बिना स्टाफ सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल ! कैसे चलेगी तमिलनाडु की स्वास्थ्य मशीनरी?
तमिलनाडु के नए JICA अस्पताल बिना नए स्टाफ के पुराने कर्मचारियों से चल रहे हैं। डॉक्टरों ने बढ़ती मरीज संख्या और स्टाफ कमी पर गंभीर चिंता जताई है।
तमिलनाडु में जापान इंटरनेशनल कोऑपरेशन एजेंसी (JICA) परियोजना के तहत बनाए गए कई नए अस्पताल भवन और विशेषता ब्लॉक साथ ही चेन्नई, कोयंबटूर, सलेम और तिरुनेलवेली में स्वास्थ्य विभाग द्वारा निर्मित नई यूनिटें सभी बिना नए पद सृजित किए कर्मचारियों की तैनाती से चलाए जा रहे हैं। वेेल्लोर और तूतीकोरिन में हाल ही में शुरू हुए सुपर स्पेशियलिटी अस्पतालों का संचालन भी अस्थायी रूप से दूसरे अस्पतालों से स्टाफ खींचकर किया जा रहा है।
स्थिति यह है कि राज्य सरकार द्वारा हाल ही में जारी आदेश में कैंसर देखभाल के लिए तृतीयक संस्थानों में महत्वपूर्ण पद बनाने का प्रस्ताव है, लेकिन यह भी मौजूदा कर्मचारियों के पुनर्विनियोजन के जरिए ही पूरा होगा। यानी समस्या का समाधान होने के बजाय स्टाफ की कमी और बढ़ेगी।
डॉक्टरों ने क्या कहा?
सरकारी डॉक्टरों के कई संगठनों ने इन नए अस्पतालों में स्टाफ की कमी मुद्दा कई बार उठाया, लेकिन अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है।एक ताज़ा सरकारी आदेश में कैंसर के लिए विशेष पद बनाने की बात कही गई है, लेकिन डॉक्टरों के अनुसार नए पद भरे बिना इन संस्थानों में भारी स्टाफ संकट और गहराएगा।
डॉक्टरों का कहना है कि इस काम के लिए फिर से दूसरे अस्पतालों से कर्मियों को खींचा जाएगा, क्योंकि नए स्थायी पदों की मंजूरी नहीं दी गई है।
एक सरकारी चिकित्सा अधिकारी ने बताया: “नए अस्पतालों में डॉक्टरों की कमी है। उदाहरण के लिए, प्रसूति एवं स्त्री रोग विभाग में कई मेडिकल कॉलेज अस्पतालों में 20 पद स्वीकृत हैं, लेकिन केवल आधे ही ड्यूटी पर उपलब्ध हैं। ऐसे में नई इमारतें और ढांचा पर्याप्त स्टाफ के बिना बेकार साबित होंगे।”
राज्य के स्वास्थ्य विभाग के सूत्रों के अनुसार, नई इमारतों और सुविधाओं के उद्घाटन के बावजूद संचालन लगातार पुनर्विनियोजन के सहारे चल रहा है, जिससे पुराने अस्पतालों पर भारी दबाव पड़ रहा है।
“कर्मचारियों की कमी से सेवाएं प्रभावित हो रहीं” — डॉक्टरों के संगठन
डॉक्टर्स एसोसिएशन फॉर सोशल इक्वलिटी के महासचिव डॉ. जी.आर. रविंद्रनाथ ने कहा: “सरकारी मेडिकल कॉलेजों में कोई अतिरिक्त डॉक्टर नहीं हैं। हर नई इमारत के उद्घाटन के साथ नए स्टाफ पद बनाने की जरूरत होती है। केवल डॉक्टर ही नहीं, जब मरीजों का बोझ दो गुना हो जाता है, तो सेवाएं गंभीर रूप से प्रभावित होती हैं।”
वह आगे कहते हैं कि एक अस्पताल से दूसरे में स्टाफ भेजने से दोनों जगह सेवा प्रभावित होती है और लंबे समय में मरीजों को मिलने वाली देखभाल की गुणवत्ता पर असर पड़ेगा।
बढ़ता मरीज भार, लेकिन स्टाफ में बढ़ोतरी नहीं
JICA के तहत बनाए गए नए स्पेशियलिटी ब्लॉक्स—कार्डियोलॉजी, न्यूरोलॉजी, ऑन्कोलॉजी आदि—राज्य की स्वास्थ्य सेवा को उच्च स्तर पर ले जाने के लिए तैयार किए गए थे। वेल्लोर और तूतीकोरिन के सुपर स्पेशियलिटी अस्पतालों से उम्मीद थी कि वे चेन्नई जैसे बड़े शहरों का बोझ कम करेंगे।लेकिन समर्पित स्टाफ न होने के कारण इन अस्पतालों में भी दबाव बढ़ता जा रहा है।
डॉक्टरों का कहना है कि पिछले कुछ वर्षों में मरीजों की संख्या काफी बढ़ी है, लेकिन मानव संसाधन में वृद्धि नहीं हुई।लीगल कोऑर्डिनेशन कमेटी फॉर गवर्नमेंट डॉक्टर्स के अध्यक्ष डॉ. परुमल पिल्लई ने सवाल उठाया: “मंत्री कहते हैं कि 2021 के बाद से सरकारी अस्पतालों में मरीजों की संख्या दोगुनी हो गई है। क्या डॉक्टरों और नर्सों की संख्या भी दोगुनी की गई?” उन्होंने बताया कि सिर्फ प्रसूति विशेषज्ञों के पद ही कई जगह खाली पड़े हैं
नागपट्टिनम सरकारी मेडिकल कॉलेज में 12 पद खाली,
वेल्लोर सरकारी मेडिकल कॉलेज में 18 पद खाली।
डॉक्टरों का यह भी कहना है कि नालम कक्कुम स्टालिन जैसी नई स्वास्थ्य योजनाओं और मेडिकल कैंपों के लिए भी अतिरिक्त स्टाफ की जरूरत है, लेकिन इन योजनाओं के लिए भी नए पद मंजूर नहीं किए गए।
स्वास्थ्य मंत्री का बचाव: “यह पुनर्विनियोजन नहीं, संसाधनों का अनुकूलन है”
तमिलनाडु के स्वास्थ्य मंत्री मा. सुब्रमणियन ने गुरुवार (13 नवंबर) को कहा कि सरकार की पुनर्विनियोजन नीति स्वास्थ्य सेवाओं को संतुलित रखने के लिए एक रणनीतिक कदम है। उनके अनुसार पुनर्विनियोजन केवल वहीं होता है जहां स्टाफ अधिशेष है। अगर किसी अस्पताल में 10 डॉक्टर हैं लेकिन आवश्यकता 8 की है, तो 2 को दूसरी जगह भेजा जा सकता है।नियुक्तियां पारदर्शी काउंसलिंग प्रक्रिया से हुई हैं।
वर्तमान सरकार ने चार साल में 80,000 से अधिक स्वास्थ्य पद भरे हैं। 708 अर्बन हेल्थ सेंटर, 50 नए PHCs और 35,469 NHM पदों पर व्यवस्थित भर्ती की गई है।मंत्री ने कहा कि यह किसी भी पद को कम करना नहीं, बल्कि जिम्मेदार पुनर्विनियोजन है ताकि मरीजों की सेवा बाधित न हो।