मध्य-पूर्व में इजरायल की आक्रामक रणनीति, एक क्षेत्रीय युद्ध की ओर बढ़ते कदम

गाजा पट्टी में इजरायल और हमास के बीच चल रहे संघर्ष ने अब उस क्षेत्र की सीमाओं को पार कर लिया है, जहां से यह शुरू हुआ था.

Update: 2024-08-05 12:11 GMT

Israel Hamas Conflict: गाजा पट्टी में इजरायल और हमास के बीच चल रहे संघर्ष ने अब उस क्षेत्र की सीमाओं को पार कर लिया है, जहां से यह शुरू हुआ था. अब यह लड़ाई केवल इजरायल और हमास के बीच नहीं रही है, बल्कि इसका प्रभाव पूरी तरह से मध्य-पूर्व में फैल गया है. इजरायल-लेबनान सीमा पर घातक झड़पें, रेड सी और तेल अवीव पर हूथी विद्रोहियों के हमले, इराक और सीरिया में अमेरिकी सैनिकों पर ईरान समर्थित मिलिशिया के हमले और यहां तक कि इजरायल और ईरान के बीच सीधे टकराव जैसी घटनाओं ने इस संघर्ष को और भी जटिल बना दिया है. पिछले हफ्ते, इजरायल ने बेरूत में हिजबुल्लाह के शीर्ष कमांडर फुआद शुकर की हत्या की जिम्मेदारी ली, जो कि गोलान हाइट्स में हिजबुल्लाह के रॉकेट हमले का जवाब था. इसके अलावा, यह माना जा रहा है कि हमास के राजनीतिक नेता इस्माइल हनीयेह की तेहरान में हत्या के पीछे भी इजरायल का हाथ हो सकता है. इन हत्याओं की श्रृंखला ने पूरे क्षेत्र में तनाव को नई ऊंचाई पर पहुंचा दिया है, जिससे एक और बड़े क्षेत्रीय युद्ध की आशंका बढ़ गई है.

इजरायल की नई आक्रामक रणनीति

इजरायल की हाल की कार्रवाइयां इस बात का संकेत देती हैं कि वह एक नई और अधिक आक्रामक रणनीति अपना रहा है. इस रणनीति में केवल सैन्य हमले ही नहीं, बल्कि महत्वपूर्ण दुश्मन नेताओं की टारगेटेड हत्याएं भी शामिल हैं. इजरायल का यह कदम उसके लंबे समय से चले आ रहे 'रोकथाम' के सिद्धांत से कहीं अधिक आक्रामक है. यह सवाल उठता है कि इजरायल आखिर इतने बड़े जोखिम क्यों उठा रहा है? क्या यह आक्रामकता उसकी मजबूती का संकेत है या फिर यह उसकी कमजोर होती स्थिति की ओर इशारा करती है?

विश्लेषकों का मानना है कि इजरायल की नई आक्रामकता उसकी असुरक्षा और कमजोर होती सुरक्षा स्थिति से उत्पन्न हो रही है. 7 अक्टूबर को हमास द्वारा किए गए हमले ने इजरायल की सुरक्षा और सैन्य श्रेष्ठता की धारणा को ध्वस्त कर दिया है. इस हमले ने इजरायल को यह एहसास दिलाया है कि उसकी सुरक्षा तंत्र में गंभीर कमजोरियां हैं. अब इजरायल अपनी खोई हुई स्थिति को पुनः प्राप्त करने के लिए तीव्र और आक्रामक प्रतिक्रियाएं दे रहा है. इजरायल की यह रणनीति उसकी मजबूती से अधिक उसकी असुरक्षा को दर्शाती है. देश अपने दुश्मनों को यह दिखाने के लिए कि वह अब भी ताकतवर है, जोखिम भरी और आक्रामक रणनीतियों का सहारा ले रहा है.

