मैं अब झाग वाली नदी हूं, आखिर यमुना के इस हाल के लिए कौन है जिम्मेदार?

दिल्ली में यमुना नदी का हाल देख आप माथा पीट लेंगे कि आखिर हो क्या रहा है। करोड़ों रुपए खर्च करने के बाद भी नदी सिसक और कराह रही है। सवाल यह कि जिम्मेदार कौन है।;

By :  Lalit Rai
Update: 2024-11-03 04:36 GMT

Yamuna River Pollution:  भारत में छोटी-बड़ी नदियों की संख्या सैकड़ों में है। कुछ नदियां साफ, कुछ प्रदूषित तो कुछ बहुत ही अधिक प्रदूषित। नदियों को साफ करने का अभियान भी जोर शोर से चल रहा है। लेकिन कुछ तस्वीरें इस तरह के अभियान की कलई खोलती नजर आती हैं। आज हम उस नदी का जिक्र करेंगे जो दिल्ली की लाइफ लाइन है। लेकिन वो नदी खुद दम तोड़ रही है। नदी का नाम यमुना(Yamuna River Pollution news) है और उसकी पहचान झाग वाली नदी की हो चुकी है। अगर आप दिल्ली और एनसीआर (Yamuna River Delhi)के रहने वाले हैं तो यमुना के हाल को खुली आंखों से देखते होंगे। लेकिन यदि आप दिल्ली के बाहर के हैं तो तस्वीरों को देख कर अंदाजा लगा सकते हैं कि यमुना का हाल क्या है। लेकिन आज से 115 साल तस्वीर ऐसी नहीं थी। बताया जाता है कि साल 1909 तक यमुना का पानी नीले रंग दिखता था जबकि उस समय गंगा नदी सिल्ट का सामना कर रही थी। अब सवाल यह है कि यमुना के इस हाल के लिए कौन जिम्मेदार है।

दिल्ली में बदहाल यमुना
यमुना की बदहाली (Yamuna River Condition In Delhi) के लिए कौन जिम्मेदार है उसे समझने और समझाने से पहले उन लोगों के बारे में सोचिए जो छठ पूजा(Chhath Puja 2024) के लिए नदी के जल में घंटों तक खड़ी रहेंगी। दिल्ली में हर साल लाखों की संख्या में छठ श्रद्धालु भगवान सूर्य देव की आराधना यमुना में खड़े होकर करते हैं। लेकिन झाग के बीच खड़ा होना वो दृश्य होता है जिसे देखकर आप दहल उठेंगे। सवाल भी करेंगे आखिर क्या हो रहा है। लेकिन नेताओं का रेडीमेड जवाब तैयार रहता है। मसलन आम आदमी पार्टी की सरकार(AAP Government Delhi) पिछले 10 साल से दिल्ली में है। लेकिन व्यवस्था बदलने की बात करने वाली पार्टी खुद व्यवस्था का रोना रो रही है।


साल 2020 में आप के संयोजक और सीएम रहे अरविंद केजरीवाल(Arvind Kejriwal)  ने कहा था कि बस पांच साल में यानी 2025 में वो डुबकी लगाएंगे। यानी कि यमुना नदी इतनी साफ हो जाएगी कि आप स्नान कर सकते हैं। लेकिन कालिंदी कुंज में नदी में झाग को देख लोग सवाल कर रहे हैं कि क्या केजरीवाल जी यमुना में स्नान करेंगे। जब इस विषय पर आप के नेताओं से सवाल होता है तो उनता जवाब कि यमुना की बर्बादी के लिए कोई और नहीं बल्कि हरियाणा और यूपी जिम्मेदार हैं। 

नदी पूजने वालों का यह है हाल
भारत में नदियों को उनके उद्गम स्रोतों यानी ओरिजिन के आधार पर हिमालयी और प्रायद्वीपीय नदियों में बांटा गया है। प्रमुख हिमालयी नदियाँ सिंधु, गंगा, यमुना और ब्रह्मपुत्र हैं; प्रायद्वीपीय नदियाँ महानदी, गोदावरी, कृष्णा और कावेरी हैं। हिमालयी नदियों मे गंगा और यमुना ज्यादा प्रदूषित हैं। इन्हें साफ करने गंगा एक्शन प्लान (Ganga Action Plan) और यमुना एक्शन प्लान (Yamuna Action Plan) चलाया जा रहा है। लेकिन दोनों नदियां प्रदूषित बनी हुई हैं।

दम तोड़ती यमुना

  • दिल्ली में 3500 मिलियन लीटर से ज़्यादा नगरपालिका का सीवेज नदी में बहाया जाता है।
  • और बड़े-बड़े दावों के बावजूद 50 प्रतिशत से ज्यादा सीवेज अनट्रीटेड है। सीधे यमुना में बहता है।
  • नदी में न्यूनतम प्रवाह की कमी यमुना के प्रदूषण का एक और बड़ा कारण है।
  • ‘यमुना पर कई फार्महाउस और उद्योग नदी में प्रदूषक छोड़ रहे हैं।
  • करीब 92 नाले हैं जो सीधे यमुना में खुलते हैं, जिनमें से 62 का इस्तेमाल नहीं किया जाता।


