बर्बादी के बाद भी जिंदा है उम्मीद, वायनाड के चूरलमला की जमीनी हकीकत

वायनाड के चूरलमला और मुंडक्कई में हुए भीषण भूस्खलन को एक साल बीत गया, लेकिन राहत अधूरी, ज़ख्म गहरे और पुनर्वास की राह अब भी लंबी है।;

Update: 2025-07-30 03:29 GMT
एक मॉडल घर का निर्माण कार्य लगभग पूरा होने वाला है, और सरकार का लक्ष्य मौसम संबंधी देरी के बावजूद दिसंबर तक सभी घरों का निर्माण पूरा करना है। | फोटो साभार: पीआरडी, केरल

केरल के वायनाड ज़िले में चूरलमला और मुंडक्कई की धरती अचानक फटी और भारी बारिश के बीच तेज़ी से ढलानें ढहने लगीं। देखते ही देखते कीचड़ की विशाल लहरें घरों, चाय बागानों, मस्जिदों और दुकानों को निगल गईं। एक ही रात में परिवार के परिवार मिट गए। कुछ शव आज तक नहीं मिल पाए। अगली सुबह जो बचे थे, वे मलबे के मैदान में भटकते मिले। शव बिखरे पड़े थे, और अज्ञात अवशेषों को स्थानीय स्वास्थ्य केंद्र में दर्ज किया गया। कभी उत्सवों से गुलजार रही गलियां अब कीचड़ और सन्नाटे से भरी थीं।

इस तबाही में 298 से अधिक लोगों की मौत, सैकड़ों घायल और दर्जनों लापता हुए। छोटे-छोटे गांवों से हज़ारों लोग विस्थापित हो गए। एक साल बीतने के बाद भी दर्द वैसा ही बना हुआ है। चूरलमला, मुंडक्कई और पंचिरीमट्टम अब भूतहा गांव बन चुके हैं। वीरान, सुनसान और जैसे वक्त ने उन्हें भुला दिया हो।

गिरावट के बाद भी उम्मीद बाकी है

एक साल पहले, जब 'द फेडरल' ने चूरलमला की 62 वर्षीय फातिमा से बात की थी, तो वह कहती थीं कि उन्हें सरकार से जो भी मिले, वह स्वीकार करना होगा। अब जबकि पुनर्वास परियोजना में देरी हो रही है, लेकिन एक घर का वादा अब भी कायम है और फातिमा खामोश उम्मीद के साथ इंतज़ार कर रही हैं।

फातिमा ने बताया ज़िंदगी बहुत कठिन रही। किराए के मकान में रह रही हूं, जो मेरे गांव से बहुत दूर है। सरकार से मिलने वाला किराया भी नियमित नहीं रहा,” । सबसे बड़ी मुश्किल भूस्खलन के बाद बेरोज़गारी थी। मैं खुद भी बीमार रही। ये मेरे जीवन का सबसे मुश्किल साल रहा।

2024 के अंत तक, सरकार ने मृतकों के परिजनों को ₹8 लाख मुआवजा, ₹6,000 मासिक किराया सहायता, और ₹9,000 वेतन सहायता (दो सदस्यों तक) देने की घोषणा की। साथ ही, कलपेट्टा के पास एलस्टोन एस्टेट में पुनर्वास टाउनशिप में शामिल करने का वादा भी किया। हालांकि एस्टेट प्रबंधन द्वारा भूमि अधिग्रहण को अदालत में चुनौती देने से परियोजना में देरी हुई, फिर भी सरकार ने अंततः एलस्टोन एस्टेट में राज्य संचालित हाउसिंग प्रोजेक्ट शुरू कर दिया।

अब भी अधूरी है छत की तलाश

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, 1,662 विस्थापितों के लिए 410 घर बनाए जा रहे हैं। मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन द्वारा 27 मार्च को शिलान्यास के पांच महीने बाद, मॉडल हाउस अब लगभग तैयार है।हर घर 1,000 वर्गफुट में एक मंज़िला होगा, जिसमें एक मास्टर बेडरूम, दो अतिरिक्त कमरे, बैठक, स्टडी, डायनिंग एरिया, किचन, स्टोर और एक सिट-आउट होगा। भविष्य में एक और मंजिल जोड़ने की भी संभावना रहेगी।

यह टाउनशिप केवल आवास नहीं, बल्कि संपूर्ण जीवन व्यवस्था के रूप में तैयार हो रही है। स्वास्थ्य केंद्र, आंगनवाड़ी, बाज़ार, कम्युनिटी सेंटर, मेडिकल सुविधाएं, दुकानें, खेल का मैदान, पुस्तकालय, ओपन थिएटर और पार्किंग जैसी सुविधाएं शामिल होंगी।


(2024 के भूस्खलन के बाद चूरलमला का एक दृश्य।)

 जो लोग इस सरकारी योजना में शामिल नहीं होना चाहते थे, उन्हें ₹15 लाख की आर्थिक सहायता दी गई ताकि वे खुद ज़मीन खरीदकर घर बना सकें। फिर भी 90% से अधिक लोग अब भी किराए के मकानों में हैं, कई दोगुना किराया चुका रहे हैं। कुछ लोगों को मदद इसलिए नहीं मिली क्योंकि उनके घर किराए के थे या निर्माणाधीन थे।

