विदेश सचिव की बांग्लादेश यात्रा, भारत- बांग्लादेश संबंधों में सुधार की उम्मीद!

India Bangladesh relation: विक्रम मिस्री द्वारा यूनुस सरकार को यह आश्वासन कि नई दिल्ली ढाका के साथ स्थिर संबंध चाहती है और हसीना की टिप्पणियों से सहमत नहीं है, बांग्लादेश में भारत विरोधी बयानों पर विराम लगा सकता है.;

Update: 2024-12-13 18:12 GMT

Indian Foreign Secretary Dhaka visit: भारतीय विदेश सचिव विक्रम मिस्री की हाल की ढाका यात्रा ने भारत-बांग्लादेश संबंधों (India-Bangladesh relation) को सामान्य बनाने के लिए एक बहुत जरूरी रास्ता खोल दिया है, जो शेख हसीना के सत्ता से बेदखल होने के बाद से गंभीर तनाव की स्थिति में है. बता दें कि बांग्लादेश (Bangladesh) में सबसे लंबे समय तक सत्ता में रहने वाली नेता और क्षेत्र में भारत की करीबी सहयोगी हसीना को 5 अगस्त को एक छात्र विरोध प्रदर्शन के सार्वजनिक विद्रोह में बदल जाने के बाद सत्ता और देश से बाहर कर दिया गया था.

भारत की 'भूमिका' पर संदेह

हसीना की अवामी लीग के बाद देश के दो मुख्य राजनीतिक दल बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) और जमात-ए-इस्लामी भारत पर 'अनुचित' तरीकों से उन्हें इतने लंबे समय तक सत्ता में बने रहने में मदद करने का आरोप लगाते रहे हैं. हाल तक कई लोगों को संदेह था कि भारत, बांग्लादेश (Bangladesh) में अशांति पैदा करके तथा देश में वर्तमान प्रशासन द्वारा स्थिति से निपटने के तरीके के बारे में लोगों में असंतोष को बढ़ावा देकर हसीना को पुनः सत्ता में लाने की साजिश कर रहा है. प्रख्यात अर्थशास्त्री मोहम्मद यूनुस को हसीना के शासन को बदलने के लिए अंतरिम सरकार का नेतृत्व करने के लिए लाया गया, ताकि अर्थव्यवस्था को विकास की राह पर वापस लाया जा सके और देश में स्थिति को स्थिर किया जा सके. लेकिन बांग्लादेश (Bangladesh) बढ़ती मुद्रास्फीति, आवश्यक वस्तुओं की आसमान छूती कीमतों, श्रमिक अशांति और कानून-व्यवस्था की विफलता का सामना कर रहा है, तथा हाल के सप्ताहों में अपराधों में तीव्र वृद्धि हुई है.

हिंदुओं पर हमले

इसके अलावा देश में हिंदुओं और धार्मिक अल्पसंख्यकों पर हमले की घटनाएं भी हुई हैं. मिस्री की यह यात्रा दोनों पड़ोसी देशों के बीच द्विपक्षीय संबंधों (India-Bangladesh relation) में बढ़ते तनाव के बीच हुई है. यह तनाव अंतरराष्ट्रीय कृष्ण भावनामृत संघ (इस्कॉन) के पूर्व सदस्य चिन्मय दास की गिरफ्तारी के बाद हुआ है. दास की गिरफ्तारी के बाद भारत में कई विरोध प्रदर्शन हुए थे, जिनमें अगरतला में बांग्लादेश (Bangladesh) के वाणिज्य दूतावास पर प्रदर्शनकारियों द्वारा धावा बोलने का प्रयास भी शामिल था. भारत और विशेषकर पश्चिम बंगाल में हिंदू समर्थक समूह और राजनीतिक दल उन रिपोर्टों पर उत्तेजित थे कि हसीना के जाने के बाद से हिंदुओं के घरों और पूजा स्थलों पर लगातार हमले हो रहे हैं. लेकिन हाल के सप्ताहों में बांग्लादेश में भी भारत के खिलाफ विरोध प्रदर्शन हुए हैं, जिनमें अगरतला से लगी देश की सीमा की ओर एक 'लंबा मार्च' भी शामिल है. कुछ राजनीतिक समूहों ने भी चिकित्सा उपचार, पर्यटन और खरीदारी के लिए भारत आने वाले बांग्लादेशियों पर भारतीय अधिकारियों द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों के जवाब में भारतीय वस्तुओं के बहिष्कार का आह्वान किया है.