सिटिजन फिफ्थ रिपोर्ट में खास बात


1999 में सिटिजन फिफ्थ रिपोर्ट में  कहा गया है कि भारत में नदियों की पूजा करने की परंपरा कई सहस्राब्दियों से चली आ रही है। भले ही हिंदू विद्वान हिंदू धर्म के पारिस्थितिक तत्वों की प्रशंसा करते नहीं थकते, जिनमें से कई हैं, फिर भी, कथनी और करनी में अंतर है। नदी पूजने वाले हिंदुओं समेत भारतीय नदी को प्रदूषित करने से पहले दो बार नहीं सोचते। 1997 में एक पत्रकार ने नदियों की मृ्त्यु के बारे में लिखा था कि कभी भारत के लाखों लोगों के लिए पवित्रता और जीवन का प्रतीक, भारत की नदियां आज सीवेज और जहरीले कचरे के गंदे पात्र हैं। अगर हमारी नदियों को जहरीला होने से नहीं रोका गया, तो और अधिक बीमारी और मौतें अपरिहार्य लगती हैं।

2021 के अंत में यमुना के कुछ हिस्सों में जहरीले झाग (Yamuna river froth) की एक परत जम गई। जब हिंदू समाज के लोग छठ पूजा मनाने के लिए इसके तट पर इकट्ठा हुए। सफेद झाग, सीवेज और औद्योगिक कचरा यमुना नदी के कुछ हिस्सों में बना, जो हिमालय से लगभग 1,376 किलोमीटर) दक्षिण में कई भारतीय राज्यों से होकर बहती है। तीखे झाग में अमोनिया और फॉस्फेट का उच्च स्तर था, जो सांस और त्वचा संबंधी समस्याओं का कारण बन सकता है। इस घातक प्रदूषण के बावजूद श्रद्धाथु नदी में स्नान करने और प्रार्थना करने के लिए बाध्य हुए।

CPCB ने भारत में प्रतिमाओं के विसर्जन के प्रभाव का अध्ययन किया और निष्कर्ष निकाला कि पानी की गुणवत्ता (Yamuna River Quality) कम हो गई है। एसिड की मात्रा बढ़ गई है, कुल घुले हुए ठोस पदार्थों में 100% की वृद्धि हुई है और ऑक्सीजन का स्तर कम हो गया है। इसके अलावा, पानी की संरचना में भारी धातु के कण जैसे लोहा और तांबा दस गुना बढ़ गए हैं। 2021 में दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (Delhi Pollution Control Committee) दिल्ली राज्य सरकार का प्रदूषण नियंत्रण निकाय) ने जिला मजिस्ट्रेटों को यह सुनिश्चित करने के लिए दिशा-निर्देश जारी किए कि मूर्तियों को राष्ट्रीय राजधानी में यमुना या किसी अन्य जल निकाय में विसर्जित न किया जाए। उल्लंघन करने पर  50000 रुपए का जुर्माना या छह साल तक की जेल की सजा हो सकती है। पानी में मूर्तियों को विसर्जित करने की परंपरा का सम्मान करने के लिए DPCC ने शहरी स्थानीय निकायों को मूर्तियों के विसर्जन के लिए आवासीय क्षेत्रों के पास कृत्रिम तालाब बनाने के लिए कहा।

यमुना एक्शन प्लान का आगाज

1993 में यमुना नदी को साफ करने के लिए अभियान का आगाज हुआ। भारत और जापान की सरकारों के बीच एक द्विपक्षीय परियोजना थी। जापान ने YAP को लागू करने के लिए ऋण सहायता की पेशकश की थी।  2004 और 2008 में दो चरण (YAP II और YAP III) शुरू किए गए। यमुना नदी को साफ करने के लिए, YAP पर 1500 करोड़ रुपए और 1174 करोड़ रुपए की योजना को फिर से तैयार किया गया। केंद्र सरकार द्वारा फ्लैगशिप कार्यक्रम के रूप में स्वीकृत एक एकीकृत संरक्षण मिशन ‘नमामि गंगे कार्यक्रम’ के तहत यमुना की सफाई के लिए ₹460 करोड़ (US$4.6 बिलियन) दिए गए थे। लेकिन रिपोर्टों के अनुसार, यमुना की स्थिति जस की तस बनी हुई है बल्कि वास्तव में बदतर हो गई है। भारत सरकार की पर्यावरण एवं वन संबंधी संसदीय समिति ने भी माना है कि गंगा और यमुना (वाईएपी सहित) को स्वच्छ करने का मिशन विफल हो गया है।

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