पश्चिम बंगाल में SIR: कैसे भाजपा CAA का इस्तेमाल कर शरणार्थियों को भरोसा दिलाने की योजना बना रही है
राज्य भाजपा के सूत्रों के अनुसार, पार्टी अन्य हिंदू दक्षिणपंथी संगठनों के साथ मिलकर 30 अक्टूबर तक नौ सीमावर्ती जिलों में लगभग 700 CAA आवेदन सहायता शिविरों का आयोजन करेगी।
जैसे ही चुनाव आयोग (EC) नवंबर तक मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) की तैयारी कर रहा है, पश्चिम बंगाल भाजपा नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) का रणनीतिक रूप से उपयोग करना चाहती है — एक ओर उन शरणार्थियों को आश्वस्त करने के लिए जो मतदाता सूची से नाम हटाए जाने से डर रहे हैं, और दूसरी ओर इस प्रक्रिया को लेकर संभावित राजनीतिक प्रतिक्रिया का मुकाबला करने के लिए।
राज्य भाजपा के सूत्रों के अनुसार, पार्टी अन्य हिंदू संगठनों के साथ मिलकर 30 अक्टूबर तक नौ सीमावर्ती जिलों में करीब 700 CAA सहायता शिविर लगाएगी।
इस पहल का उद्देश्य उन इलाकों में फैली बेचैनी को शांत करना है, जहां शरणार्थी समुदाय, विशेष रूप से मतुआ समुदाय, बड़ी संख्या में रहते हैं — जो बंगाल में भाजपा का मुख्य समर्थन आधार माना जाता है।
विशेष कार्यशाला और रणनीति
कोलकाता में हुई विशेष कार्यशाला में इस बात पर गहन चर्चा हुई कि CAA को SIR प्रक्रिया के साथ किस तरह जोड़कर राजनीतिक नुकसान को नियंत्रित किया जा सकता है।
कार्यशाला में यह तय किया गया कि 30 अक्टूबर तक सीमावर्ती जिलों के हर ब्लॉक में कम से कम तीन CAA सहायता शिविर लगाए जाएंगे। धीरे-धीरे यह अभियान राज्य के अन्य हिस्सों तक फैलाया जाएगा, जहां कुल मिलाकर 340 से अधिक ब्लॉक हैं।
इस बैठक में भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव बी.एल. संतोष और सुनील बंसल, साथ ही राज्य के वरिष्ठ नेता और संगठन के कार्यकर्ता मौजूद थे। इसमें यह भी तय किया गया कि पार्टी कार्यकर्ताओं और “गैर-राजनीतिक” हिंदू संगठनों के प्रतिनिधियों को CAA आवेदन प्रक्रिया में शरणार्थियों की मदद करने के लिए प्रशिक्षित किया जाएगा।
CAA को सुरक्षा कवच के रूप में पेश करना
बैठक में यह नैरेटिव भी तैयार किया गया कि CAA के तहत नागरिकता के लिए आवेदन करने वाले लोगों के नाम SIR प्रक्रिया के दौरान मतदाता सूची से नहीं हटेंगे।
केंद्रीय मंत्री औgर भाजपा के पूर्व राज्य अध्यक्ष सुकांत मजूमदार ने कहा, “SIR में किसी भ्रम की गुंजाइश नहीं है, हालांकि तृणमूल ऐसा भ्रम फैलाने की कोशिश कर रही है। जो भारतीय नागरिक हैं, उनके नाम वोटर लिस्ट में बने रहेंगे। जो उत्पीड़ित हिंदू बांग्लादेश से आए हैं, उन्हें CAA के तहत नागरिकता के लिए आवेदन करना होगा। जब उन्हें नागरिकता मिल जाएगी, तो उनके नाम SIR में भी रहेंगे।”
इस नैरेटिव के ज़रिए भाजपा CAA को बांग्लादेश से आए हिंदू शरणार्थियों के लिए सुरक्षा कवच के रूप में पेश कर रही है — ताकि यदि SIR के दौरान किसी का नाम हटाया जाए, तो उन्हें आश्वस्त किया जा सके।
साथ ही भाजपा का यह भी दावा है कि SIR का उद्देश्य “मृत, फर्जी मतदाता और घुसपैठियों” को सूची से हटाना है, और यह मुख्य रूप से अवैध प्रवासियों को लक्षित करेगा।
राज्य भाजपा अध्यक्ष समिक भट्टाचार्य ने कहा है कि “अगर भाजपा सत्ता में रही, तो बांग्लादेश से आए एक भी हिंदू, बौद्ध, जैन या ईसाई का नाम मतदाता सूची से नहीं हटाया जाएगा।” उन्होंने यह भी चेतावनी दी कि SIR के सही क्रियान्वयन से बंगाल में एक करोड़ से अधिक फर्जी मतदाताओं के नाम हट सकते हैं।
भाजपा के भीतर चिंताएं और मतुआ असंतोष
हालांकि भाजपा के भीतर भी कुछ चिंताएं हैं। हारींगटा से भाजपा विधायक असीम सरकार ने कहा कि हिंदू भाजपा समर्थक, विशेष रूप से मतुआ समुदाय, जो दशकों से वोट डाल रहे हैं, अब “मतदाता सूची सुधार” के नाम पर अपने नाम हटाए जाने का सामना कर रहे हैं।
शरणार्थी समुदायों में भी यह भरोसा नहीं है कि CAA उनकी नागरिकता से जुड़ी चिंता को पूरी तरह दूर कर देगा।
भाजपा समर्थित ऑल इंडिया मतुआ महासंघ द्वारा CAA आवेदन के लिए जारी किए गए “धार्मिक कार्डों” को भी बहुत ठंडी प्रतिक्रिया मिली है — अब तक सिर्फ दो लाख कार्ड ही जारी हुए हैं। ये कार्ड CAA के तहत नागरिकता प्रमाणपत्र नहीं हैं, बल्कि केवल आवेदन प्रक्रिया में सहायक दस्तावेज हैं।
आंकड़ों की धुंध और TMC की प्रतिक्रिया
केंद्रीय गृह मंत्रालय ने हाल में एक RTI में बताया कि CAA आवेदन की कुल संख्या का कोई समेकित रिकॉर्ड रखना कानून में अनिवार्य नहीं है। हालांकि, कुछ सूत्रों का दावा है कि पश्चिम बंगाल में अब तक लगभग 25,000 लोगों ने CAA के तहत नागरिकता के लिए आवेदन किया है।
यह संख्या मतुआ नेताओं की उस उम्मीद से बहुत कम है, जिनका अनुमान था कि उनके समुदाय से ही आवेदन “एक करोड़ से अधिक” होंगे।
दूसरी ओर, तृणमूल कांग्रेस (TMC) SIR के खिलाफ मोर्चा खोल चुकी है। TMC का आरोप है कि यह मतदाता सूची सत्यापन अभ्यास असली मतदाताओं को हटाने और परोक्ष रूप से NRC लागू करने की साजिश है।
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी खुद नवंबर के दूसरे हफ्ते में कोलकाता में एक बड़ी एंटी-SIR रैली का नेतृत्व करने वाली हैं, ताकि इस नैरेटिव को मजबूत किया जा सके।