क्यों थमा बंगाल का डेवलपमेंट फंड?, TMC की नाकामी या केंद्र सरकार की सियासी चाल?

पश्चिम बंगाल ने लगातार छह वर्षों तक अनिवार्य DISHA बैठकों को नज़रअंदाज़ किया और उपयोगिता प्रमाणपत्र (यूसी) जमा करने में विफल रहा, जिससे केंद्र को मनरेगा और आवास योजनाओं के फंड रोकने का आधार मिल गया।;

Update: 2025-08-31 16:59 GMT
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली पश्चिम बंगाल सरकार अक्सर भाजपा नेतृत्व वाले केंद्र पर विकास के लिए आवश्यक धन से वंचित करने का आरोप लगाती रही है।

पश्चिम बंगाल सरकार जहां बीजेपी नेतृत्व वाली केंद्र सरकार पर केंद्र प्रायोजित योजनाओं (CSS) के लिए फंड न जारी करने को लेकर हमलावर है, वहीं इसमें एक विडंबना भी छिपी है। तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) सरकार खुद ही CSS के दिशा-निर्देशों का पालन करने में नाकाम रही है। इनमें सबसे अहम है उन समितियों का गठन और संचालन जिनका उद्देश्य इन योजनाओं की निगरानी और प्रभावी क्रियान्वयन सुनिश्चित करना है।

अधिकारियों की स्वीकारोक्ति: केंद्र को मिल गया बहाना

कई राज्य सरकारी अधिकारी निजी तौर पर मानते हैं कि इस तरह की चूकें केंद्र को फंड रोकने का सुविधाजनक बहाना देती हैं। ग्रामीण विकास मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक पिछले छह वित्तीय वर्षों में पश्चिम बंगाल के किसी भी जिले में वैधानिक जिला विकास समन्वय और निगरानी समिति (DISHA) की बैठक नहीं हुई। देश के 776 जिलों में से सिर्फ बंगाल ऐसा राज्य है जहां 2020-21 से लेकर 6 जून 2025 तक एक भी DISHA बैठक नहीं हुई।

नियमों के मुताबिक DISHA बैठकें अनिवार्य

केंद्र सरकार के निर्देशों के अनुसार, प्रत्येक जिले में सांसद, विधायक, पंचायत और नगरपालिका प्रतिनिधि तथा जिला कलेक्टरों की भागीदारी से एक DISHA समिति बनाना अनिवार्य है। हर साल कम से कम चार बैठकें होनी चाहिए। रिपोर्ट ने यह भी उजागर किया कि बंगाल ने अब तक राज्य स्तर की DISHA समिति भी नहीं बनाई।

बीजेपी और कांग्रेस दोनों के सांसद-विधायकों ने यह मुद्दा कई बार उठाया, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला। ग्रामीण विकास मंत्रालय ने भी कई बार राज्य को याद दिलाया कि योजनाओं की अड़चनों की समीक्षा के लिए बैठकों का आयोजन जरूरी है।

केंद्र का रुख: अनुपालन के बाद ही फंड

केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने साफ किया कि यदि पश्चिम बंगाल सरकार आवश्यक अनुपालन पूरी करती है, तो फंड जारी करने पर विचार किया जाएगा। मंत्रालय का कहना है कि DISHA बैठकों का न होना केवल एक प्रक्रियागत चूक नहीं, बल्कि एक संरचनात्मक विफलता है, जो पारदर्शिता, समन्वय और सुधारात्मक शासन जैसे मूलभूत तंत्र को कमजोर करती है।

उपयोगिता प्रमाण पत्र (UCs) न सौंपने का मामला

DISHA बैठकें न कराने के अलावा राज्य सरकार पर उपयोगिता प्रमाण पत्र (UCs) न सौंपने का आरोप भी है। ग्रामीण विकास और गृह मंत्रालय दोनों ने फंड रोकने का यही कारण बताया है।

गृह मंत्रालय ने अगस्त में स्पष्ट किया कि पुलिस आधुनिकीकरण योजना के तहत पहले जारी फंड का UC न देने के कारण चालू वित्त वर्ष में अब तक कोई फंड जारी नहीं हुआ। राज्य के पास 12.5 करोड़ रुपये की अनखर्ची राशि बची है।

ग्रामीण विकास मंत्रालय ने एक संसदीय समिति को बताया कि पिछली किश्तों का UC न देने के कारण 2024-25 में प्रधानमंत्री आवास योजना-ग्रामीण (PMAY-G) के तहत पश्चिम बंगाल को 7,888.67 करोड़ रुपये की राशि अब तक जारी नहीं हो पाई।

टीएमसी का आरोप: केंद्र ने फंड को बनाया हथियार
टीएमसी का कहना है कि यह सिर्फ प्रक्रियागत मामला नहीं है, बल्कि केंद्र योजनाबद्ध तरीके से CSS अनुदानों को हथियार की तरह इस्तेमाल कर रहा है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा कि केंद्र करीब 1.7 लाख करोड़ रुपये की राशि रोककर “भाते मारार षड्यंत्र” (राज्य को उसकी बुनियादी जरूरतों से वंचित करने की साजिश) रच रहा है।

सबसे बड़ा खामियाजा गरीबों पर

इस गतिरोध का सीधा असर गरीबों पर पड़ा है। जुलाई 2025 के अंत तक राज्य में 2.5 करोड़ से अधिक पंजीकृत ग्रामीण श्रमिक हैं। मार्च 2022 से फंडिंग बंद होने के कारण तीन साल से उन्हें मनरेगा के तहत काम और मजदूरी नहीं मिल रही। अब तक राज्य सरकार ने अपने खजाने से करीब 30 लाख मजदूरों के बकाया का भुगतान किया है।

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