ट्रंप की धमकी से पनामा तो डर गया, आखिर क्या है चीन कनेक्शन?
Panama Canal: अमेरिकी राष्ट्रति डोनाल्ड ट्रंप प्रचार के दौर से ही हमलावर रहे हैं। अब उनकी धमकी के बाद पनामा पीछे हट चुका है। लेकिन चीन से इसका क्या नाता है।;
Panama Canal Controversy: अमेरिका के सामने पनामा जैसा छोटा सा देश कहीं नहीं ठहरता। ऐसे में डोनाल्ड ट्रंप पनामा नहर के मुद्दे पर हमलावर क्यों थे। अब ट्रंप की धमकी काम करती नजर आ रही है। चीन के वन बेल्ड वन रोड प्रोजेक्ट (China One Belt One Road) से पीछे हटने का फैसला किया है। ट्रंप का कहना है कि पनामा नहर को बेवकूफी से पनामा को सौंपा गया जिसका कभी कोई औचित्य नहीं रहा। हकीकत यह है कि पनामा को चीन चला रहा है। गद्दी संभालने के बाद कनाडा और मैक्सिको (Canada Mexico Tariffs) पर ट्रंप अच्छा खासा टैरिफ लगा चुके हैं, चीन पर भी टैरिफ 10 फीसद टैरिफ लगाया है।
झुक गया पनामा
पनामा के राष्ट्रपति जोस राउल मुलिनो का कहना है कि चीन के ओबीओआर को हम रिन्यू नहीं करेंगे। 2017 के साल में चीन के इस प्रोजेक्ट का पनामा हिस्सा बना। मुलिनो ने कहा कि आधारभूत संरचना के विकास के लिए वो अमेरिका के साथ काम करेंगे। यही नहीं सरकार पनामा पोर्टस कंपनी का ऑडिट भी करेगी। यहां बता दें कि पनामा नहर के दो बंदरगाहों को ऑपरेट करने वाली यह कंपनी चीन से जुड़ी है।
ट्रंप के तेवर पहले ही तल्ख
अमेरिका के विदेश मंत्री मार्को रूबियो ने पनामा को स्पष्ट चेताया था। उनका कहना था कि जिस तरह से चीन का दखल पनामा में बढ़ा है वैसी सूरत में हमें अपने अधिकारों की सुरक्षा करनी होगी। अब उनके इस बयान से ट्रंप की मंशा को समझा जा सकता है। हालांकि पनामा के राष्ट्रपति मुलिनो के मुताबिक उन्हें यकीन है कि अमेरिका सैन्य इस्तेमाल नहीं करेगा।
ट्रंप (Donald Trump) पहले कह चुके हैं कि हमारी नेवी और कारोबारियों के साथ पनामा का व्यवहार अच्छा नहीं था। वो जिस तरह से फीस ले रहे थे उसे बंद करना चाहिए। अगर पनामा नहर को सुरक्षित तरीके से संचालित नहीं किया जा सकता तो बेहतर होगा कि हमें सौंप दिया जाए। ट्रंप कहते हैं कि अगर और नैतिक और कानूनी दोनों सिद्धांतों को देखें तो एक बात साफ है कि पनामा नहर पर अमेरिका का ही हक बनता है।
चीन की भूमिका
क्या वास्तव में पनामा नहर को चीन चला रहा है। दरअसल इसे लेकर साफ सबूत नहीं है। हालांकि यह भी सच है कि वहां चीनी लोगों की मौजूदगी है। 2023 से लेकर सितंबर 2024 तक पनामा नहर से जितनी भी शिप गुजरीं उनमें 21.4 फीसद प्रोडक्ट चीन का था। अमेरिका के बाद चीन दूसरा ऐसा देश है जो सबसे अधिक इस नहर का इस्तेमाल करता है।
यही नहीं कुछ वर्षों में नहर के आसपास के बंदरगाहों और टर्मिनल में चीन का निवेश अधिक हुआ है। पनामा नहर के दोनों तरफ कुल पांच सामरिक बंदरगाह हैं। इनमें से दो का संचालन चीन कंपनी हचिसन पोर्ट होल्डिंग्स से जुड़ी कंपनी कर रही है। इनमें से पहला यानी बाल्बोआ, प्रशांत महासागर और किस्टोबल, अटलांटिक सागर पर है। यानी कि सामरिक तौर पर भी इन पोर्ट्स का महत्व है, और इसे डोनाल्ड ट्रंप अमेरिकी सुरक्षा के लिहाज से देखते हैं।
पनामा नहर का इतिहास
पनामा नहर की कुल लंबाई 82 किलोमीटर है, यह प्रशांत और अटलांटिक महासागर को जोड़ता है। पूरी दुनिया का 6 फीसद ट्रेड इस नहर के जरिए होता है। अमेरिका का 14 फीसद कारोबार इस नहर के जरिए होता है, ऐसे में अमेरिकी के लिए अहमियत समझी जा सकती है। यूएस के अलावा दक्षिण अमेरिकी देश भी इसका इस्तेमाल करते हैं। इसके अलावा अगर एशियाई मुल्कों से कैरेबियाई देशों को माल भेजना है तो इस नहर का इस्तेमाल होता है। ऐसे में अगर नहर को लेकर विवाद और आगे बढ़ता है कि तो वैश्विक स्तर पर सप्लाई चेन पर असर पड़ सकता है।
साल 1881 में पनामा नहर बनाने का काम फ्रांस ने शुरू किया। 1904 में अमेरिका ने इस नहर को बनाने की जिम्मेदारी ली और 10 साल में इसे पूरा किया गया। पनामा नहर पर अमेरिका का कंट्रोल रहा। लेकिन 1999 में इसे पनामा को सौंप दिया गया।