राहत से वंचित लोग

50 वर्षीय प्रसांत, एक पूर्व बागान मज़दूर, बताते हैं:“सरकार ने मुझे सहायता सूची से बाहर रखा। मुझे ₹6 लाख जुटाकर अरिपेट्टा में ज़मीन खरीदनी पड़ी। कुछ भले लोगों की मदद से अब घर बन रहा है। मेरी पत्नी आज भी रोती है। मुझे काउंसलिंग लेनी पड़ी। तीन नौकरियां करता हूं ताकि घर चल सके। हम अब भी सरकार से मान्यता का इंतज़ार कर रहे हैं।”

चूरलमला के 39 वर्षीय प्रदीप कहते हैं “₹6,000 किराया छोड़कर मुझे और कुछ नहीं मिला। हमारे इलाके में 9 घर थे, लेकिन मेरे को छोड़कर बाकी सभी की सूची में नाम था। मैंने मंत्री तक शिकायत की, लेकिन अभी भी लंबित है। प्रदीप की भांजी, जिसने माता-पिता दोनों को खो दिया, के लिए चाइल्ड वेलफेयर कमीशन ने ₹10 लाख की राशि सुनिश्चित की है, जो वह 18 वर्ष की उम्र में प्राप्त करेगी।

शिक्षा और बच्चों की त्रासदी

इस त्रासदी में मुंडक्कई यू.पी. स्कूल और वेल्लरमाला वोकेशनल हायर सेकेंडरी स्कूल पूरी तरह ढह गए। एक स्कूल से 13 और दूसरे से 33 छात्रों की जान चली गई। 2025 की शुरुआत तक कम्युनिटी हॉल में वैकल्पिक कक्षाएं शुरू हुईं। हालांकि, 2% छात्र स्कूल छोड़ गए और हर पांच में से एक को दूसरे स्कूल में जाना पड़ा। सरकार ने पूरी तरह अनाथ बच्चों को ₹10 लाख और एक माता-पिता खोने वाले बच्चों को ₹5 लाख की सहायता दी।

संघर्ष भरे पुनर्निर्माण प्रयास

केंद्र सरकार से सीमित सहायता मिलने के बावजूद, राज्य सरकार, सामाजिक संगठनों और राजनीतिक दलों की मदद से पुनर्वास कार्य धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा है। केंद्र ने लोन माफी की मांग को ठुकरा दिया और केवल ऋण पुनर्निर्धारण (rescheduling) की अनुमति दी, जिससे लंबी अवधि का बोझ कम नहीं हो पाया।

डीवाईएफआई ने ₹20.37 करोड़ मुख्यमंत्री राहत कोष में दान किए, जिससे 125 घर बनाए जा रहे हैं। यूथ कांग्रेस ने 100 घरों की योजना बनाई और ₹84 लाख जुटाए, लेकिन ज़मीन न मिलने और पारदर्शिता पर सवालों के चलते यह योजना विवादों में आ गई। आईयूएमएल ने 105 घरों की योजना शुरू की, लेकिन नेताओं ने आरोप लगाया कि सरकार जानबूझकर मंज़ूरी में देरी कर रही है और छोटे व्यापारियों और हाशिए के लोगों की मदद नहीं कर रही।

प्रकृति से जंग और मन के जख्म

पर्यावरण समूहों ने जॉन माथाई समिति पर "गैर-वैज्ञानिक तरीके" से ज़ोन तय करने का आरोप लगाया। उनका दावा है कि 4,500 से अधिक परिवार अब भी खतरनाक क्षेत्रों में हैं। 2025 के मध्य में फिर से भारी बारिश हुई। पुनापुझा नदी उफान पर आ गई। पुरानी परियोजनाओं का मलबा फिर से बहकर गांवों में घुस आया। लोग डर गए कि कहीं एक और रात मौत न ले आए।

ज़िंदगी चलती रही...

राहत शिविरों में अब भी भोजन बनता है। एलस्टोन एस्टेट में धीरे-धीरे घर बन रहे हैं। गांवों के स्कूल फिर से खुल गए हैं। अनाथ बच्चे अब डोनर सहायता से पढ़ रहे हैं। महिलाएं स्वरोजगार प्रशिक्षण ले रही हैं। फिर भी मानसिक आघात गहरा है। कई लोग मनोचिकित्सक से इलाज ले रहे हैं, दवाएं ले रहे हैं। बारिश, इंजन की आवाज़ और पहाड़ों की खामोशी भी उस रात की याद दिला देती है। अभी अंत नहीं आया। फातिमा, प्रसांत, प्रदीप और उनके जैसे सैकड़ों परिवार आज भी ज़िंदा हैं,टूटे हुए लेकिन उम्मीद से भरे हुए। यह लड़ाई है जख्मों के साथ जीने की, बिखरी ज़िंदगी को जोड़ने की और धीरे-धीरे, ज़िंदगी फिर से आकार ले रही है।

Tags:    

Similar News