मझधार में छोड़ देना अमेरिका की पुरानी आदत, यूक्रेन पर पेंटागन के बयान से समझिए

अमेरिका का अपना फंडा है. संबंधों को वो जरूरतों के हिसाब से तौलकर अंदाजा लगता है कि कौन से संबंध उसके पक्ष में होंगे और अपने हित को ही तवज्जो देता है.

By :  Lalit Rai
Update: 2024-07-17 02:58 GMT

United States On Ukraine Russia War: एक कहावत है कि शक्तिशाली या ताकतवर शख्स लोगों को लड़ा कर मजा लेता है. यह कहावत अमेरिका के ऊपर सटीक बैठती है. यूक्रेन पर भारत के रुख से वो खुश नहीं रहता लिहाजा मीठे शब्दों में धमकी देता है. मसलन आपको याद होगा कि भारत में अमेरिकी राजदूत एरिक गार्सेटी ने रणनीतिक स्वायत्ता को लेकर क्या बयान दिया था. जब देखा कि भारत पर किसी तरह असर नहीं हुआ तो अब पेंटागन के प्रेस सेक्रेटरी पैट रायडर ने कहा कि भारत और अमेरिका स्ट्रैटेजिक पार्टनर हैं. यानी सामरिक सहयोगी. इन सबके बीच उन्होंने यूक्रेन के मुद्दे पर बड़ी बात कही.

पैट रायडर ने क्या कहा
रूस और यूक्रेन युद्ध पर पैट रायडर कहते हैं कि अंत में शांति के लिए फैसला तो यूक्रेन को ही करना है. फिलहाल हमारा फोकस यूक्रेन को सहायता करना है ताकि वो अपनी सुरक्षा और संप्रभुता की रक्षा कर सके. लेकिन सच यही है कि शांति को लेकर यदि कोई समझौता होता है तो उसकी अगुवाई तो उसे ही करनी है. अब यहीं से अमेरिका का दोहरा चरित्र नजर आता है. हाल ही में अमेरिका ने कई हजार करोड़ डॉलर देने की घोषणा की. खास बात यह कि यूक्रेन को जो आर्थिक मदद मिलेगी उससे ही वो अमेरिका से हथियार की खरीद करेगा. यानी कि मदद के नाम पर अमेरिका अपनी झोली भर रहा है. 

वियतनाम से लेकर अफगानिस्तान तक

अब हम अपने मूल विषय पर आते हैं कि अमेरिका की आदत के बारे में. वियतनाम की लड़ाई याद होगी. वियतनामी लोगों की मदद के लिए वो उनके देश में दाखिल होता है, करीब सात साल तक लड़ाई लड़ता है लेकिन बिना किसी निर्णय पर पहुंच कर अपने सैनिकों को वापस बुला लेता है. इसी तरह से गल्फ वार पर नजर डाल सकते हैं. वेपन ऑफ मास डिस्ट्रक्शन के नाम पर इराक के खिलाफ लड़ाई छेड़ता है. इराक को बर्बाद कर दिया. उसकी नजर इराकी तेल के कुओं पर थी जिसे सद्दाम हुसैन भांप गए थे. जब वो विरोध करने लगे तो तत्कालीन बुश प्रशासन को नागवार गुजरा था और उसके बाद क्या कुछ हुआ सबके सामने है. इसी तरह वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर अलकायदा के हमले के बाद अमेरिका ने आतंकियों के खिलाफ मुहिम छोड़ी और जड़ से इस रोग को खत्म करने के लिए अफगानिस्तान में दाखिल हो गया और करीब बारह साल के बाद अफगानिस्तान को उसके हाल पर छोड़ बाहर निकल गया.

अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार कहते हैं कि अमेरिकी नीति में नैतिकता का अंश कम है. उसके लिए फायदे का सौदा ज्यादा मतलब रखता है. इसके साथ अमेरिका को पता है कि वैश्विक स्तर पर अपने दबदबे को कायम रखने के लिए इस तरह की परिस्थितियों का निर्माण हो जिसमें वो अपने हथियारों को बेच सके. इसे सरल शब्दों में आप ऐसे समझ सकते हैं कि अरने सरप्लस प्रोडक्ट दुनिया के बाजार में डंप करने की उसकी नीति है. इसके साथ ही अगर कोई देश मजबूती के साथ तरक्की की राह पर आगे बढ़ता है तो उसकी राह में रोड़ा डालो ताकि उसकी बादशाहत बरकरार रहे. 

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