आजम खान से अखिलेश यादव की दूरी, क्या रणनीति है या कोई सियासी मजबूरी?

एक समय कर समाजवादी पार्टी के सबसे कद्दावर नेता रहे आज़म ख़ान की पत्नी के बयान के बाद भले ही अखिलेश यादव उनको जवाब देकर विकल्प बता दिया हो पर सवाल ये है कि आज़म से दूरी अखिलेश की रणनीति है या मजबूरी? क्या आज़म की राजनीतिक ज़मीन खोने की वजह से अब उनकी वापसी मुश्किल है?;

By :  Shilpi Sen
Update: 2025-06-30 12:37 GMT

मुलायम और अखिलेश दोनों सरकारों में कद्दावर मंत्री रहे आज़म ख़ान की पत्नी तज़ीन फातिमा के बयान के बाद भले ही अखिलेश यादव ने उनको जवाब दे दिया हो पर चर्चा थमने का नाम नहीं ले रही। इस बहाने अब ये सवाल भी उठ रहे हैं कि क्या अपनी राजनीति के शुरुआती दौर से ‘तुनकमिज़ाजी’ की पॉलिटिक्स करते आ रहे आज़म ख़ान का सपा की राजनीति में अंत हो गया है? क्या अब आज़म और अखिलेश में दूरी इतनी बढ़ गयी है कि आज़म को सपा से कोई उम्मीद नहीं रही ?

तंज़ीम फातिमा ने कहा- नहीं है किसी से उम्मीद

पूर्व सांसद और आज़म की पत्नी तंज़ीम फातिमा जब सीतापुर जेल में आज़म ख़ान से मुलाक़ात कर बाहर निकली तो उन्होंने यह कहकर कि ‘उनको अब किसी से उम्मीद नहीं सिर्फ़ अल्लाह से उम्मीद है’ राजनीति में हलचल मचा दी। उसके बाद से आज़म की अखिलेश यादव और सपा से दूरियों को लेकर चर्चा हो रही है तो वहीं इस पर भी सवाल उठ रहे हैं कि क्या ये एक पत्नी का दुख है या तंज़ है। या फिर प्रेशर पॉलिटिक्स की एक अंतिम कोशिश है। तज़ीम फातिमा के बयान के बाद इस दबाव को समाजवादी पार्टी ने भी महसूस किया। अखिलेश यादव को ख़ुद मीडिया के सामने कहना पड़ा कि आज़म के पास तीन विकल्प हैं। एक तो यह सरकार (योगी सरकार ) बदले और सपा सरकार आए तो आज़म ख़ान को राहत मिल सकती है। दूसरा कोर्ट से आज़म ख़ान को राहत मिल सकती है। तीसरा उनको भगवान यानि ऊपरवाला ही राहत दे सकता है। अखिलेश यादव के इस बयान के बाद आज़म के समर्थकों में खामोशी बनी हुई है।

मुलायम से रहा रूठने मनाने का रिश्ता

यूपी के सियासी गलियारे में इस बात को लेकर चर्चा हो रही है कि क्या आज़म ख़ान की राजनीति का पूरी तरह से अंत हो गया है। साथ ही बड़ा सवाल ये भी है क्या अब मुस्लिम वोटर्स को लेकर अखिलेश के पास कोई प्लान नहीं है। आज़म और अखिलेश के इस रिश्ते को समझने के लिए थोड़ा पीछे जाना होगा। 1992 में समाजवादी पार्टी के गठन के बाद मुलायम सिंह यादव और आज़म ख़ान के बीच एक गहरा सामंजस्य रहा।हालांकि, दोनों के बीच समय समय पर ‘लव -हेट ‘ के रिश्ते भी बने। आज़म ख़ान की पार्टी के अंदर जब भी बात नहीं सुनी जाती थी आज़म ख़ान रूठकर रामपुर चले जाते थे। मुलायम सिंह से मिलना बंद कर देते थे। उस समय मुलायम सिंह उनको मनाते भी थे। कभी कभी तो मनाने के लिए अपने करीबियों को रामपुर भी भेज देते थे। उसके बाद आज़म फिर अपने पुराने अंदाज़़ में आ जाते थे।

अमर सिंह की मज़बूती के बाद हुए सपा में कमज़ोर

मुलायम-आज़म का यह सियासी रिश्ता दो दशक तक ऐसे ही चला। तीसरे दशक में अमर सिंह की सपा में मज़बूती के बाद एक बार आज़म ने ऐसी ही तुनकमिजाज़ी दिखाई तो मुलायम सिंह यादव ने आज़म को पार्टी से ही निकाल दिया। यही नहीं लोकसभा चुनाव लड़वाकर जया प्रदा को दूसरी बार सांसद बनवा दिया। उसके बाद लोकसभा चुनाव में सपा की भारी पराजय हुई और फिर आज़म ख़ान की पार्टी में वापसी हुई। लेकिन इस दौरान आज़म ख़ान ने जिस तरह से मुलायम सिंह यादव पर वार किया उससे तय हो गया कि आज़म ख़ान सियासी फायदे न होने पर किस तरह का रुख़ अपना सकते हैं। उस समय आज़म ख़ान ने कहा था कि ‘ मुलायम अपनी धोती के नीचे खाकी हाफ पैंट पहनते हैं।’ ये बात काफ़ी विवादित और सुर्खियों में रही थी।

