प्रकृति या इंसान? उत्तराखंड में आपदाओं का असली कारण
देवभूमि उत्तराखंड में बाढ़, भूस्खलन, ग्लेशियर टूटने और बादल फटने की घटनाएं बढ़ रहीं हैं। वैज्ञानिक व मानवीय कारणों से तबाही लगातार जारी है।;
Uttarkashi Cloudburst Reason: उत्तराखंड को देवभूमि के नाम से जाना जाता है, बर्फीली चोटियों, हरी-भरी घाटियों और पवित्र नदियों गंगा, यमुना, भागीरथी, अलकनंदा और ऋषिगंगाके लिए प्रसिद्ध है। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में यही नदियां और पहाड़ जो कभी जीवनदायिनी थे, अब विनाश की वजह बनते जा रहे हैं।बाढ़, भूस्खलन, बादल फटना और ग्लेशियर टूटने जैसी घटनाएं यहां आम होती जा रही हैं। आखिर उत्तराखंड में आपदाओं का यह सिलसिला क्यों नहीं रुक रहा? क्या यह प्रकृति का प्रकोप है या इंसान की भूल? इस विषय पर द फेडरल देश से स्काइमेट के वाइस प्रेसिडेंट महेश पलावत ने खास बातचीत की। उन्होंने बादल फटने की घटना के पीछे की मूल वजह को बताया। इसके साथ ही इस तरह की आपदा कम से कम दस्तक दे उसके बारे में भी विस्तार से जानकारी दी।
आपदा के दौर में उत्तराखंड: कुछ अहम घटनाएं
उत्तराखंड में प्राकृतिक आपदाएं नई नहीं हैं, लेकिन उनकी आवृत्ति और तीव्रता हाल के वर्षों में चिंताजनक रूप से बढ़ी है।
2013 - केदारनाथ त्रासदी, भारी बारिश और ग्लेशियर पिघलने से मंदाकिनी नदी में बाढ़ आई। हजारों लोगों की जान गई, व्यापक तबाही हुई।
2021 - चमोली हादसा, ऋषिगंगा और धौलीगंगा में अचानक बाढ़ से तपोवन परियोजना तबाह हो गई।
2023 - भूस्खलन व बाढ़, मानसून के दौरान अनेक क्षेत्रों में सड़कों, पुलों और बस्तियों को नुकसान पहुँचा।
तबाही के पीछे की वजह
भूगर्भीय अस्थिरता और हिमालय की बनावट
हिमालय एक युवा पर्वत श्रृंखला है और टेक्टोनिक प्लेटों की टक्कर से लगातार ऊँचा हो रहा है। उत्तराखंड में बार-बार 3.0–4.0 तीव्रता के भूकंप दर्ज होते हैं, जो भविष्य के बड़े भूकंप का संकेत हैं। इससे चट्टानें कमजोर होती हैं और भूस्खलन का खतरा बढ़ता है।
ग्लेशियरों का तेजी से पिघलना
ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण उत्तराखंड के ग्लेशियर तेजी से सिकुड़ रहे हैं।अचानक बाढ़ और ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट जैसी घटनाएं बढ़ रही हैं।
मानवीय हस्तक्षेप
अनियंत्रित विकास और पर्यावरणीय दोहनअनियोजित निर्माण, पहाड़ों में सड़कों और सुरंगों के लिए विस्फोट और ड्रिलिंग से चट्टानें कमजोर होती हैं। बांध और जलविद्युत परियोजनाएं: नदियों का प्रवाह बाधित होता है, जिससे बाढ़ और मिट्टी कटाव बढ़ता है। तीर्थ स्थलों पर अत्यधिक भीड़ से कचरा, शोर, और वनों पर दबाव बढ़ता है।
बदलता मौसम
उत्तराखंड में मॉनसून बारिश की तीव्रता में 20-30% की वृद्धि हुई है। गर्म वातावरण अधिक नमी रोकता है, जिससे अचानक भारी बारिश या क्लाउडबर्स्ट की संभावना बढ़ती है।केदारनाथ आपदा के पीछे मंदाकिनी नदी में अचानक आई बाढ़ थी।
क्या हो सकते हैं समाधान?
भूकंप व पर्यावरण अनुकूल निर्माण की योजना बनाएं। छोटे, टिकाऊ बांधों को प्राथमिकता दी जाए।
सैटेलाइट और रिमोट सेंसिंग तकनीक से ग्लेशियरों पर लगातार नजर रखी जाए।
तीर्थ स्थलों पर पर्यटकों की संख्या सीमित हो और सख्त कचरा प्रबंधन कानून लागू हों।
अवैध कटाई रोकी जाए और बड़े स्तर पर वृक्षारोपण हो ताकि मिट्टी कटाव और भूस्खलन रुके।
स्थानीय जागरूकता और आपदा प्रबंधन प्रशिक्षण,स्थानीय निवासियों को प्रशिक्षित किया जाए ताकि आपदा की स्थिति में वे तत्काल प्रतिक्रिया दे सकें।