पश्चिमी यूपी में वोट का खेल: SIR, पंचायत चुनाव और बदली चुनावी चालें

यूपी में SIR के बीच शहरी वोटर्स का ग्रामीण इलाकों की ओर ट्रांसफर चर्चा में है। विपक्ष इसे बीजेपी की रणनीतिक चूक बता रहा है, जबकि बीजेपी सफाई दे रही है।

By :  Lalit Rai
Update: 2025-12-20 03:47 GMT

SIR in Western Uttar Pradesh:  देश के कुल 12 सूबों में स्पेशल इंटेंसिव रिविजन या वोटर सत्यापन की प्रक्रिया जारी है। उत्तर प्रदेश उनमें से एक है। वोटर सत्यापन के मुद्दे पर समाजवादी पार्टी और कांग्रेस का कहना है कि केंद्र और यूपी की सरकार चुनाव आयोग को औजार की तरह इस्तेमाल कर रही है। हालांकि बीजेपी का मानना है कि मुद्दाहीन विपक्ष के सामने कहने के लिए कुछ बचा ही कहां है। इन सबके बीच यूपी में शहरी इलाकों से ग्रामीण इलाकों में वोट शिफ्टिंग का मुद्दा चर्चा में है। विपक्ष का यह कहना है कि इस दफा बीजेपी खुद की जाल में फंस गई है। जिस तरह से मेरठ, मुजफ्फरनगर, लखनऊ, प्रयागराज में वोटर्स ने अपने नाम को ग्रामीण इलाकों में शिफ्ट कराया है उसके खौफ से बीजेपी उबर नहीं पा रहा है। ऐसे में द फेडरल देश की टीम ने पश्चिमी यूपी के बागपत, मुजफ्फरनगर और मेरठ का दौरा किया और जमीनी स्थिति को समझने की कोशिश की।

'बीजेपी से आगे निकली सपा'

मुजफ्फरनगर में समाजवादी पार्टी के कद्दावर नेता और 2017 के चुनाव में 86 हजार मत पाने वाले प्रमोद त्यागी कहते हैं कि बीजेपी भले ही हर चुनाव को जीतने का दावा करती हो। इस दफा वोटर सत्यापन का दांव उलटा पड़ा है। जिस तरह से नगरी इलाकों से मतदाताओं ने ग्रामीण इलाकों की तरफ रुख किया है उससे उनकी पूरी गणित गड़बड़ा चुकी है। सीएम योगी आदित्यनाथ को यह कहना पड़ गया कि बीजेपी के कार्यकर्ता सुस्त ना पड़ें और जमीन पर उतर कर देखें कि क्या हो रहा है। अपने मतदाताओं के नाम को जोड़ने की दिशा में आगे बढ़ें। प्रमोद त्यागी के इस जवाब पर हमारा सवाल था कि यह कैसे पता चलेगा कि शहरी इलाकों के जो वोटर्स हैं उन सबका नाता बीजेपी से है। इस सवाल के जवाब में वो कहते हैं कि आमतौर पर नगरीय इलाकों में बीजेपी की जीत होती रही है। ऐसे में आप सहज अनुमान लगा सकते हैं।

प्रमोद त्यागी के इस विश्लेषण को मेरठ जिले के समाजवादी नेता और अखिलेश यादव सरकार में मंत्री रहे एडवोकेट राजपाल सिंह आंकड़ों के जरिए अपनी बात रखी। राजपाल सिंह ने कहा कि मेरठ जनपद में विधानसभा की कुल सात सीटें हैं। अभी तक के जो आंकड़े सामने आए हैं उसके हिसाब में इन सभी विधानसभाओं में कुल साढ़े छह लाख वोट कटे हैं जिसमें दो शहरी विधानसभाएं हैं, शेष विधानसभाओं की नगर पंचायतें और नगरपालिका शामिल हैं। राजपाल सिंह ने कहा कि साढ़े छह लाख वाला आंकड़ा तो एसआईआर का आंकड़ा। जहां तक उनकी और पार्टी की जानकारी है उसके मुताबिक इस संख्या में और इजाफा हो सकता है। ऐसे में सवाल यह था कि क्या बीजेपी की तरफ से कहीं चूक हो गई। इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि जो अपने आपको चाणक्य कहते हैं अब उनके सामने चुनौती है। यह बात सच है कि बीजेपी के नेता यह नहीं भूले कि साल 2026 के मध्य में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव होने हैं। लेकिन उन्हें इस बात का अंदेशा नहीं था कि शहरी इलाकों के मतदाता अपने मत को ट्रांसफर कराएंगे। दूसरी बात यह है कि उत्तर प्रदेश में समाजवादी के पीडीए प्रहरी काफी सजग रहे और उसी का नतीजा है कि बीजेपी के नेताओं में खलबली है और हर एक दिन मीटिंग कर जायजा ले रहे हैं कि नुकसान कम से कम हो।

पश्चिमी यूपी में बीजेपी का प्रदर्शन
बीजेपी (BJP) ने आगरा, मथुरा, गाजियाबाद और गौतम बौद्ध नगर जैसे जिलों में सभी सीटों पर जीत हासिल की थी।

सपा गठबंधन ने मुरादाबाद, शामली में सभी सीटें जीतीं थीं।

बीजेपी जाट बाहुल्य शामली जिले की सभी तीन सीटों पर हार गई।

बीजेपी को मुरादाबाद की सभी छह सीटों, रामपुर और संभल, दोनों जिलों की चार में से तीन सीटों पर भी हार का सामना करना पड़ा था।

2017 में वेस्ट यूपी के 24 जिलों की 126 सीटों में से बीजेपी ने 100 सीटें जीती थीं. 20200 में 85 पर जीत

2022 में सपा और रालोद ने 126 सीटों में से 41 पर जीत दर्ज की। जयंत चौधरी की अगुवाई वाली रालोद, जो 2017 के चुनावों में एक सीट पर सिमट गई थी, इस बार 33 सीटों पर लड़ी और उनमें से आठ पर जीत हासिल की.

