मदुरै में NTK का अनोखा पशु सम्मेलन, सीमान ने चराई भूमि की उठाई मांग
हजारों बकरियां, मवेशी और मालिक इकट्ठा हुए, जब सीमान ने चराई के अधिकार की मांग की, सरकारी नीतियों की आलोचना की और पारंपरिक ग्रामीण आजीविका की वकालत की।;
तमिलनाडु की क्षेत्रीय पार्टी नाम तमिझर कच्ची (NTK) ने मदुरै के पास विरातनूर गांव में एक अनोखा और विशाल सम्मेलन आयोजित किया, जिसका नाम था — "चराई भूमि हमारा अधिकार है"। इस कार्यक्रम में राज्य भर से हज़ारों बकरियां, गाय-बैल और उनके मालिक शामिल हुए। सम्मेलन का उद्देश्य था चराई भूमि के महत्व और पशुपालकों की समस्याओं को सामने लाना।
ग्रामीण परंपराओं का जोरदार समर्थन
सम्मेलन स्थल पर एक बड़ी स्टेज बनाई गई थी, जिसके सामने लोहे की बाड़ों से घेरा गया क्षेत्र था, जहां सैकड़ों देशी मवेशी खड़े थे। यह दृश्य लोगों को ग्रामीण जीवन की एक झलक देता था। NTK के प्रमुख और सम्मेलन के मुख्य वक्ता सीमान ने एक जोशीला भाषण दिया, जिसमें उन्होंने प्राकृतिक खेती, पशुपालन, ताड़ी निकालना, पाम पर चढ़ना और आत्मनिर्भर जीवनशैली जैसे पारंपरिक व्यवसायों की महत्ता पर बल दिया। हाल ही में सीमान तिरुचेंदूर के पास खुद पाम के पेड़ पर चढ़कर ताड़ी निकालते देखे गए थे, जिसने सोशल मीडिया पर खूब ध्यान खींचा।
"चराई भूमि हमारा हक है": सीमान
सीमान ने वन विभाग की उन नीतियों पर कड़ी आपत्ति जताई जिनमें पशुओं को जंगलों में चराने पर प्रतिबंध लगाया गया है। उन्होंने कहा कि चराई भूमि हमारा अधिकार है। सरकार को इसे वापस देना चाहिए और पशुओं को जंगलों में चरने की अनुमति देनी चाहिए। उन्होंने पशुपालन और दुग्ध विकास विभागों को नाम मात्र के संस्थान बताते हुए उनकी नीतियों की आलोचना की और कहा कि ये विभाग पशुपालकों के हित में कुछ नहीं कर रहे। क्या जंगलों में मवेशी चराना ज्यादा हानिकारक है या पहाड़ों को डायनामाइट से उड़ाना? — सीमान ने यह सवाल पर्यावरणीय चिंताओं के बहाने से चराई भूमि छीनने वालों पर उठाया।
सीमान की चेतावनी
सीमान ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि यदि सरकार ने पशुओं के लिए चराई भूमि बहाल नहीं की तो वे स्वयं मवेशियों को लेकर जंगलों में जाएंगे और केस दर्ज होने की परवाह नहीं करेंगे। उन्होंने आदिवासी समुदायों की वन संरक्षण में भूमिका को रेखांकित करते हुए कहा कि पशुपालन शर्म की नहीं, गर्व की बात है।
तस्मैक से ज्यादा मूल्यवान है पशुधन
सीमान ने पशुधन क्षेत्र के आर्थिक महत्व पर बात करते हुए बताया कि 2022-23 में इससे ₹28,000 करोड़ और 2023-24 में ₹30,000 करोड़ की आय हुई। जबकि राज्य सरकार की शराब बिक्री (TASMAC) से ₹50,000 करोड़ का राजस्व मिला। क्या प्राथमिकताएं गलत नहीं हैं? क्या शराब ज्यादा जरूरी है या पशुपालकों का भविष्य? उन्होंने भूमाफियाओं और उद्योगपतियों पर आरोप लगाया कि वे चराई भूमि पर कब्जा कर रहे हैं, जिससे मवेशियों के लिए चारे की कमी हो रही है।
गायों को वोटिंग राइट दो
सीमान ने व्यंग्य करते हुए कहा कि आप अच्छे नेता नहीं चुन पाते, अगर मवेशियों को वोट देने का अधिकार हो तो शायद वे आपसे बेहतर चुन लें। उन्होंने पारंपरिक कृषि पर रसायनों और औद्योगीकरण के प्रभावों को भी निशाने पर लिया और SIPCOT, हवाई अड्डों और खनन परियोजनाओं से भूमि छीने जाने की आलोचना की।
जल्लीकट्टू का संघर्ष
सीमान ने जल्लीकट्टू पर अभी भी जारी प्रतिबंधों और आंदोलनकारियों पर चल रहे मुकदमों का मुद्दा उठाया और कहा कि यह तमिल संस्कृति का प्रतीक है, जिसे खत्म करने की कोशिश हो रही है।
पत्रकारों की राय
वरिष्ठ पत्रकार सवित्री कन्नन ने कहा कि पशुपालन केवल पेशा नहीं है, यह प्रकृति और खाद्य श्रृंखला से जुड़ी परंपरा है। इन समुदायों के बिना शहरों में रहने वाले लोगों को भोजन तक नहीं मिलेगा। उन्होंने चेतावनी दी कि तमिलनाडु में चराई भूमि तेजी से रियल एस्टेट में बदली जा रही है, जिससे खाद्य सुरक्षा पर भी संकट मंडरा रहा है।
विरोध-प्रदर्शन मज़ाक नहीं
सीमान द्वारा ताड़ी निकालने को लेकर जहां सोशल मीडिया पर मज़ाक उड़ाया गया, वहीं कन्नन ने इसे Rural livelihood के मुद्दे की ओर ध्यान आकर्षित करने वाला कदम बताया। उन्होंने कहा कि तमिलनाडु एकमात्र राज्य है, जिसने पारंपरिक ताड़ी चढ़ाई पर प्रतिबंध लगाया है। सीमान की ये गतिविधियाँ ग्रामीण अर्थव्यवस्था के गिरते आधार पर रोशनी डालती हैं।
DMK की तीखी आलोचना
द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (DMK) ने इस पूरे सम्मेलन को एक राजनीतिक ड्रामा बताया। DMK नेताओं ने दावा किया कि उनकी सरकार ने पशुपालक समुदाय के वंशजों को शिक्षा और विकास के जरिए ऊपर उठाया है। हालांकि, पत्रकार कन्नन और अन्य आलोचकों का कहना है कि पशुपालन को नीचा दिखाना, पूरे खाद्य तंत्र को कमजोर करना है।