चार घंटे बाद भी नहीं बरसे बादल, दिल्ली में क्लाउड सीडिंग ट्रायल नाकाम !
कानपुर IIT और दिल्ली सरकार का दावा फेल, AAP ने उड़ाया BJP का मज़ाक.
By : Abhishek Rawat
Update: 2025-10-28 17:46 GMT
Cloud Seeding : दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण से राहत दिलाने के लिए मंगलवार को कृत्रिम बारिश (क्लाउड सीडिंग) कराने के लिए एक नहीं बल्कि दो ट्रायल किये गए, लेकिन दोनों ही फुस्स साबित हुए। माना ये जा रहा था कि क्लाउड सीडिंग के बाद चार घंटे के अन्दर अन्दर बारिश आणि चाहिए लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इससे पहले भी 23 अक्टूबर को बुराड़ी में पहला ट्रायल किया जा चुका है। क्लाउड सीडिंग के तीन प्रयास फुस्स होने के बाद से ये मुद्दा राजनितिक बहस का रंग ले चुका है। विपक्ष में मौजूद आम आदमी पार्टी ने अब सत्ता रूढ़ भाजपा का मजाक भी बनाना शुरू कर दिया है। ज्ञात रहे कि दिवाली के बाद से राजधानी की हवा बेहद खराब श्रेणी में बनी हुई है।
दो बार की गयी क्लाउड सीडिंग
मंगलवार दोपहर को कानपुर IIT की देखरेख में ‘सेसना’ विमान ने बुराड़ी, मयूर विहार और खेकड़ा जैसे इलाकों के ऊपर करीब 6 हजार फीट की ऊंचाई पर सिल्वर आयोडाइड के छिड़काव के जरिए क्लाउड सीडिंग की गयी। वैज्ञानिकों ने उम्मीद जताई थी कि 4 घंटे के भीतर बारिश होगी, लेकिन शाम तक न तो बादल बरसे और न ही प्रदूषण से राहत मिली।
दिल्ली सरकार ने क्या कहा
पर्यावरण मंत्री मनजिंदर सिंह सिरसा ने जानकारी दी कि आज आईआईटी कानपुर की टीम ने ‘सेसना’ विमान के माध्यम से खेकड़ा, बुराड़ी, नॉर्थ करोल बाग, मयूर विहार, सड़कपुर, भोजपुर और आसपास के इलाकों में दो सफल ट्रायल किए। हमारा उद्देश्य यह समझना है कि दिल्ली की मौजूदा नमी की स्थिति में कितनी कृत्रिम वर्षा संभव है। हर ट्रायल से हमें विज्ञान के माध्यम से नई दिशा मिलेगी, सर्दियों के लिए भी और आने वाले वर्षों के लिए भी।
ऑपरेशन का विवरण
मनजिंदर सिंह सिरसा ने जानकारी दी कि प्रत्येक उड़ान में 8 केमिकल फ्लेयर छोड़े गए, जो लगभग 2 से 2.5 मिनट तक सक्रिय रहे। ऑपरेशन लगभग डेढ़ घंटे तक चला और उस दौरान आर्द्रता 15–20% के बीच रही। दोनों उड़ानें कानपुर और मेरठ एयरफील्ड से संचालित की गईं। फ्लेयर में विशेष मिश्रण का उपयोग किया गया जो बादलों में नमी को बढ़ाकर वर्षा की प्रक्रिया को प्रेरित करता है।
प्रारंभिक परिणाम
दिल्ली सरकार की तरफ से आईआईटी कानपुर और दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (DPCC) के प्रारंभिक आंकड़ों को लेकर दावा किया गया कि
दिल्ली-नोएडा बॉर्डर पर 0.1–0.2 मिमी की हल्की वर्षा दर्ज की गई। पीएम2.5 और पीएम10 स्तरों में मापनीय गिरावट देखी गई।
स्थान पीएम2.5(पहले) पीएम2.5(बाद में) पीएम10 (पहले) पीएम10 (बाद में)
मयूर विहार 221 207 207 177
करोल बाग 230 206 206 163
बुराड़ी 229 203 209 177
दावा ये भी किया गया कि गति कम होने के बावजूद यह गिरावट क्लाउड सीडिंग के प्रभाव से हुई, जिससे वायुमंडल में मौजूद धूलकण नीचे बैठ गए।
सिरसा ने कहा कि प्रारंभिक परिणाम उत्साहजनक हैं। यह भारत में शहरी प्रदूषण नियंत्रण के लिए सबसे बड़ा वैज्ञानिक कदम है। आगे के विश्लेषण के आधार पर आने वाले हफ्तों में और ट्रायल किए जाएंगे।
वैज्ञानिक विश्लेषण और आगामी कदम
आईआईटी कानपुर की टीम सभी डेटा का वैज्ञानिक विश्लेषण कर रही है। रिपोर्ट के निष्कर्षों के आधार पर अगले चरण की योजना बनाई जाएगी, जिसमें फरवरी 2026 तक और उड़ानें शामिल की जा सकती हैं। दिल्ली सरकार ने पूरी प्रक्रिया को पारदर्शी, विज्ञान-आधारित और बेहतर परिणाम वाला बताया है।
पर्यावरण मंत्री का संदेश
मनजिंदर सिंह सिरसा ने दिल्ली की जनता को सन्देश देते हुए कहा कि दिल्ली ने प्रदूषण से लड़ाई में विज्ञान को अपना हथियार बनाया है। हम हर प्रयोग से सीखते हुए राजधानी को स्वच्छ और हरित बनाने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता जी के नेतृत्व में दिल्ली सरकार नागरिकों को स्वच्छ हवा देने के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है।
आप का तंज
इस बीच, AAP नेता सौरभ भारद्वाज ने एक वीडियो साझा कर इस प्रक्रिया पर तंज कसा। उन्होंने कहा कि 4:30 बज चुके हैं,बारिश नहीं हुई है। बीजेपी के फर्जीवाड़े से परेशान होकर इंद्र देवता ने भी बारिश नहीं होने दी। AAP ने इसे एक “फर्जीवाड़ा” बताया और कहा कि बीजेपी बारिश का श्रेय अपने नाम करने की कोशिश में थी।
सौरभ भरद्वाज ने अपने X हैंडल पर इस विषय में कई ट्वीट भी किये और दिल्ली की भाजपा सरकार पर जमकर हमला बोला।
क्या है क्लाउड सीडिंग?
क्लाउड सीडिंग एक वैज्ञानिक तकनीक है, जिसमें सिल्वर आयोडाइड, पोटेशियम आयोडाइड या सूखी बर्फ (ड्राई आइस) का उपयोग कर कृत्रिम रूप से बारिश कराई जाती है। रॉकेट या विमान से इन रसायनों को बादलों में छोड़ा जाता है, जिससे जलवाष्प इनके चारों ओर जमा होकर बूंदों में बदल जाती है और बारिश होती है। यह तरीका चीन, अमेरिका और UAE जैसे देशों में भी अपनाया जाता है।