नेपाल की सड़कों पर उग्र हुआ गुस्सा, जनरेशन जेड के विरोधों की गहराई से जांच
युवा वर्ग ने महसूस किया कि सत्ता एक छोटे तबके के हाथों में केंद्रित है। वे राजनेताओं के बच्चों की लग्जरी लाइफ देखकर नाखुश थे, जो सोशल मीडिया पर अपनी महंगी चीजें दिखाते थे, जबकि आम लोग आर्थिक तंगी से जूझ रहे थे। बेरोजगारी और आर्थिक अवसरों की कमी ने युवा वर्ग की नाराज़गी और बढ़ा दी।;
नेपाल में हाल ही में हुए युवा आंदोलन ने 34 लोगों की जान ली और देश को झकझोर कर रख दिया। यह आंदोलन, जिसे देश के युवाओं की एक बड़ी शक्ति के रूप में देखा गया, अब कुछ हद तक शांत पड़ता नजर आ रहा है। पहली नजर में यह एक अचानक भड़क उठी गुस्सा प्रतीत होता है, खासकर जनरेशन जेड (Gen-Z) के बीच, जो बेरोजगारी और भविष्य की अनिश्चितताओं से नाखुश हैं, जबकि राजनीतिक परिवारों के बच्चे आराम की जिंदगी जी रहे हैं। लेकिन गहराई से देखें तो यह गुस्सा अचानक नहीं, बल्कि वर्षों की कड़वी असंतोष का परिणाम है।
राजनीतिक उथल-पुथल का इतिहास
लगभग दो दशकों पहले 2005 में (नेपाल के विक्रम संवत 2062 के अनुसार), नेपाल के राजा ज्ञानेन्द्र ने पूर्ण सत्ता हड़प ली, जिससे देश में व्यापक असंतोष फैल गया। उस वक्त माओवादी विद्रोह जारी था। 2006 में जनता आंदोलन (जना आंदोलन II) ने संसद बहाल करवाई और माओवादी के साथ शांति समझौता हुआ, जिससे नेपाल ने राजशाही से गणराज्य बनने की ओर कदम बढ़ाया। नागरिकों की बड़ी उम्मीदें थीं कि अब विकास और समृद्धि आएगी, लेकिन यह सपना अधूरा ही रहा। बहुदलीय लोकतंत्र बहाल हुआ, पर सत्ता का दुरुपयोग और राजनीतिक अस्थिरता ने जनता का विश्वास तोड़ा। दो संविधान सभा चुनावों के बाद भी सरकारें लगातार कमजोर साबित हुईं और राजनीतिक पार्टियां केवल सत्ता पाने में लगी रहीं।
भ्रष्टाचार, नेपोटिज़्म और सांठगांठ
2015 में नया संविधान लागू होने के बाद भी जनता की उम्मीदें पूरी नहीं हुईं। सत्ता में आए नेताओं ने अपने करीबी लोगों को पद दिया और बड़े राष्ट्रीय परियोजनाओं के ठेके अपने हितधारकों को दिए। भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, सामाजिक अन्याय और सरकार की जवाबदेही में कमी ने आम जनता खासकर युवाओं में गहरा रोष पैदा किया।
युवाओं का गुस्सा और सामाजिक असमानता
युवा वर्ग ने महसूस किया कि सत्ता एक छोटे तबके के हाथों में केंद्रित है। वे राजनेताओं के बच्चों की लग्जरी लाइफ देखकर नाखुश थे, जो सोशल मीडिया पर अपनी महंगी चीजें दिखाते थे, जबकि आम लोग आर्थिक तंगी से जूझ रहे थे। बेरोजगारी और आर्थिक अवसरों की कमी ने युवा वर्ग की नाराज़गी और बढ़ा दी।
सोशल मीडिया प्रतिबंध
इस गुस्से की चिंगारी बनी सरकार द्वारा फेसबुक, यूट्यूब, ट्विटर, रेडिट, लिंक्डइन और इंस्टाग्राम जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर प्रतिबंध लगाना। तत्कालीन प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की सरकार ने इन कंपनियों को सूचना और संचार मंत्रालय में पंजीकरण करने को कहा था। जब ये कंपनियां पंजीकरण में असफल रहीं तो सरकार ने उन्हें बैन कर दिया। इस फैसले ने मुख्य रूप से युवा छात्रों और पेशेवरों, खासकर जनरेशन जेड के बीच विरोध को भड़काया। उन्होंने पहले ऑनलाइन हैशटैग्स और कैंपेन के जरिए विरोध जताया, फिर काठमांडू और अन्य शहरों में सड़कों पर उतर आए।
प्रदर्शन का हिंसक रूप
7 सितंबर तक विरोध बड़े पैमाने पर फैल गए। प्रदर्शनकारियों ने संसद तक मार्च किया और सरकार के खिलाफ नारेबाजी की। भ्रष्टाचार, नेपोटिज़्म और अवसरों की कमी को लेकर गुस्सा भड़का। सुरक्षा बलों ने आंसू गैस, वाटर कैनन, रबर की गोलियां और जीवित गोलियों का इस्तेमाल किया। प्रदर्शनकारी पत्थर फेंकते हुए बैरिकेड्स तोड़ने लगे और प्रतिबंधित इलाकों में घुसने की कोशिश की। 9 सितंबर तक हिंसा ने विकराल रूप ले लिया, जिसमें 34 से अधिक लोग मारे गए और सैकड़ों घायल हुए। संसद भवन, राजनीतिक दलों के कार्यालय और कुछ नेताओं के घरों में आग लगा दी गई।
मूल समस्याएं और भविष्य की अनिश्चितता
नेपाल के लगभग 20 प्रतिशत युवा बेरोजगार हैं। शिक्षित युवाओं को रोजगार के लिए विदेश जाना पड़ता है, जिससे निराशा बढ़ रही है। 2008 से अब तक नेपाल में 14 सरकारें बनीं, लेकिन कोई भी पूरा कार्यकाल पूरा नहीं कर पाई। बार-बार सरकार बदलने से राजनीतिक अस्थिरता बढ़ी है और जनता का राजनीतिक विश्वास कमजोर हुआ है।
आगे का रास्ता
अब जब विरोध कुछ हद तक शांत हो चुका है, नेपाल में जल्द ही नई सरकार बनने की संभावना है। लेकिन वास्तविक सुधार इस बात पर निर्भर करेगा कि नए नेता युवाओं की मांगों को कितनी गंभीरता से लेते हैं और कितनी गहराई से बदलाव लाते हैं। युवा प्रतिनिधियों ने नेपाली सेना के मुख्यालय में सेना प्रमुख अशोक राज सिग्देल से अपनी मांगें रखीं। विशेषज्ञों ने सरकार गठन के लिए तीन संभावित विकल्प सुझाए हैं:-
1. संसद के सदस्यों में से प्रधानमंत्री नियुक्त करना और मंत्रियों को संसद के बाहर से लाना।
2. सभी राजनीतिक दलों के बीच समझौता करके छः महीने के भीतर चुनाव कराना।
3. सेना द्वारा आपातकाल लागू करना, जो नेपाल के लिए एक बड़ी विपत्ति होगी।
नेपाल के भविष्य का फैसला इस बात पर होगा कि नेतृत्व कितनी ईमानदारी से युवा वर्ग की आवाज़ सुनता है और देश को स्थिरता की ओर ले जाता है।