तमिलनाडु पुलिस के पास आधुनिक हथियारों की कमी, क्या सेंट्रल फंड की कमी जिम्मेदार?
संसद के आंकड़ों के अनुसार तमिलनाडु पुलिस बजट हासिल करने के लिए उपयोग प्रमाण पत्र प्रस्तुत करने में विफल रही। हालांकि डीजीपी का कहना है कि सभी मुद्दे सुलझा लिए गए हैं।;
तमिलनाडु पुलिस, जो देश की सबसे सक्षम पुलिस बलों में से एक मानी जाती है और कई हाई-प्रोफाइल मामलों को सुलझाने के लिए जानी जाती है, इस समय गंभीर फंडिंग संकट का सामना कर रही है। इसका सबसे बड़ा असर पुलिस बल की आधुनिकीकरण योजना पर पड़ा है।2020-21 से 2024-25 के बीच केंद्र सरकार द्वारा ‘आधुनिकीकरण योजना (MPF स्कीम)’ के तहत तमिलनाडु को ₹111 करोड़ मंजूर किए गए थे। यह योजना राज्य पुलिस बलों को आधुनिक तकनीक, हथियार और इन्फ्रास्ट्रक्चर से लैस करने के लिए बनाई गई है। लेकिन चौंकाने वाली बात यह है कि इसमें से केवल ₹54 लाख ही राज्य को जारी किए गए।यह जानकारी 1 अप्रैल को लोकसभा में गृहमंत्रालय द्वारा पूछे गए प्रश्न संख्या 4862 के उत्तर में दी गई।
फंड रुकने की वजह
लोकसभा में जवाब में कहा गया कि तमिलनाडु पुलिस ने उपयोग प्रमाणपत्र (UC) जमा नहीं किया, जो कि आगे की किश्त पाने के लिए जरूरी है। ₹54 लाख की राशि 2022-23 में जारी की गई थी, लेकिन उसके बाद UC न आने से 99.51% फंड अटका हुआ है। जमीनी हकीकत भी इसका समर्थन करती है। मदुरै के एक ग्रामीण थाने में तैनात 15 साल के अनुभवी सब-इंस्पेक्टर ने बताया, “हम पुराने उपकरणों से काम चला रहे हैं। न तो मॉडर्न सर्विलांस सिस्टम है और न ही पर्याप्त वाहन।”
APCO प्रोजेक्ट में देरी और भ्रष्टाचार के आरोप
एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने बताया कि फंड रुकने का कारण केवल UC न देना नहीं है। APCO प्रोजेक्ट (पुलिस कंट्रोल रूम के आधुनिकीकरण और चेन्नई में CCTV लगाने की योजना) में भारी देरी भी एक कारण है।प्रोजेक्ट जुलाई 2017 में ₹83.46 करोड़ में एक ठेकेदार को दिया गया था।सात महीने की देरी से उपकरण लगे, लेकिन फील्ड टेस्ट 2021 तक नहीं हुआ।उपकरण तब तक पुराने पड़ चुके थे।
2015 में खरीदे गए CCTV सिस्टम (₹14.37 करोड़) में भी स्पेक्ट्रम कवरेज की समस्या रही और ठेकेदार ने अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लिया। इसके बावजूद विभाग ने ₹7.18 करोड़ स्पेक्ट्रम चार्ज का भुगतान कर दिया।
DGP का जवाब
तमिलनाडु के डीजीपी शंकर जीवाल, IPS ने फंड के दुरुपयोग के आरोपों को खारिज किया। उनके मुताबिक MPF योजना के तहत ₹73.28 करोड़ का उपयोग हो चुका है, और UC केंद्र को भेजी गई है।₹49.15 करोड़ का APCO प्रोजेक्ट तकनीकी समस्याओं और कोर्ट केस के चलते रुका।वैकल्पिक योजना के तहत ₹31.08 करोड़ में स्पेशल पर्पज़ व्हीकल्स खरीदे जा रहे हैं।DMR प्रोजेक्ट में भी फंड का आंशिक उपयोग हुआ है।उन्होंने कहा कि अब तक ₹80 करोड़ जारी किए जा चुके हैं और जल्द ही ₹150 करोड़ और मिलेंगे।
जमीनी स्तर पर विरोधाभास
हालांकि, जमीनी स्तर पर पुलिसकर्मी जैसे कि इंस्पेक्टर कार्तिक का कहना है, “हम फंड और योजनाओं की खबरें सुनते हैं, लेकिन हकीकत में अभी तक कुछ नहीं बदला।”महिला कॉन्स्टेबल मीना (बदला हुआ नाम) ने कहा, “हमें न तो सही वॉशरूम की सुविधा है और न ही कामकाजी माताओं के लिए सपोर्ट।”
महिला कल्याण और साइबर अपराध
निर्भया फंड से ₹8 करोड़ महिलाओं की सहायता डेस्क के लिए आवंटित हुए हैं।800 लैपटॉप और दो-पहिया वाहन खरीदे जा चुके हैं।साइबर क्राइम से निपटने के लिए आधुनिक उपकरणों की आवश्यकता को भी DGP ने स्वीकार किया है।
ब्यूरोक्रेसी और नई चुनौतियां
एक नीति विश्लेषक के अनुसार, यह संकट राज्य विभागों के बीच समन्वय की कमी और जवाबदेही के अभाव का नतीजा है। वहीं, डीजीपी का कहना है कि देरी की मुख्य वजह कानूनी अड़चनें और नई फंड ट्रांसफर प्रणाली (SNA-SPARSH) है, जिसके लिए अभी MHA की मंजूरी का इंतजार है।तुलना में आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों ने MPF फंड्स का बेहतर उपयोग किया है, जबकि तमिलनाडु का 0.49% डिस्बर्समेंट रेट बेहद कम है।