नरक से भी बदतर थी शेख हसीना की सीक्रेट जेल, ऐसे किया जाता था कैदियों को टॉर्चर

शेख हसीना के सीक्रेट जेल की भयावह जानकारी सामने आई है. इस जेल में रखे कैदियों को बेइंतहा टॉर्चर किया जाता था.

Update: 2024-10-18 11:05 GMT

Sheikh Hasina secret jail: बांग्लादेश में छात्रों के नेतृत्व में हुआ विरोध प्रदर्शन सरकार विरोधी आंदोलन में तब्दील हो गया था. इसके बाद शेख हसीना को सत्ता से बेदखल होकर भारत जाना पड़ा था.अब महीनों बाद हसीना के सीक्रेट जेल की भयावह जानकारी सामने आई है. इस जेल में रखे कैदियों को बेइंतहा टॉर्चर किया जाता था. हालांकि, अब यह जेल खाली हो चुकी है. इस जेल में रह चुके पीड़ितों ने भयानक आपबीती बताई है. ऐसे में आइए जानते हैं कि इस जेल में क्या-क्या होता था.

साल 2009 में शुरू हुए हसीना के शासन के दौरान सैकड़ों लोगों को सुरक्षा बलों द्वारा उठाया गया था. इनमें वे लोग भी शामिल थे, जो कभी-कभी सरकार के खिलाफ छोटे प्रदर्शनों में शामिल होते थे. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, सरकार विरोधी कई लोगों की हत्या कर दी गई और उनके शवों को फेंक दिया गया. जबकि कुछ को इस सीक्रेट सैन्य हिरासत केंद्र में रखा गया था. इसका कोड नाम 'हाउस ऑफ मिरर्स' था.

माना जाता है कि हसीना ने सत्ता पर अपनी पकड़ को चुनौती देने वाले किसी भी व्यक्ति से निपटने के लिए राज्य मशीनरी को संगठित किया था. रिपोर्ट के अनुसार, इस प्रयास के "सबसे गहरे गुप्त अभियान" में जबरन गायब किए जाने का कार्यक्रम भी शामिल था.

चौंकाने वाली जानकारी

मानवाधिकार संगठनों का अनुमान है कि साल 2009 से अब तक 700 से ज़्यादा लोग जबरन गायब किए जाने के शिकार हुए हैं. उनका कहना है कि वास्तविक संख्या इससे कहीं ज़्यादा होने की उम्मीद है. कुछ मामलों में कैदियों को रैली करने या विरोध प्रदर्शन के लिए सड़कों को अवरुद्ध करने या सोशल मीडिया पर असहमति जताने के लिए मैसेज पोस्ट करने के लिए भी निशाना बनाया गया था. हाउस ऑफ़ मिरर्स के तहत बांग्लादेश की सेना की खुफिया शाखा को सौंपी गई कई सीक्रेट दीर्घकालिक हिरासतें थीं. इनमें से कई बंदियों को भूमिगत जेल में ले जाया गया था. उन्होंने दावा किया है कि उनके ऊपर सुबह की सैन्य परेड सुनाई देती थी.

कतर और वियतनाम में बांग्लादेश के पूर्व राजदूत मारूफ ज़मान ने 2019 में फिर से जेल में आने से पहले कुल 467 दिन जेल में बिताए. ज़मान Google मैप्स पर ढाका में इस सैन्य चौकी को ठीक से पहचान लिया, जिसे अब हाउस ऑफ़ मिरर्स कहा जा रहा है.

सेना की खुफिया एजेंसियों द्वारा संचालित 'हाउस ऑफ़ मिरर्स' को यह नाम इसलिए दिया गया. क्योंकि बंदियों को कभी भी खुद के अलावा किसी और इंसान को देखने की अनुमति नहीं थी. इस कड़े तरीके से संचालित केंद्र में मुश्किल से जीने लायक जीवन दिया जाता था. यहां पूछताछ के दौरान लोगों को सीधे शारीरिक यातना का सामना करना पड़ता था. स्वास्थ्य जांच नियमित और गहन होती थी. हर चार से छह महीने में कैदियों के बाल काटे जाते थे. इसके पीछे का लक्ष्य कैदी के दिमाग को प्रताड़ित करना था.

साल 2016 में हिरासत में लिए गए बांग्लादेशी बैरिस्टर अहमद बिन कासिम को आठ साल बाद आंखों पर पट्टी बांधकर, हथकड़ी लगाकर सीक्रेट जेल से बाहर निकाला गया. उन्होंने कहा कि आठ साल में पहली बार मुझे ताजी हवा मिली. मुझे लगा कि वे मुझे मार डालेंगे. जेल के अंदर कासिम को चौबीसों घंटे बिना खिड़की के अकेले बेड़ियों से जकड़ कर रखा जाता था. इसके अलावा जेलरों को सख्त निर्देश दिए गए थे कि वे बाहरी दुनिया से कोई न्यूज न भेजें. साथ ही, उन्हें लगभग हर समय हथकड़ी पहनाई जाती थी.

कुछ पूर्व बंदियों ने बताया कि इसमें लंबे गलियारे थे, जिनमें आधा दर्जन कमरे थे, जो एक दूसरे से दूर थे. हिरासत केंद्र के दोनों छोर पर शौचालय थे. एक खड़े होने के लिए और दूसरा बैठने के लिए. हर कोठरी में बड़े एग्जॉस्ट पंखे लगे थे, ताकि गार्ड की बकबक को दबाया जा सके और साथ ही कैदियों को पागल किया जा सके.

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