि सकल अंकों (कुल मतदाता, जोड़ और हटाए गए) को देख कर “अभी भी व्याप्त अनिश्चितताएं” हैं। उन्होंने यह भी बताया कि चुनाव आयोग ने यह स्पष्ट रूप से नहीं बताया है कि 21.53 लाख नए नामों में से कितने पूर्णत: नए मतदाता हैं और कितने पहले हटाए गए हैं, जिन्हें पुनर्स्थापित किया गया। आयोग के आंकड़ों के अनुसार, 3.66 लाख मतदाताओं को “अक्षम” घोषित किया गया — जबकि वे प्रारूप सूची में पात्र पाए गए थे — इस पर भी विरोधियों को अस्पष्टता मिलती है।

योगेंद्र यादव ने उठाए गंभीर सवाल

सुप्रीम कोर्ट में SIR के खिलाफ याचिकाकर्ता रहे योगेंद्र यादव कहते हैं कि 21.53 लाख नामों में से 16.93 लाख नाम (Form 6 आवेदन) 1 सितंबर तक स्वीकार किए जाने की जानकारी दी गई थी। लेकिन अंतिम सूची में यह संख्या 21.53 लाख दिख रही है — “अतिरिक्त 4.6 लाख नाम कहां से आए?”, यही प्रमुख प्रश्न है, जिसे आयोग को स्पष्ट करना चाहिए।

विपक्ष का अगला कदम

विपक्ष के लिए अब चुनौती यह तय करना है कि इस अंतिम सूची को SIR विरोध का जीत कहें या अपनी चुनावी रणनीति को “जीवनयापन, रोज़गार, जनता सदोष” मुद्दों पर मोड़ें। गठबंधन नेताओं का कहना है कि सभी 21.53 लाख नए नाम शायद नए मतदाता न हों — कई तो हटाए गए हो सकते हैं या कुछ ‘घोस्ट’ मतदाता भी हो सकते हैं। इसलिए हम अभी विजयी होने का दावा नहीं कर सकते। कांग्रेस सांसद मोहम्मद जवेद ने कहा कि बूथ‑स्तर के एजेंटों को सूची को ख़रीबियों के लिए जांचना है और अगर कोई मतदाता गलत हटाया गया हो तो सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर उसे फेरबदल कराने का प्रयास करना है।

विपक्ष स्रोतों का कहना है कि चुनाव आयोग ने उन्हें अभी नामों के विभाजन, जोड़-घटाव की श्रेणियां और डिजिटल मतदाता सूची (Machine‑readable list नहीं) नहीं दी है — जिससे “अर्थपूर्ण जांच” संभव नहीं हो पाएगी। कल तक, कांग्रेस और RJD के नेताओं ने अपने बूथ एजेंटों को निर्देश दे दिया है कि वे दशहरा के बाद संबंधित औपचारिकताओं को लेकर ज़िला प्रशासन और निर्वाचन अधिकारियों से जानकारी जुटाएं और नामों की वैधता की जांच करें।

Tags:    

Similar News