सहज नहीं रहा है अखिलेश और आज़म का रिश्ता

आज़म के मौजूदा हाल को समझने के लिए अखिलेश और आज़म के रिश्ते और दोनों को ‘स्टाइल ऑफ़ पॉलिटिक्स ‘ को भी समझना होगा। हालाँकि अखिलेश यादव जब मुख्यमंत्री बने आज़म ख़ान तब भी ताक़तवर रहे पर अखिलेश और आज़म के पर्दे के पीछे तालमेल न होने की बातें चर्चा में रहीं। वरिष्ठ पत्रकार प्रमोद गोस्वामी कहते हैं ‘ दरअसल अब ये ज़ाहिर हो चुका है कि आज़म ख़ान की राजनीतिक ज़मीन रामपुर में खिसक गई है।अखिलेश पहले भी उनके साथ ऊपरी तौर पर तो तालमेल बिठाए थे पर अंदर से उनको पसंद नहीं करते थे। क्योंकि उनका जो रवैया था वो उस समय युवा अखिलेश को कहीं से पसंद नहीं आता था। बाद में जब वो एक्सपोज़ हो गए यानी अपनी जौहर यूनिवर्सिटी को लेकर उनपर जो और जिस तरह से मुकदमे हुए उसमें वो हाशिये पर आते चले गए।’

रामपुर में राजनीतिक ज़मीन 

यूपी में बीजेपी सरकार बनने के बाद आज़म ख़ान के ड्रीम प्रोजेक्ट रामपुर की जौहर यूनिवर्सिटी को लेकर उनपर क़ानूनी शिकंजा कसता गया। एक के बाद एक मुकदमे होते चले गए। जौहर यूनिवर्सिटी के लिए ज़मीन क़ब्ज़ा करने, फ़र्ज़ी डॉक्युमेंट्स से लेकर बकरी चोरी तक का आरोप लग गया।आज़म पर छोटे-बड़े 139 मुकदमे हो गए। एमपी एमएलए कोर्ट से सज़ा होने के बाद विधायकी चली गई। पत्नी और बेटे को भी सज़ा हुई जो अब ज़मानत कर बाहर हैं। वहीं आज़म ख़ान अक्टूबर 2023 से सीतापुर जेल में बंद हैं।

इस बीच आज़म ख़ान सपा के बैनर पोस्टर से भी ग़ायब होते चले गए। 2024 के लोकसभा चुनाव में एक बार फिर अखिलेश आज़म ख़ान के पास पहुंचे। जब ये कहा गया कि जेल में बंद आज़म रामपुर से अपनी पसंद के उम्मीदवार चाहते हैं। हालाँकि आज़म के पुराने राजनीतिक शागिर्द और अब विरोधी खेमे में आए मोहिबुलाह नदवी को टिकट देकर अखिलेश ने एक तरह से आज़म की रामपुर में सियासी ज़मीन को चुनौती दी। नदवी जीत भी गए। यानि रामपुर के मुसलमानों ने आज़म का साथ न देकर अखिलेश यादव का साथ दिया। उसके बाद से आज़म और उनका परिवार हाशिये पर है।

नए मुस्लिम नेता 

इस बीच अखिलेश यादव ने न तो उनके पक्ष में कोई आंदोलन की बात की न ही कोई मुखर विरोध सामने आया। इस बीच सहारनपुर से कांग्रेस सांसद इमरान मसूद ने ये कहकर अखिलेश पर निशाना साधा कि सपा में मुस्लिम नेता सिर्फ़ दरी बिछाने के लिए हैं। लेकिन समाजवादी पार्टी में संभल के सांसद जियाउर्रहमान बर्क और क़ैराना की सांसद इकरा हसन जैसे नए चेहरे जगह पा चुके हैं। ऐसे में ये भी तय है कि अखिलेश नए अंदाज़ के मुस्लिम नेताओं पर भरोसा कर रहे हैं। वहीं आज़म पर इस तरह के मुकदमें हैं कि उनके  लिए कोई सियासी  रास्ता नहीं बचा है। इस बीच अब राजनीतक रूप से आज़म प्रभावी भी नहीं रहे। फ़िलहाल आज़म ख़ान जेल की सलाखों के पीछे खामोशी से अपने दिन गुज़ार रहे हैं।

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