वेस्ट यूपी में 24 जिले

ये 24 जिले हैं आगरा, मथुरा, अलीगढ़, मेरठ, गाजियाबाद, बुलंदशहर, बागपत, हापुड़, मुजफ्फरनगर, शामली, गौतम बुद्ध नगर, अमरोहा, बदायूं, बरेली, बिजनौर, मुरादाबाद, रामपुर, सहारनपुर, संभल, शाहजहांपुर, हाथरस, एटा, कासगंज और फिरोजाबाद।

बीजेपी का जवाब

समाजवादी पार्टी के इन आरोपों का जवाब देते हुए पश्चिमी यूपी के क्षेत्रीय अध्यक्ष पश्चिमी यूपी के क्षेत्रीय अध्यक्ष सत्येंद्र सिसोदिया ने कहा कि SIR प्रक्रिया के शुरुआती दौर में कहीं हम सुस्त रहे। लेकिन अब वैसी बात नहीं है। सिसोदिया कहते हैं कि यह भी बात सच है कि शहरी इलाकों में रह रहे लोग पंचायत चुनाव की वजह से अपने वोट को ट्रांसफर करा रहे हैं। लेकिन यह कह देना कि सभी वोटर्स बीजेपी से संबंधित है। हमारा सवाल था कि आखिर क्या वजह है कि शहरी इलाकों के मतदाता अपने मत को शिफ्ट करा रहे हैं। इस सवाल के जवाब में उन्होंने दो बड़ी वजह बताई। पहला कारण तो यह है कि यूपी में पंचायत चुनाव होने जा रहे हैं। कहीं ना कहीं शहरी इलाकों में जो लोग बसे हैं उनका नाता तो गांव से ही है। लोकतांत्रिक प्रक्रिया का हर कोई हिस्सा हो चाहता है। किसी कि चाहत ग्राम प्रधान, बीडीसी सदस्य और जिला पंचायत सदस्य बनने की है। अब एसआईआर कोई भी शख्स एक ही जगह वोट कर सकता है, लिहाजा चुनाव लड़ने के इच्छुक लोग और उनके समर्थक अपने मत को ट्रांसफर करा रहे हैं। दूसरा सबसे बड़ा कारण यह है कि लोगों को लगता है कि अगर वो गांव से नहीं जुड़ेंगे तो हो सकता है कि उन्हें जमीन जायदाद संबंधी दिक्कतों का सामना करना पड़े। 

सत्येंद्र सिसोदिया ने कहा कि देखिए विपक्ष के लोगों को एसआईआर में खोट ही खोट दिखता है। पहले तो यह कहते रहे कि बीजेपी जानबूझकर उनके मतदाताओं के नाम को कटवाने का काम कर रही है और अब यह कह रहे हैं कि इस प्रक्रिया से सबसे अधिक नुकसान तो बीजेपी का हो होगा। ऐसे में आप समझ सकते हैं कि विपक्ष का विरोध किस तरह का है। दरअसल विपक्ष में ही खोट है। अगर हमारा नुकसान हो रहा है तो हम इस काम को क्यों करते। हकीकत यह है कि हम देश के बारे में सोचते हैं। पार्टी चाहती है कि प्रदेश की मतदाता सूची इस तरह की हो जो पूरी तरह से स्वच्छ हो। दूसरी बात यह है कि हम अपने आधार को तेजी से बढ़ा रहे है। जो लोग पहले कहा करते थे कि बीजेपी का मतलब शहरी पार्टी अब उस टैग से ना हम सिर्फ निकल चुके हैं बल्कि हमारा भौगोलिक और सामाजिक विस्तार में बढ़ोतरी हुई है। 

'विपक्ष में रहते हुए सब खराब'

सियासी तर्क और वितर्क के बीच अखिल भारतीय जाट संघर्ष समिति के नेशनल कोऑर्डिनेटर यशपाल मलिक (मुजफ्फरनगर जिले के रहने वाले) का कहना है कि देखिए एसआईआर का मुद्दा बेमानी है। उन्होंने कहा कि साल 2012 के चुनाव से पहले (उस वक्त यूपी में मायावती शासन में थी और उस वक्त पश्चिमी यूपी की ज्यादातर सीट बीएसपी के कब्जे में थी) गौतमबुद्धनगर, गाजियाबाद, मेरठ और मुजफ्फरनगर की कुछ चुनिंदा सीटों पर वोटर सत्यापन जैसा काम किया गया था। उस समय भी समाजवादी पार्टी और बीजेपी की तरफ से आवाज उठाई गई थी। कहने का अर्थ यह है कि इस मुद्दे पर सभी राजनीतिक दलों का माइंडसेट एक जैसा है। कोई दल जब सत्ता में होता है तो हर एक एक्शन उनकी नजर में जायज और विपक्ष में आते ही नाजायज लगने लगता है। 

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