यूपी में अब सत्ताधीश और खेवनहार, संदेश-दबाव का खेल शुरू
यूपी में विधानसभा उप चुनाव के बीच इस समय लखनऊ की सड़कों पर जमकर पोस्टर लग रहे हैं।किसी को 27 का सत्ताधीश तो किसी को खेवनहार बताया जा रहा है।;
UP Assembly Elections 2024: गठबंधन तो चाहते हैं लेकिन सीट पर समझौता करना गंवारा नहीं। हम योगी और मोदी की नीतियों से देश को राहत पहुंचाना चाहते हैं। लेकिन सीट की लड़ाई में किसी तरह का समझौता नहीं कर सकते। महाराष्ट्र की सियासत में जब महाविकास अघाड़ी ने सपा की उम्मीदों पर पानी फेर दिया यानी पांच सीट देने से जब पीछे हट गए तो समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने कहा कि राजनीति में त्याग की जगह नहीं है। लेकिन वो अपनी खुद की बात में फंसते नजर आते हैं।
अभी दूर है 27 लेकिन सियासी शोर शुरू
मसलन हरियाणा के चुनावी नतीजों के बाद वो यूपी विधानसभी की 10 में से 6 सीटों के लिए प्रत्याशी का ऐलान करते हैं जबकि वो कांग्रेस की पांच सीटों की डिमांड से वाकिफ थे. खैर यूपी में उपचुनाव के लिए इंडिया गठबंधन या कांग्रेस के साथ गठबंधन सिर्फ कागजों में हैं। इन सबके बीच लखनऊ में समाजवादी पार्टी का एक पोस्टर नजर आया जिस पर लिखा था 24 में बरसा जनता का आशीष, दीवारों पर लिखा है कौन होगा सत्ताईस का सत्ताधीश। अब पोस्टर लगाने का अधिकार, सपने देखने का अधिकार हर किसी को है। लेकिन सवाल तब उठने लगता है जब एक तरफ कोई राजनीतिक दल शब्दों के जरिए सत्तासीन दल को हटाने की बात तो करता है लेकिन साधन जिसके जरिए वो अपने लक्ष्य को हासिल करने के बारे में सोचता है उसे साधा करने से कतराता है।
गठबंधन नहीं पार्टियों का चुनाव
अब यूपी में 9 सीटों के लिए जो विधानसभा उप चुनाव होने जा रहे हैं वो सिर्फ कहने के लिए इंडिया और एनडीए गठबंधन के बीच में है। हकीकत में यह लड़ाई बीजेपी और सपा के बीच में है। सपा ने अपने सहयोगी को एक भी सीट पर लड़ने के लिए काबिल नहीं माना। जिस सीट पर जीत के लिए काबिल माना वहां कांग्रेस का ट्रैक रिकॉर्ड यह था कि 40 और 30 साल से जीत नसीब नहीं हुई। वहीं हाल एनडीए का भी है। बीजेपी ने मीरापुर की सीट जयंत चौधरी के खाते में डाल दी। लेकिन उसकी नजर में निषाद पार्टी के अध्यक्ष संजय निषाद की हैसियत हल्की लगी तभी सिर्फ दो सीट अंबेडकर नगर की कटेहरी और मिर्जापुर की मझवां सीट पर उनका दावा हवा हवाई हो गया।
लखनऊ की सड़कों पर जब दिखे पोस्टर
अब सियासत में उम्मीदों की उम्र और संभावनाएं बिल्कुल खत्म नहीं होती लिहाजा राजनीतिक दल संकेतों के जरिए भी संदेश देने का काम शुरू कर देते हैं। मसलन लखनऊ की सड़क पर संजय निषाद से जुड़े दो पोस्टर नजर आए। एक पोस्टर पर लिखा था सत्ताईस के खेवनहार... यानी कि 2024 के उपचुनाव में हाथ कुछ नहीं लगा लेकिन नजर 2027 के चुनाव पर जा गड़ी। अगर संजय निषाद को सत्ताईस का खेवनहार बताया जाता है तो इशारों में वो अपने मल्लाह समाज का जिक्र कर रहे हैं यह वही समाज है जिसने मर्यादा पुरुषोत्तम राम को गंगा पार कराया था। यानी की संकेतों में वो कहते नजर आ रहे हैं कि बीजेपी को क्यों उसे तवज्जो देनी चाहिए।
यही नहीं संजय निषाद का एक और पोस्टर लखनऊ की सड़क पर नजर आया। यह बीजेपी और समाजवादी पार्टी दोनों के दफ्तरों के बाहर लगे थे। इस पर पर लिखा था सत्ताईस का नारा निषाद है हमारा. यहां बता दें कि 2024 वाले उपचुनाव के बाद 2027 में ही अहम चुनाव होना है लिहाजा 27 पर जोर अधिक है। अब सत्ताईस का नारा, निषाद है हमारा के जरिए क्या वो एक तरफ दबाव और दूसरे को मौका देने का इशारा तो नहीं कर रहे। इसे मामले में सियासत के जानकार कहते हैं राजनीति में कुछ नहीं मिला तो भी बहुत कुछ मिला और बहुत कुछ मिला लेकिन कुछ भी नहीं मिला का फॉर्मूला हमेशा काम में आता है।
संदेश और दबाव दोनों
सियासत के जानकार कहते हैं कि सत्ता में एक पद पाकर बहुत कुछ वो हासिल नहीं कर सकते। उनके पास कम से कम इतना संख्या बल तो हो जिसके दम पर वो किसी भी दल से सख्त तरीके से बारगेन कर सकें। 2024 के उपचुनाव को वो बहुत अच्छी तरह से समझ रहे हैं कि आगे क्या हो सकता है। फर्ज करिए कि बीजेपी उपचुनाव वाली सभी 9 सीटों में से अगर 7 सीट जीतने में कामयाब हो जाती है तो स्वाभाविक सी बात है कि 2027 के चुनाव में उसके पास अपर हैंड होगा। अगर चुनाव में बेहतर प्रदर्शन नहीं कर पाती है उस वक्त गठबंधन दलों के पास दबाव बनाने का मौका मिल सकता है। संजय निषाद को यह बात समझ में आ रही है कि असली मामला 2027 का है लिहाजा उनके समर्थकों की तरफ से कराई जाने वाली पोस्टरबाजी सिर्फ मौके को निचोड़ने की तरह है।