बिगड़े संबंधों में सुधार

हालांकि, वर्तमान प्रशासन, जो यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार का हिस्सा है, मिस्री की यात्रा से संतुष्ट है और इसे द्विपक्षीय संबंधों को पटरी पर लाने के लिए नई दिल्ली की ओर से एक सकारात्मक कदम के रूप में देख रहा है. उसका मानना है कि विदेश सचिव की यात्रा अगले वर्ष के प्रारंभ में दोनों पक्षों के बीच उच्च स्तरीय राजनीतिक वार्ता का मार्ग प्रशस्त कर सकती है, जिससे द्विपक्षीय संबंधों को आगे बढ़ाया जा सकेगा. अपने बांग्लादेशी समकक्ष और विदेश मंत्रालय एवं अंतरिम प्रशासन के अन्य अधिकारियों के साथ बातचीत के दौरान मिस्री ने स्पष्ट किया कि भारत बांग्लादेश (Bangladesh) के साथ मजबूत, सहयोगात्मक और स्थिर संबंध चाहता है. उन्होंने यह भी तर्क दिया कि बांग्लादेश के साथ भारत के संबंध किसी एक पक्ष द्वारा संचालित नहीं हैं, बल्कि यह जन-उन्मुख, मजबूत 'पड़ोसी पहले' नीति पर आधारित हैं.

हसीना की टिप्पणी

भारतीय विदेश सचिव ने बांग्लादेशी अधिकारियों को यह भी आश्वासन दिया कि हसीना द्वारा नई दिल्ली में रहते हुए वर्तमान प्रशासन के विरुद्ध की गई कुछ आलोचनात्मक टिप्पणियां भारत की मंजूरी से नहीं की गई थीं. वास्तव में, वह बांग्लादेशी अधिकारियों से सहमत थे कि हसीना की टिप्पणी द्विपक्षीय संबंधों में 'छोटी-मोटी खटास' पैदा कर सकती है. बता दें कि अगस्त में ढाका से भागने के बाद से हसीना को भारत में शरण दी गई है. कुछ दिनों बाद मिस्री ने भारतीय संसद की विदेश संबंध परिषद के सदस्यों को जानकारी देते हुए भी ये टिप्पणियां दोहराईं. भारतीय मीडिया में प्रकाशित उनकी टिप्पणियों को प्रमुख बांग्लादेशी समाचार पत्रों में भी पुनः प्रकाशित किया गया तथा प्रमुखता से प्रदर्शित किया गया.

अराजकता का बोलबाला

मिस्री के आश्वासन के बावजूद बांग्लादेश की स्थिति में अभी तक कोई उल्लेखनीय सुधार नहीं हुआ है. यूनुस और उनकी टीम अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने में सफल नहीं हो पाई है. हालांकि, अधिकारियों का दावा है कि मुद्रास्फीति, जो 10 प्रतिशत से अधिक बढ़ गई है, अगले साल तक सात प्रतिशत पर वापस आ जाएगी. लेकिन आवश्यक वस्तुओं की कीमतें अभी भी दुर्लभ और बहुत अधिक हैं. स्थानीय मीडिया रिपोर्टों में कहा गया है कि हसीना के जाने के बाद विरोध-प्रदर्शन के दिनों में पुलिस से लूटे गए हथियारों और गोला-बारूद की बड़ी मात्रा अभी तक बरामद नहीं हुई है. लूटी गई अधिकांश बंदूकें और गोलियां आपराधिक गिरोहों के हाथों में थीं और उनका खुलेआम इस्तेमाल किया जा रहा था. क्योंकि ढाका और बांग्लादेश के अन्य शहरों में अपराध में तेजी आई है.