हमास का हमला और इजरायल की सुरक्षा पर प्रभाव

हमास का 7 अक्टूबर का हमला इजरायल के लिए एक निर्णायक क्षण साबित हुआ. इस हमले ने इजरायल की सुरक्षा व्यवस्था और उसकी रक्षा रणनीति पर सवाल खड़े कर दिए हैं. इससे पहले, इजरायल को यकीन था कि उसकी सैन्य और तकनीकी श्रेष्ठता उसके दुश्मनों को डराने के लिए पर्याप्त है. लेकिन इस हमले ने इजरायल की सुरक्षा तंत्र की कमजोरियों को उजागर कर दिया है. देश की सीमाओं के भीतर रहकर खुद को सुरक्षित समझने की धारणा अब बुरी तरह से ध्वस्त हो गई है. इस हमले के बाद इजरायल के सुरक्षा विशेषज्ञों और अधिकारियों ने इस बात को स्वीकार किया कि उनकी पुरानी मान्यताएं अब गलत साबित हो चुकी हैं. इजरायल की सेना और खुफिया एजेंसियों को इस नए खतरे के लिए पुनर्गठन की आवश्यकता है. अब, इजरायल के सामने सबसे बड़ा सवाल यह है कि वह इस नई स्थिति का सामना कैसे करेगा और अपनी खोई हुई सुरक्षा स्थिति को कैसे बहाल करेगा.

इजरायल की बढ़ती आक्रामकता

इजरायल की नई आक्रामक रणनीति केवल उसकी सुरक्षा स्थिति को बहाल करने की कोशिश नहीं है, बल्कि यह उसके क्षेत्रीय दुश्मनों को यह संदेश देने का प्रयास भी है कि वह अब भी मजबूत है. लेकिन यह रणनीति खुद इजरायल के लिए ही जोखिम भरी साबित हो सकती है. इजरायल की बढ़ती आक्रामकता ने पूरे क्षेत्र में तनाव को और बढ़ा दिया है. हिजबुल्लाह और ईरान जैसे इजरायल के दुश्मन अब और भी अधिक आक्रामक प्रतिक्रिया दे सकते हैं. इसके अलावा इजरायल की इस रणनीति ने उसके अपने सुरक्षा तंत्र में भी दरारें पैदा कर दी हैं. इजरायल की सेना और खुफिया एजेंसियां अब कई मोर्चों पर एक साथ संघर्ष कर रही हैं, जिससे उनकी ताकत कमजोर हो रही है.

इजरायल की राजनीतिक नेतृत्व पर सवाल

इस नई स्थिति में इजरायल के राजनीतिक नेतृत्व की भूमिका भी सवालों के घेरे में है. प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की सरकार पर यह आरोप लग रहे हैं कि वे अपनी राजनीतिक स्थिति को बचाने के लिए युद्ध को खींच रहे हैं. इजरायल की जनता में भी सरकार के प्रति अविश्वास बढ़ रहा है. इजरायल के कई सुरक्षा विशेषज्ञ और अधिकारी इस बात से नाराज हैं कि 7 अक्टूबर को हुए हमले के बाद भी सरकार ने सुरक्षा तंत्र में सुधार के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए हैं. वे यह भी मानते हैं कि नेतन्याहू सरकार की नीतियां देश की सुरक्षा के लिए खतरा बन सकती हैं.

क्षेत्रीय शांति की आवश्यकता

इजरायल की बढ़ती आक्रामकता और उसकी सुरक्षा स्थिति में गिरावट का सबसे बड़ा कारण यह है कि देश ने फिलिस्तीन के साथ शांति समझौते की दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया है. इजरायल को यह समझना होगा कि केवल सैन्य ताकत के दम पर वह लंबे समय तक अपनी सुरक्षा सुनिश्चित नहीं कर सकता. गाजा में चल रहे संघर्ष को समाप्त करना एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है. लेकिन यह इजरायल की सुरक्षा के व्यापक सवालों का समाधान नहीं करेगा. इजरायल को इस सच्चाई का सामना करना होगा कि फिलिस्तीनियों के साथ एक स्थायी शांति समझौता ही उसकी सुरक्षा को सुनिश्चित कर सकता है.

अभी के हालात को देखते हुए इजरायल की सैन्य कार्रवाइयां उसे और भी गहरे संकट में डाल सकती हैं. क्षेत्रीय शांति और स्थिरता के लिए इजरायल को एक ठोस राजनीतिक रणनीति अपनानी होगी. उसे यह समझना होगा कि प्रभावशाली सैन्य अभियान उसे तात्कालिक लाभ तो दे सकते हैं. लेकिन दीर्घकालिक सुरक्षा केवल शांति और समझौते से ही हासिल की जा सकती है. जब तक इजरायल इस सच्चाई को नहीं अपनाता, तब तक पूरे मध्य पूर्व में तनाव और संघर्ष का खतरा बना रहेगा.

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