तमिलनाडु में शिक्षा का तेजी से विस्तार, लेकिन शिक्षकों की भारी कमी

तमिलनाडु में सरकारी कॉलेजों की संख्या बढ़ी है, लेकिन 50% से अधिक कॉलेज बिना प्राचार्य और प्रोफेसरों के चल रहे हैं। गेस्ट लेक्चरर ही पढ़ा रहे हैं।;

Update: 2025-07-09 03:49 GMT
पिछले चार सालों में तमिलनाडु ने 35 नए सरकारी कला और विज्ञान महाविद्यालयों का उद्घाटन किया है, जिनमें अलंदूर, पनरुति, चेयूर और थुरैयूर जैसे ग्रामीण इलाके शामिल हैं। लेकिन फैकल्टी की कमी के कारण यह विस्तार निरर्थक हो गया है। छवि: iStock

तमिलनाडु सरकार ने ग्रामीण क्षेत्रों में शासकीय कला और विज्ञान महाविद्यालयों का जाल तेज़ी से फैलाया है। लेकिन इस महत्वाकांक्षी पहल के पीछे एक गंभीर संकट छिपा हुआ है। इन कॉलेजों में अध्यक्षों की नियुक्ति नहीं हुई है और प्रोफेसरों की भारी कमी है। आंकड़ों के अनुसार, राज्य के कुल 180 सरकारी कला एवं विज्ञान महाविद्यालयों में से 96 कॉलेजों में स्थायी प्राचार्य नहीं हैं और लगभग आधे कॉलेजों में पर्याप्त फैकल्टी नहीं है।

नियुक्ति नहीं, केवल ट्रांसफर

बीते चार वर्षों में तमिलनाडु सरकार ने 35 नए शासकीय महाविद्यालयों की शुरुआत की, जिनमें से 15 कॉलेज 2025 में ही शुरू किए गए हैं, जिनमें अलंदूर, पनरुट्टी, चेय्यूर और थुरैयूर जैसे ग्रामीण क्षेत्र शामिल हैं।हालांकि, किसी भी नए कॉलेज में स्थायी फैकल्टी की नियुक्ति नहीं हुई है। इसके बजाय अन्य कॉलेजों से शिक्षकों का स्थानांतरण कर इन्हें चलाया जा रहा है, जिससे पुराने संस्थानों की गुणवत्ता पर भी प्रतिकूल असर पड़ा है।

'गेस्ट लेक्चरर' के भरोसे शिक्षा व्यवस्था

शिक्षाविद् आर. सरन्या ने The Federal से बात करते हुए चिंता जताई कि तेज़ी से फैलते संस्थानों के लिए आधारभूत ढांचे और मानव संसाधन की कमी गंभीर खतरा बन सकती है। उन्होंने कहा, “राज्य का सकल नामांकन अनुपात 47 प्रतिशत है, जो राष्ट्रीय औसत से कहीं अधिक है, लेकिन वास्तविक शिक्षण गुणवत्ता गिर रही है। प्राचार्य और पूर्णकालिक शिक्षक न होने के कारण केवल अतिथि व्याख्याताओं के सहारे कक्षाएं चल रही हैं। ऐसे में सरकारी कॉलेजों में पढ़ने वाले छात्रों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा कैसे मिलेगी?”सरन्या का मानना है कि इससे गरीब और ग्रामीण पृष्ठभूमि के पहली पीढ़ी के छात्र प्रभावित हो रहे हैं, जिन्हें उचित मार्गदर्शन की सबसे अधिक ज़रूरत होती है। छात्र केवल वजीफे के लिए आते हैं।सरन्या ने यह भी बताया कि कई छात्र केवल 1000 रुपए  मासिक वजीफे के लिए कॉलेज आते हैं। लेकिन उन्हें न तो पर्याप्त शिक्षण-संरचना मिलती है और न ही किसी किस्म का करियर मार्गदर्शन। ऐसे में प्लेसमेंट की संभावनाएं शून्य के बराबर हो जाती हैं।

शिक्षकों का आरोप, नियुक्ति प्रक्रिया में देरी

तमिलनाडु उच्च शिक्षा शिक्षक संघ समेत कई संगठनों ने सरकार को आगाह किया है कि संस्थानों की गुणवत्ता गिर रही है। उन्होंने मांग की है कि प्राचार्यों और प्रोफेसरों की तत्काल और पारदर्शी नियुक्ति प्रक्रिया शुरू की जाए और विभाग इसकी जवाबदेही सुनिश्चित करे।

पिछली सरकार और कोर्ट केस ज़िम्मेदार

जब The Federal ने उच्च शिक्षा मंत्री गोवी चेझियन से संपर्क किया, तो उन्होंने बताया कि 2015 से शिक्षक भर्ती बोर्ड (TRB) के माध्यम से कोई नियुक्ति नहीं हुई, जिससे रिक्तियां बढ़ती गईं। उन्होंने कहा AIADMK शासन के दौरान इन पदों को लगभग एक दशक तक नहीं भरा गया। डीएमके सरकार ने जिम्मेदारी लेते हुए 4000 पदों को भरने का आदेश जारी किया है, लेकिन इस पर 54 कानूनी मामले दर्ज हैं, जिससे प्रक्रिया बाधित हो गई है।मंत्री ने यह भी बताया कि वर्तमान में 800 से अधिक पद अतिथि व्याख्याताओं से भरे जा रहे हैं। उन्होंने माना कि इन अस्थायी शिक्षकों के पास दीर्घकालिक प्रोत्साहन, शोध कार्य या मार्गदर्शन की भूमिका नहीं होती, जिससे गुणवत्ता पर असर पड़ता है। हालांकि, उन्होंने आश्वासन दिया कि सरकार इस स्थिति को सुधारने के लिए कानूनी और प्रशासनिक स्तर पर प्रयासरत है।

तमिलनाडु में उच्च शिक्षा का विस्तार सराहनीय है, लेकिन गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिश्चित करने के लिए स्थायी नियुक्तियों, संसाधनों और संस्थागत स्थिरता की सख्त ज़रूरत है। वरना यह पूरी पहल सिर्फ एक "संख्या पूर्ति अभियान" बनकर रह जाएगी।

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