अंतरिम सरकार को कानून-व्यवस्था की स्थिति सुधारने में मुश्किल आ रही है. लोगों का पुलिस पर से भरोसा उठ गया है और पुलिस भी खुद लोगों का सामना करने से डरती है. उन्हें हसीना सरकार के दौरान की गई क्रूरता के लिए भीड़ द्वारा मारे जाने का डर है और इसलिए वे आपराधिक गतिविधियों की जांच और रोकथाम में सक्रिय भूमिका निभाने से कतराते हैं.

राजनीतिक दलों के बीच कलह

चूंकि हसीना के बाद बांग्लादेश (Bangladesh) में स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ है. इसलिए राजनीतिक दलों के बीच कलह भी सतह पर आने लगी है. हाल ही में, अंतरिम प्रशासन में शामिल कुछ छात्र नेताओं ने मुख्यधारा के राजनीतिक दलों पर यूनुस की खुलेआम आलोचना करने का आरोप लगाया. क्योंकि वे अधीर हो रहे थे और सत्ता में वापस आने के लिए शीघ्र चुनाव चाहते थे. छात्र नेता, जिनमें से कई इस्लामवादी पार्टियों से जुड़े हुए हैं, यूनुस द्वारा वर्तमान में शुरू की गई व्यवस्था में व्यापक सुधार के पक्ष में हैं. पर्यवेक्षकों का मानना है कि चुनाव में देरी से जमात जैसी इस्लामी पार्टियों को फ़ायदा मिलेगा. समय से पहले चुनाव कराने से बीएनपी को फ़ायदा मिलने की संभावना है और इससे उसे ढाका में अगली सरकार बनाने में मदद मिल सकती है.

हसीना की वापसी का डर

हालांकि, दोनों पक्षों को डर है कि अगर स्थिति में सुधार नहीं हुआ तो इससे लोगों के लिए हसीना और अवामी लीग के प्रति अधिक अनुकूल दृष्टिकोण रखने का मार्ग प्रशस्त हो सकता है. इससे अपदस्थ नेता देश में वापस आ सकती हैं और अपने विरोधियों के खिलाफ अपने खेमे को फिर से संगठित कर सकती हैं. चूंकि ये घटनाक्रम भारत में हो रहे विरोध प्रदर्शनों और हिंदुओं तथा धार्मिक अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के लिए सीमा पार से बढ़ती मांग के साथ मेल खाते हैं. इसलिए कई लोगों को यह डर सताने लगा है कि बांग्लादेश में अस्थिरता पैदा करने के लिए नई दिल्ली द्वारा जानबूझकर ऐसा किया जा रहा है. इसलिए, मिस्री के ढाका पहुंचने तक देश के विभिन्न हिस्सों में एक मजबूत भारत विरोधी अभियान देखा गया.

स्थिर संबंधों की जरूरत

भारत और बांग्लादेश (Bangladesh) दोनों को एक दूसरे की आवश्यकता है. क्योंकि स्थिर, सहयोगात्मक और शांतिपूर्ण संबंध पारस्परिक रूप से लाभकारी हैं. देश में अपने आलोचकों और राजनीतिक विरोधियों से निपटने में हसीना की भूमिका के बावजूद, उनके लंबे शासन ने भारत-बांग्लादेश संबंधों (India-Bangladesh relation) में सबसे अधिक सहयोगात्मक और मैत्रीपूर्ण दौर लाया है. अब नई दिल्ली के लिए ढाका के साथ संबंधों में उसी स्तर का सहयोग प्राप्त करना कठिन हो सकता है. लेकिन दोनों पक्षों के बीच शीघ्र बातचीत शुरू होने से न केवल द्विपक्षीय संबंध सामान्य हो सकते हैं, बल्कि इससे बांग्लादेश में शांति और स्थिरता भी आएगी, जो भारत के हित में भी होगा.

Tags:    

Similar News