विश्लेषण: इजराइल का ईरान पर हमला, मुस्लिम देशों में बंटवारा बना वजह?

ईरान पर इजरायल के हवाई हमलों ने वैश्विक तनाव को फिर से बढ़ा दिया है। अमेरिका ने आधिकारिक तौर पर खुद को अलग कर लिया है। लेकिन अभी भी इजरायल का समर्थन कर रहा है, जिससे पश्चिम एशिया में तनाव बढ़ने की आशंका बढ़ गई है। द फेडरल के केएस दक्षिणा मूर्ति बताते हैं कि यह पल क्यों महत्वपूर्ण है और इसके बाद क्या हो सकता है।;

Update: 2025-06-14 08:58 GMT

ईरान की परमाणु गतिविधियों को लेकर इज़राइल द्वारा शुक्रवार सुबह (13 जून) किए गए हवाई हमलों ने एक बार फिर वैश्विक स्तर पर तनाव बढ़ा दिया है। अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) की रिपोर्ट के मुताबिक, ईरान ने 60% तक यूरेनियम समृद्ध किया है, जो हथियार-योग्य स्तर 90% के बेहद करीब है।

गौरतलब है कि 2015 के परमाणु समझौते के तहत ईरान को 4% से अधिक समृद्धि की अनुमति नहीं थी। लेकिन 2018 में अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा उस समझौते से बाहर निकलने के बाद ईरान ने प्रतिबंधों की अनदेखी की।


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परमाणु वार्ता के बीच हमला

केएस दक्षिणा मूर्ति बताते हैं कि इज़राइल का हमला ऐसे समय में हुआ है, जब ईरान और अमेरिका ओमान की राजधानी मस्कट में नई परमाणु वार्ताओं की तैयारी कर रहे हैं। यह पहला मौका नहीं है, जब इज़राइल ने ईरान पर हमला किया हो; इससे पहले भी वह साइबर हमलों (जैसे स्टक्सनेट वायरस) और परमाणु स्थलों पर लक्षित हमलों में शामिल रहा है।

अमेरिका की दूरी

हालांकि, अमेरिका ने इस ताज़ा हमले में अपनी भागीदारी से इनकार किया है। लेकिन इज़राइल को उसका गुप्त समर्थन अब भी जारी है। ट्रंप प्रशासन ने हमले को लेकर सावधानी बरती, फिर भी इज़राइल ने एकतरफा कार्रवाई की। जवाब में ईरान ने 100 से अधिक ड्रोन इज़राइल की ओर भेजे, जिनमें से अधिकांश को नष्ट कर दिया गया।

मूर्ति कहते हैं कि चिंता है कि यह टकराव बड़े युद्ध में बदल सकता है। हालांकि, अभी के हालात पूर्ण युद्ध की ओर इशारा नहीं करते। उनका मानना है कि अमेरिका और इज़राइल के गहरे संबंध इस संघर्ष की धार को और पैना कर रहे हैं।

ईरान के घटते सहयोगी

ईरान के ‘प्रतिरोधी ध्रुव’ यानी उसके पारंपरिक सहयोगी — हिज़्बुल्लाह, हमास, हूती विद्रोही और सीरिया का असद शासन — अब या तो कमजोर हो चुके हैं या समाप्त। तेहरान में हमास के पूर्व नेता इस्माइल हनिया की मौत एक पूर्व इज़राइली हमले में हुई थी। सीरिया अब असद के पतन और हैदर अल-शाम के उदय के बाद अमेरिका के नजदीक हो गया है और ईरान की क्षेत्रीय कूटनीति लगभग ध्वस्त हो चुकी है।

ईरान की मुश्किल

ईरान की बढ़ती अलग-थलग स्थिति के पीछे शिया-सुन्नी मतभेद भी बड़ा कारण हैं। मूर्ति बताते हैं कि सुन्नी इस्लाम के संरक्षक सऊदी अरब को परमाणु ईरान सख्त नापसंद है। इसी वजह से बहरीन, यूएई और तुर्की जैसे देश इज़राइल से संबंधों के लिए खुले हैं। फिलिस्तीनियों के प्रति सहानुभूति जताने के बावजूद अधिकांश मुस्लिम देश गाजा में इज़राइली हमलों को रोकने के लिए कुछ खास नहीं कर पाए हैं।

दोहरा मापदंड?

जहां ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर अंतरराष्ट्रीय निगरानी है। वहीं, इज़राइल ने कभी भी अपने परमाणु हथियारों के अस्तित्व को स्वीकार नहीं किया है। अनुमान है कि उसके पास लगभग 400 परमाणु हथियार हैं। मूर्ति कहते हैं कि इज़राइल को हमले का आत्मविश्वास अमेरिका के समर्थन और क्षेत्रीय बिखराव से मिलता है। ईरान अब अपने प्रभाव और परमाणु महत्वाकांक्षाओं को बचाने के लिए जूझ रहा है।

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