क्या जी-7 का विकल्प बन सकता है ब्रिक्स, दोनों की ताकत- कमजोरी समझें

रूस के कजान शहर में ब्रिक्स सम्मेलन का 22 अक्टूबर से आगाज होने वाला है। क्या हम ब्रिक्स की तुलना जी 7 से कर सकते हैं। इसे समझने की कोशिश करेंगे।

By :  Lalit Rai
Update: 2024-10-22 07:02 GMT
फाइल फोटो

BRICS Summit 2024: गठबंधन किसी भी स्तर पर हो सकता है। कुछ गठबंधन का मकसद फायदे पहुंचाने के मकसद से किया जाता है तो कुछ दूसरों को नुकसान पहुंचाने के उद्देश्य है। अगर वैश्विक स्तर पर देखें तो सभी देश किसी ना किसी देश से व्यापार करते हैं और अपने रिश्ते को आगे बढ़ाते हैं। ठीक वैसे ही दुनिया का कोई भी देश शायद हो जो किसी ब्लॉक का हिस्सा ना हो। आज हम दो बड़े ब्लॉक की तुलना करेंगे और यह समझने की कोशिश करेंगे कि कौन किससे आगे निकल सकता है। पहला ब्लॉक जी-7 तो दूसरा ब्लॉक ब्रिक्स का है। बता दें कि रूस के कजान शहर में ब्रिक्स के 16वें सम्मेलन का आगाज 22 अक्टूबर से हो रहा है। पीएम नरेंद्र मोदी इस सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए जब रवाना हो रहे थे तो एक बड़ी बात कही। उन्होंने कहा कि अगर इस संगठन के सदस्य एकजुट होकर आपसी सहयोग के साथ आगे बढ़ें तो ना सिर्फ हम आंतरिक तौर पर मजबूत होंगे बल्कि वैश्विक स्तर पर दिशा भी दे सकेंगे। सबसे पहले जी 7 और ब्रिक्स की संरचना को समझने की जरूरत है।

ब्रिक्स के सदस्य देश

ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका इसमें तीन देश एशिया और एक देश दक्षिण अमेरिका और एक देश अफ्रीका महाद्वीप से शामिल है। इस साल के शुरुआत में यूएई, ईरान, इथियोपिया, मिस्र, सऊदी अरब को सदस्य बनाया गया। रूस इस साल इसकी अध्यक्षता कर रहा है। खास बात यह है कि रूस ने कई और देशों को पर्यवेक्षक के तौर पर बुलाया है। जिस अंदाज में रूस इस कार्यक्रम को सफल बनाने में जुटा है उसके पीछे उसकी मंशा साफ है। यूक्रेन से युद्ध के बीच वो संदेश दे रहा है कि पश्चिमी देशों ने भले ही उसे अलग थलग करने की कोशिश की हो दुनिया के दूसरे मुल्क उसे गुनहगार नहीं मानते हैं।इस सम्मेलन का मकसद है कि ब्रिक्स के देश कड़वाहट को भूलकर एक ऐसा मंच तैयार करें जो पश्चिमी देशों के दबदबे को कम कर सके।

ब्रिक्स को लेकर दुनिया के देशों में उत्साह को इस बात से भी समझा जा सकता है कि 30 से अधिक देशों ने इसमें शामिल होने के लिए या तो आवेदन या इच्छा जाहिर की। इसमें थाईलैंड, वियतनाम और मलेशिया जैसे देशों के साथ नेटो का सदस्य मुल्क तुर्की भी शामिल है। इसके अलावा तेल संपदा में संपन्न देश अल्जीरिया भी है। इसके साथ साथ इंडोनेशिया और बांग्लादेश भी शामिल होने की जुगत में हैं। ब्रिक्स में इस समय कुल 10 देश जिनकी आबादी करीब 45 फीसद है। आर्थिक उत्पादन के मामले में वैश्विक स्तर पर भागीदारी करीब 28 फीसद है। कच्चे तेल के उत्पादन में 47 फीसद हिस्सेदारी। यानी कि आर्थिक विकास को रफ्तार देने के लिए जिस आधारभूत संरचना की जरूरत है ये देश मुहैया कराते हैं। इसके साथ ही जिस तरह से यूरोप के सदस्य देश लेन देन के लिए साझा मुद्रा यूरो का इस्तेमाल करते हैं ठीक वैसे ही सदस्य देश इस बात पर बल दे रहे हैं कि आपसी लेनदेन में डॉलर की जगह स्थानीय मुद्राओं को प्राथमिकता देने की जरूरत है।

जी 7 के सदस्य देश

ग्रुप ऑफ सेवन यानी G7 एक अंतर-सरकारी संगठन है जिसमें दुनिया की सात सबसे बड़ी उन्नत अर्थव्यवस्थाएं शामिल हैं। कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका। इसके सदस्य देश आर्थिक नीति और अन्य वैश्विक मुद्दों पर चर्चा और समन्वय के लिए सालाना मिलते हैं। 1992 के बाद जी7 की अंतरराष्ट्रीय व्यापार में भागीदारी में बदलाव आया है। 1992 से पहले वैश्विक व्यापार में जी-7 का शेयर 45.5 फीसद था, वहीं ब्रिक्स देश का शेयर महज 16.7 फीसद। लेकिन 31 साल बाद बदलाव हुआ है। बिक्स की भागीदारी अब 37 फीसद के करीब है और जी7 का शेयर 29.3 फीसद। इससे साफ है कि दुनिया के सात औद्योगिक तौर पर समृद्ध देशों के दबदबे में कमी आई है और इस अंतर में इजाफा भी हो रहा है। दुनिया की जीडीपी में ब्रिक्स का योगदान करीर 40 फीसद है। अगर 2024 की बात करें तो सामूहिक तौर पर ब्रिक्स की आर्थिक दर चार फीसद के स्तर तक पहुंच सकती वहीं जी 7 के लिए यह दर 3.2 से कम है।

अगर आंकड़ों को देखें तो इसमें दो मत नहीं कि जी 7 देशों को ब्रिक्स के सदस्य देश टक्कर दे सकते हैं। लेकिन क्या चीन का रवैया भारत के लिए सहयोग वाला रहेगा। चीन की विस्तारवादी नीति से हर कोई वाकिफ है। यानी कि ब्रिक्स की मजबूती इस बात पर निर्भर करेगी कि सदस्य देश किस स्तर तक अपने रिश्तों को लेकर ईमानदार रहेंगे। वहीं अगर जी 7 को देखें तो उनके बीच व्यापारिक प्रतिस्पर्धा अलग अलग कारणों से हो सकती है। लेकिन उनकी सोच में विस्तारवाद की झलक वर्तमान हालात में कम नजर आती है।

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